05 अक्टूबर 2017

दुनिया के अजूबों की सूची में शामिल ताजमहल को लेकर अचानक से एक विवाद खड़ा हो गया. इसकी उत्पत्ति कैसे और कब हुई ये तो विवाद बनाते लोगों के लिए भी पहेली बना हुआ था. इस विवाद के बीच उत्तर प्रदेश मंत्रिमंडल में बतौर पर्यटन मंत्री शामिल रीता बहुगुणा ने स्पष्ट किया कि चालू वर्ष 2017-18 में पर्यटन विभाग द्वारा प्रकाशित बुकलेट में ताजमहल का नाम शामिल होने का तात्पर्य यह नहीं कि वह प्रदेश सरकार की प्राथमिकता में नहीं है. उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि ताजमहल हमारी सांस्कृतिक विरासत है और सरकार उससे जुड़े पर्यटन स्थलों के विकास के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है. दरअसल हुआ यह कि पर्यटन विभाग द्वारा हालिया प्रकाशित पत्रिका ‘उत्तर प्रदेश पर्यटन – अपार संभावनाएं’ में आगरा एवं ब्रज के आसपास के अनेक क्षेत्रों का उल्लेख लिया गया है मगर ताजमहल का उल्लेख उसमें नहीं किया गया है. इसे लेकर कुछ भाजपा-विरोधी तत्त्व सदैव की भांति सक्रिय हो गए. गनीमत रही कि इसी मुद्दे पर किसी ने पुरस्कार की वापसी नहीं की. पर्यटन मंत्री ने स्पष्ट किया कि ताजमहल और उसके आसपास के क्षेत्र के विकास के लिए सरकार की तरफ से 154 करोड़ रुपये की योजनायें स्वीकृत की गई हैं. इन योजनाओं पर अगले तीन महीने में काम शुरू भी हो जायेगा. इसके बाद भी भाजपा-विरोधियों का कुतर्क अभियान अपनी रफ़्तार से सक्रिय है.


इसमें कोई संदेह नहीं कि ताजमहल एक बेजोड़ नमूना है स्थापत्य कला का. ये इमारत हमारे ही देश की अपने समय की परिपक्व स्थापत्य कला का प्रदर्शन करती है. ये और बात है कि देश के इतिहास से खिलवाड़ करने वालों ने इस पक्ष के प्रचार के बजाय इसे प्रेम का स्मारक बनाकर प्रचारित किया. संभव है कि तत्कालीन बादशाह ने इसे अपनी विशेष महारानी के प्रेम-प्रदर्शन के लिए बनवाया हो मगर इसमें भी कोई संदेह नहीं कि ये आज विशुद्ध रूप से इस्लामिल स्मारक के रूप में ही स्थापित है. यदि ऐसा न होता तो प्रति शुक्रवार यहाँ नमाज न हो रही होती. प्रेम के स्मारक के रूप में स्थापित इस इमारत में आखिर किस कारण से नमाज अता की जाती है? यदि ये विशुद्ध प्रेम का स्मारक है तो यहाँ अन्य धर्म वालों के लिए अपने धार्मिक कृत्य करने की मनाही क्यों है? क्या इसमें भी कोई दो-राय है कि जिस तरह से तत्कालीन बादशाह अपनी विलासिता के चलते अपनी कब्रगाहों को भी वैभवता का रूप देते थे, उसे भव्यता से अलंकृत करते थे कुछ ऐसा ही ताजमहल के साथ किया गया. इसमें भी कोई दोराय नहीं होना चाहिए कि मुग़लों ने बहुसंख्यक इमारतों, स्मारकों का निर्माण हिन्दू मंदिरों का ध्वंस करके किया था. आज या फिर आज के पहले जब भी इस पर विवाद हुआ कि ताजमहल का निर्माण भी शिव मंदिर का ध्वंस करके किया गया है तो इसमें विवाद किस कारण?


आखिर किसी एक-दो व्यक्तियों के कहने पर अथवा किसी एक-दो दलों के कहने पर न तो ताजमहल को गिराया जा रहा है और न ही उसको किसी तरह से पर्यटन स्थल से बाहर किया जा रहा है. ये किसी न किसी रूप में ऐसे लोगों की सोची-समझी साजिश है जो आये दिन भाजपा-विरोधी माहौल देश-प्रदेश में बनाये रखना चाहते हैं. यहाँ ऐसे लोगों के साथ-साथ उन लोगों पर भी तरस आता है जो मात्र इतने विचार के सामने आने पर कि ताजमहल का निर्माण किसी शिव मंदिर के ऊपर किया गया है, अनाप-शनाप बकने लगते हैं. क्या सांस्कृतिक दृष्टि से इस पर विचार नहीं किया जाना चाहिए कि क्या वाकई ये सच है? आज ये एक फैशन सा बन गया है कि हर उस बात का विरोध किया जाना चाहिए जो किसी न किसी रूप में हिन्दू धर्म के, भाजपा के पक्ष में आ रही हो. एक बात सबको याद रखना चाहिए कि आज भले ही ताजमहल वैश्विक दृष्टि से भले ही पर्यटन का प्रमुख केंद्र बना हुआ हो मगर है तो आखिर में एक कब्रगाह ही. और कम से कम हिन्दुओं को किसी दूसरे धर्म के कब्रगाह की चिंता करने के पहले उस जगह की चिंता कर लेनी चाहिए जहाँ उनके पुरखों का अंतिम संस्कार किया गया है. 

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