गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में दो दिन के भीतर
तीस बच्चों की मृत्यु कोई सामान्य घटना नहीं है. ये सीधे-सीधे प्रशासनिक लापरवाही का
मामला है. इस घटना का कारण बताया जा रहा है कि मेडिकल कॉलेज के इंसेफेलाइटिस पीड़ित
बच्चों के वार्ड में लिक्विड ऑक्सीजन की सप्लाई बाधित हुई थी. ऐसा बताया गया कि
ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी का लाखों रूपया बकाया होने के बाद उसके द्वारा
सप्लाई रोकने की बात भी कही जा चुकी थी. ऐसी स्थिति के बाद भी मेडिकल कॉलेज
प्रबंधन द्वारा उसके बकाया का भुगतान न करना, ऑक्सीजन की व्यवस्था करने के उपाय न
करना आदि दर्शाता है कि वह किस स्तर तक लापरवाह बना हुआ है. इसी मामले में प्रबन्ध
तंत्र की तरफ से विशुद्ध लीपापोती होती दिख रही है. उसके द्वारा जानकारी सार्वजनिक
की जा रही है कि लिक्विड ऑक्सीजन की किसी भी तरह कमी नहीं थी. कोई भी मौत इसकी कमी
से नहीं हुई. ये भी अपने आपमें विशुद्ध गैर-जिम्मेवाराना हरकत है. एक पल को मान भी
लिया जाये कि मेडिकल कॉलेज में कोई भी मौत लिक्विड ऑक्सीजन की कमी से नहीं हुई पर
इससे कैसे इंकार किया जायेगा कि वहाँ तीस बच्चों की मृत्यु हुई है.
इस घटना का संज्ञान बहुत ही संवेदनशीलता
से इसलिए भी लिया जाना चाहिए क्योंकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्वयं
इस घटना के एक दिन पहले मेडिकल के दौरे पर थे. वैसे तो मुख्यमंत्री बनने के बाद उनका
अपने गृहनगर गोरखपुर में ये सातवाँ दौरा था किन्तु इस बार का दौरा उन्होंने विशेष रूप
से मेडिकल कॉलेज के लिए ही किया था. खुद इंसेफेलाइटिस पीड़ित बच्चों और उनके परिजनों
से घंटों मुलाकात करने के बाद उन्होंने इसके इलाज से सम्बंधित सभी पक्षों, सुविधाओं, दवाइयों आदि की जानकारी लेने के लिए एक लम्बी मीटिंग भी की थी. इसके बावजूद
इस तरह की घटना बताती है कि अकर्मण्य और गैर-जिम्मेवार अधिकारीयों, प्रशासन पर अपने मुख्यमंत्री का भी असर नहीं है. प्रथम दृष्टया ये मामला भले
ही चिकित्सकीय सेवाओं, सुविधाओं में लापरवाही का दिखाई देता हो
मगर यदि जरा सी गंभीरता से विचार किया जाये तो आसानी से समझ आ जायेगा कि इसके पीछे
कितनी बड़ी प्रशासनिक लापरवाही है. दरअसल भाजपा द्वारा प्रशासनिक कार्यप्रणाली को
सुचारू बनाने, उसे पारदर्शी बनाने, अधिकारियों को निर्भय होकर काम करने देने की एक
प्रणाली विक्सित करने का प्रयास किया गया. इसी क्रम में प्रदेश में भाजपा सरकार बनने
के बाद से शीर्ष नेतृत्व की तरफ से प्रशासन को, अधिकारियों को
स्वतंत्रता से कार्य करने को कहा जा रहा है. भाजपा द्वारा अपने विधायकों, पदाधिकारियों, कार्यकर्ताओं को भी रोका गया है कि वे
प्रशासनिक अधिकारियों पर किसी तरह का दबाव न बनायें. इस तरह के निर्देशों से
प्रशासनिक अधिकारियों में कार्य के प्रति जवाबदेही आणि चाहिए थी वो न आने के बजाय
निरंकुशता आ रही है. अभी भी बहुतायत में वे अधिकारी काम कर रहे हैं जो पिछली सरकार
के प्रिय बने हुए थे. ऐसे में उनके द्वारा न केवल भाजपा पदाधिकारियों,
कार्यकर्ताओं की अवहेलना की जा रही है वरन जनता के हितों को भी अनदेखा किया जा रहा
है.
देखा जाये तो गोरखपुर की ये ह्रदयविदारक
घटना इसी स्वतंत्रता का दुष्परिणाम है. सोचने वाली बात है कि प्रशासनिक अधिकारी इस
कदर स्वतंत्र हो गए हैं कि महज एक दिन पहले मुख्यमंत्री द्वारा दिए गए निर्देशों का
अनुपालन करना भी उनको उचित न लगा. यदि ऑक्सीजन की सप्लाई किसी कारण से बाधित होने की
आशंका थी तो इसके लिए पहले से समुचित प्रबन्ध क्यों नहीं किये गए थे? वे भी तब जबकि इस बीमारी
से भर्ती होने वालों में बच्चों की संख्या ज्यादा था. गोरखपुर के प्रशासनिक
अधिकारियों ने मेडिकल कॉलेज प्रबंधन द्वारा जानकारी देने के बाद भी बकाया चुकता
करवाने, लिक्विड ऑक्सीजन की सप्लाई सुचारू करवाने की तरह क्यों नहीं ध्यान दिया? बच्चों
की मृत्यु के बाद जिस तरह की सजगता वहाँ का प्रशासन दिखाने में लगा है यदि उसका
शतांश भी पूर्व में दिखा लिया होता तो संभवतः बच्चों को बचा लिया गया होता. अब भले
ही चिकित्सालय प्रबंधन अपने आपको सही सिद्ध करने के लिए किसी भी तरह की लीपापोती करे;
सरकार अपने बचाव के लिए चाहे कुछ कहती रहे मगर कटुसत्य यही है कि बच्चों
को वापस नहीं आना है. इस मामले में स्वयं मुख्यमंत्री योगी जी को विशेष रूप से संज्ञान
लेते हुए न केवल चिकित्सकीय लापरवाही के बल्कि अन्य दूसरे पक्षों की भी जाँच
करवानी चाहिए. जिस तरह से देश-प्रदेश में भाजपा-विरोधी माहौल उसके विरोधियों
द्वारा बनाया जा रहा है; जिस तरह से असहिष्णुता जैसे शब्द के द्वारा लोगों में
डर-भय का वातावरण बनाया जा रहा है; जिस तरह से शीर्ष पद पर बैठा व्यक्ति भी
गैर-जिम्मेवाराना बयान देने लगता है उससे इस घटना के पीछे किसी तरह की साजिश से
इंकार भी नहीं किया जा सकता है. इसलिए स्वयं योगी जी द्वारा सम्पूर्ण घटनाक्रम का
गंभीरतापुर्वक संज्ञान लेते हुए सभी गैर-जिम्मेवार लोगों पर सख्त कार्यवाही करनी चाहिए.
अन्यथा की स्थिति में न केवल उनकी कार्यप्रणाली पर धब्बा लगेगा बल्कि विपक्षियों को
इस संवेदनशील मुद्दे पर भी राजनीति करने का अवसर हाथ लगेगा, जो कम से कम इस समय
कदापि उचित नहीं होगा.
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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