केंद्रीय कैबिनेट ने सेरोगेसी अर्थात किराए की कोख के व्यावसायीकरण रोक सम्बन्धी
एक बिल को मंजूरी दे दी है. इस बिल में सेरोगेट मदर और बच्चे के अधिकारों को ध्यान
में रखा गया है. साथ ही कानून को ज्यादा सख्त बनाने की कोशिश की गई है. इसके
अंतर्गत व्यावसायिक सेरोगेसी को पूरी तरह प्रतिबंधित किया गया है. इस कानून के आने
के बाद सिर्फ उन दंपत्ति को ही सेरोगेसी की अनुमति मिलेगी जिन्हें वाकई संतान पैदा
करने में समस्या है और जिनके विवाह को पाँच वर्ष हो चुके हों. दरअसल भारत सेरोगेसी
का एक बहुत बड़ा बाज़ार बनता जा रहा था. सरकार के साथ-साथ अन्य जागरूक संगठनों
द्वारा लगातार इसके सम्बन्ध में कड़े कानून बनाये जाने की कवायद की जाती रही है. देखा
जाये तो भारत सरोगेसी के लिए सर्वोत्तम प्लेटफ़ॉर्म के रूप में विकसित हुआ है. एक अनुमान
के अनुसार प्रजनन विज्ञान की इस सहायक विधि ने सालाना 63 अरब रुपए से अधिक के कारोबार
का रूप ग्रहण कर लिया है. इसे विधि आयोग ने स्वर्ण कलश का नाम दिया है. भारत में सरोगेसी
सम्बन्धी कानून न होने तथा बच्चा गोद लेने की जटिल प्रक्रिया के कारण यह निःसंतान दम्पत्तियों
के लिए बेहतरीन और पसंदीदा विकल्प बन गई है.
सरोगेसी लैटिन शब्द सबरोगेट से बना है जिसका अर्थ है किसी और को अपने काम के लिए
नियुक्त करना. तकनीक रूप से सरोगेसी दो प्रकार, ट्रेडिशनल और जेस्टेटशनल से होती है. ट्रेडिशनल सरोगेसी
में संतान सुख के इच्छु्क दंपत्ति में से पिता के शुक्राणुओं को एक स्वस्थ महिला के
अंडाणु के साथ प्राकृतिक रूप से निषेचित कर सरोगेट माँ के प्राकृतिक अण्डोत्सर्ग के
समय डाला जाता है. इसमें जेनेटिक संबंध सिर्फ पिता से होता है. जेस्टेसशनल सरोगेसी
में माता-पिता के अंडाणु व शुक्राणुओं का मेल परखनली विधि से करवाकर भ्रूण को सरोगेट
मदर की बच्चे्दानी में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है. इसमें बच्चे का जेनेटिक संबंध
माता-पिता दोनों से होता है. हाल ही में फिल्म अभिनेता तुषार कपूर द्वारा इस विधि
से पिता बनने के बाद सेरोगेसी तकनीक पुनः चर्चा में आई. इससे पूर्व शाहरुख़ खान
द्वारा भी ऐसा किये जाने पर सवाल उठाये गए थे, जबकि उनके पहले से अपनी पत्नी से दो
बच्चे थे. ये दो उदाहरण मात्र उदाहरण ही नहीं हैं वरन समाज की मानसिकता का परिचायक
हैं. वर्तमान में आधुनिक पीढ़ी में कैरियर के प्रति अतिशय सजगता आने से नवयुवतियों
में माँ बनने सम्बन्धी लालसा कम हुई है. ऐसे में सेरोगेसी को बढ़ावा मिला है. इसके
साथ-साथ लिव-इन-रिलेशन में रह रहे युगल, समलैंगिकों के बीच, एकल पुरुष, महिला के
द्वारा भी सेरोगेसी तकनीक के द्वारा बच्चे प्राप्त किये जाने का चलन बढ़ा है.
देश में किसी तरह का कानून न होने के कारण सेरोगेट मदर के लिए अनेक तरह की
समस्याएँ पैदा हो रही थी. अक्सर किसी न किसी तरह की बीमारी के कारण अथवा असामान्य
रूप में जन्मे शिशु को उसके पिता द्वारा अपनाने से इंकार कर दिया जाता था. धन की
लालसा में सेरोगेट बनने वाली महिला के लिए ऐसी स्थिति में बहुत बड़ी समस्या पैदा हो
जाती थी. उसके पास कानूनी रास्ता भी नहीं रह जाता था. अब ऐसा किया जाना संभव नहीं.
बिल में प्रावधान किया गया है कि सेरोगेसी से उत्पन्न संतान को हरहाल में उसके पिता
द्वारा अपनाना ही होगा. कानून के अभाव में पहले ऐसा नहीं था. चूँकि भारत में सरोगेसी
पर सख्त कानून नहीं है साथ ही फ्रांस, जर्मनी, पुर्तगाल, इटली, स्पेन, बुल्गारिया में सरोगेसी पूरी तरह प्रतिबंधित होने तथा अमेरिका, ब्रिटेन समेत कुछ देशों में अत्यंत खर्चीली तकनीक
होने के कारण विदेशी दंपत्ति भी सरोगेसी के लिए भारत आते हैं. किसी विदेशी दंपत्ति
के लिए सरोगेसी से भारत में पैदा होने वाले बच्चे की नागरिकता पर उठते प्रश्नचिन्ह
को देखते हुए आठ यूरोपीय देशों- जर्मनी, फ्रांस, पोलैंड, चेक रिपब्लिक, इटली, नीदरलैंड्स, बेल्जियम और स्पेन
ने भारत सरकार को पत्र लिख कर अनुरोध किया था कि यदि उनके देश का कोई दंपत्ति भारत
में सरोगेसी से बच्चा पैदा करता है तो उन्हें संबंधित देश के दूतावास से इसकी अनुमति
लेने के लिए कहा जाए. इसको ध्यान में रखते हुए पूर्व में प्रावधान किया गया था कि अनिवासी
भारतीयों सहित विदेशी नागरिक जो सरोगेसी की चाह में भारत आएंगे, उन्हें प्रस्तावित कानून के अंतर्गत इस आशय का
प्रमाणपत्र देना होगा कि उनके देश में सरोगेसी को कानूनी मान्यता प्राप्त है और जन्म
के बाद शिशु को उनके देश की नागरिकता दी जाएगी. हाल ही में कैबिनेट से पारित बिल
में विदेशियों को सेरोगेसी के लिए पूर्ण रूप से प्रतिबंधित कर दिया गया है. अब किसी
भी रूप में उनको देश में सेरोगेसी की सुविधा उपलब्ध नहीं करवाई जा सकेगी.
कैबिनेट से पास बिल में इस तरह के प्रावधान किये गए हैं जो सेरोगेट मदर को और
जन्मे शिशु को संरक्षण देते हैं. बिल में स्पष्ट रूप से कहा गया कि अगर किसी के पास
एक बच्चा है अथवा किसी ने एक बच्चा गोद ले रखा है तो उन्हें सेरोगेसी की अनुमति नहीं होगी.
मूलरूप से प्रजनन विज्ञान की सहायक तकनीक के रूप में विकसित सरोगेसी के द्वारा ऐसे
दम्पत्तियों को संतानसुख प्रदान किया जाता है जो कतिपय कारणोंवश संतान पैदा नहीं कर
पा रहे हैं. उन्हें किसी अन्य महिला को गर्भस्थ करने और गर्भावस्था के दौरान होने वाले
खर्च सहित, उसकी फीस चुकानी होती
है. इसी को किराये की कोख या सेरोगेट मदर का नाम दिया गया है. इस तकनीक का उपयोग एक
तरफ तो निःसंतान दंपत्ति संतान प्राप्ति के लिए कर रहे हैं साथ ही वे धनवान महिलाएँ
भी कर रही हैं जो प्रसूति के दौरान होने वाली तकलीफों से बचना चाहती हैं. ऐसी
स्थिति से बचने के लिए बिल में प्रावधान किया गया है कि लिव-इन-रिलेशन में रहने
वालों को, समलैंगिकों को, एकल पुरुष-महिला को सेरोगेसी का लाभ नहीं मिलेगा.
नियम-कानून का पूरी तरह कड़ाई से पालन हो सके इसके लिए भी बिल में व्यवस्था की
गई है. अब सेरोगेसी क्लीनिक वालों को सेरोगेसी से पैदा बच्चे का रिकॉर्ड 25 वर्ष तक रखना अनिवार्य किया गया
है. ऐसा न किये जाने पर दस वर्ष की सजा का प्रावधान है. फ़िलहाल कानून बन चुका है,
अब देखना है कि कितनी कड़ाई से, सख्ती से इसका पालन करवाया जाता है, किया जाता है.
यदि ये कानून वाकई कारगर ढंग से काम कर सका तो किसी गरीब महिला की मजबूरी का फायदा
धनिकों द्वारा, मौज-मस्ती करने वालों द्वारा नहीं उठाया जा सकेगा.
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