यह अपने आपमें शर्मनाक है कि आधुनिकता और उत्तर-आधुनिकता की आदर्शवादिता दिखाने
वाले समाज में खुलेआम भ्रूण लिंग जाँच जैसा कुकृत्य किया जा रहा है. इससे भी अधिक शर्मनाक
ये है कि इस तरह के कुकृत्यों में वो चिकित्सक सम्मिलित हैं जिनको समाज में भगवान का
स्थान प्राप्त है. इस तरह के आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों के हौसले कितने बुलंद हैं
कि इसके निरोध के लिए बने अधिनियम (PCPNDT Act) का कोई भी खौफ इनके मन-मष्तिष्क पर नहीं है. यदि कानून
का ही डर होता तो देश भर में लिंगानुपात में गिरावट देखने को न मिल रही होती. वर्ष
2011 की जनगणना में वर्ष
2001 की जनगणना के मुकाबले लिंगानुपात में किंचित मात्र सुधार
होता दिखा है किन्तु ये संतुष्ट करने वाला नहीं कहा जायेगा क्योंकि इसी अवधि में शिशु
लिंगानुपात में व्यापक कमी आई है.
चिकित्सा विज्ञान स्पष्ट रूप से बताता है कि लगातार होते गर्भपात से महिला के गर्भाशय
पर विपरीत प्रभाव पड़ता है और इस बात की भी आशंका रहती है कि महिला भविष्य में गर्भधारण
न कर सके. पुत्र की लालसा में बार-बार गर्भपात करवाते रहने से गर्भाशय के कैंसर अथवा
अन्य गम्भीर बीमारियां होने से महिला भविष्य में माँ बनने की अपनी प्राकृतिक क्षमता
भी खो देती है. इसके साथ ही महिला के गर्भाशय से रक्त का रिसाव होने की आशंका भी बनी
रहती है, जिसके परिणामस्वरूप महिला
के शरीर में खून की कमी होने से अधिसंख्यक मामलों में गर्भवती होने पर अथवा प्रसव के
दौरान महिला की मृत्यु हो जाती है. इसके अतिरिक्त एक सत्य यह भी है कि जिन परिवारों
में एक पुत्र की लालसा में कई-कई बच्चियों जन्म ले लेती हैं वहाँ उनकी सही ढंग से परवरिश
नहीं हो पाती है. उनकी शिक्षा, उनके लालन-पालन, उनके स्वास्थ्य,
उनके खान-पान पर भी उचित रूप से ध्यान
नहीं दिया जाता है. इसके चलते वे कम उम्र में ही मृत्यु की शिकार हो जाती हैं अथवा
कुपोषण का शिकार होकर कमजोर बनी रहती हैं. इसके अलावा समाज में अनेक विषमताओं के उत्पन्न
होने का खतरा भी है. विवाह योग्य लड़कियों का कम मिलना, महिलाओं की खरीद-फरोख्त, जबरन महिलाओं को उठाया जाना, बलात्कार, बहु-पति प्रथा आदि विषम स्थितियों से इतर कुछ बिन्दु ऐसे हैं जिनको नजरअंदाज नहीं
किया जा सकता है. समाज में महिलाओं की संख्या कम हो जाने से शारीरिक आवश्यकताओं की
पूर्ति हेतु महिलाओं की खरीद-फरोख्त होना, एक महिला से अधिक पुरुषों के शारीरिक संबंधों के बनने की आशंका, इससे यौन-जनित रोगों के होने की सम्भावना बनती
है. सवाल खड़ा होता है तो इनको रोका कैसे जाए? इनके अपराध पर अंकुश कैसे लगाया जाये? इनकी कुप्रवृत्ति को समाप्त कैसे किया जाये?
इस विकृति से निपटने के लिए हर बार जन-जागरूकता की बात की जाती है किन्तु लगता
है कि जनता ने जागरूकता से किनारा करना शुरू कर दिया है. जनसहयोग के साथ-साथ प्रशासन
को सख्ती से कार्य करने की जरूरत है. सरकारी, गैर-सरकारी चिकित्सालयों में इस बात की व्यवस्था की जाये
कि प्रत्येक गर्भवती का रिकॉर्ड बनाया जाये और उसे समय-समय पर प्रशासन को उपलब्ध करवाया
जाये. ध्यान देने योग्य ये तथ्य है कि एक महिला जो गर्भवती है, उसे नौ माह बाद प्रसव होना ही होना है,
यदि कुछ असहज स्थितियाँ उसके साथ उत्पन्न
नहीं होती हैं. ऐसे में यदि नौ माह बाद प्रसव संपन्न नहीं हुआ तो इसकी जाँच हो और सम्पूर्ण
तथ्यों, स्थितियों की पड़ताल की
जाये. यदि किसी भी रूप में भ्रूण हत्या जैसा आपराधिक कृत्य सामने आता है तो परिवार-डॉक्टर
को सख्त से सख्त सजा दी जानी चाहिए. ऐसे परिवारों को किसी भी सरकारी सुविधा का लाभ
लेने से वंचित कर दिया जाये, चिकित्सक
का लाइसेंस आजीवन के लिए रद्द कर दिया जाये, ऐसे सेंटर्स तत्काल प्रभाव से बंद करवा दिए जाएँ और दंड
का प्रावधान भी साथ में रखा जाये. कुछ समय तक कठोर से कठोर क़दमों की जद्दोजहद किये
जाने की जरूरत है.
सामाजिक प्राणी होने के नाते हर जागरूक नागरिक की जिम्मेवारी बनती है कि वो कन्या
भ्रूण हत्या निवारण हेतु सक्रिय रूप से अपना योगदान दे. अपने परिवार के बुजुर्गों को
समझाने का काम करें कि किसी भी वंश का नाम बेटियों के द्वारा भी चलता रहता है. उनको
महारानी लक्ष्मीबाई, इंदिरा गाँधी
का उदाहरण देना होगा. समाज के प्रत्येक क्षेत्र में महिलाओं को आदर्श रूप में प्रस्तुत
करके बच्चियों के साथ-साथ उनके माता-पिता के मन में भी महिलाओं के प्रति आदर-सम्मान
का भाव जाग्रत करना होगा. इधर देखने में आया है कि दलालों की मदद से बहुत से लालची
और कुत्सित प्रवृत्ति के चिकित्सक अपनी मोबाइल मशीन के द्वारा निर्धारित सीमा का उल्लंघन
करके भ्रूण लिंग की जाँच अवैध तरीके से करने निकल पड़ते हैं. जागरूकता के साथ ऐसी किसी
भी घटना पर, मशीन पर, अपने क्षेत्र में अवैध रूप से संचालित अल्ट्रासाउंड
मशीन की पड़ताल भी करते रहें और कुछ भी संदिग्ध दिखाई देने पर प्रशासन को सूचित करें.
इसके साथ-साथ जन्मी बच्चियों के साथ होने वाले भेदभाव को भी रोकने हेतु हमें आगे आना
होगा. उनके खान-पान, रहन-सहन,
पहनने-ओढ़ने, शिक्षा-दीक्षा, स्वास्थ्य-चिकित्सा आदि की स्थितियों पर भी ध्यान देना
होगा कि कहीं वे किसी तरह के भेदभाव का, दुर्व्यवहार का शिकार तो नहीं हो रही हैं. यदि इस तरह के कुछ छोटे-छोटे कदम उठाये
जाएँ तो संभव है कि आने वाले समय में बेटियाँ भी समाज में खिलखिलाकर अपना भविष्य संवार
सकती हैं. यदि ऐसा नहीं किया गया तो धूर्त और कुप्रवृत्ति के चिकित्सकों के प्रतिनिधि
घर-घर जाकर लोगों को भ्रूण लिंग जाँच, कन्या भ्रूण हत्या के लिए प्रेरित/प्रोत्साहित
करेंगे. इसके साथ वह दिन भी दूर नहीं होगा जबकि बेटों के विवाह के लिए बेटियाँ मिलनी
बंद हो जाएँगी और समाज एक तरह की कबीलाई संस्कृति में परिवर्तित हो जायेगा.
चित्र गूगल छवियों से साभार
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " सम्मान खोते उच्च न्यायालय “ , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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