पानी के लिए लगभग समूचे देश में
हाहाकार मचा हुआ है. इस हाहाकार में सर्वाधिक बुरी स्थिति में बुन्देलखण्ड क्षेत्र
दिखाई दे रहा है. अब तो नित्य ही खबरें सामने आ रही हैं जिनसे ज्ञात हो रहा है कि
कई-कई इलाकों में तो दसियों दिन से पानी की एक बूँद के दर्शन भी नहीं हुए हैं. कई
क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ भूगर्भीय जल स्तर पिछले वर्षों के मुकाबले और नीचे चला गया
है. ये जानते-समझते हुए कि पानी न केवल मनुष्य के जीवन हेतु वरन जीव-जंतुओं के लिए
भी अनिवार्य तत्त्व है, जल संरक्षण के उपाय गंभीरता से किये ही नहीं जा रहे हैं. बुन्देलखण्ड
के सन्दर्भ में देखें तो यहाँ के भू माफियाओं ने, खनन माफियाओं ने विगत कई वर्षों
से हरे-भरे बुन्देलखण्ड को उजाड़ने का कुचक्र रचाया हुआ है. कुछ गंभीर अध्येताओं के
अध्ययन रिपोर्टों को आधार बनायें तो वर्तमान में बुन्देलखण्ड में कुल क्षेत्रफल का
दस प्रतिशत से कम जंगल बचे हुए हैं. किसी समय में इस वन-सम्पदा का क्षेत्रफल चालीस
प्रतिशत के आसपास ठहरता था. इन जंगलों के समाप्त होने के मूल में यहाँ के पर्वतों
का लगातार मिटते जाना भी है. पत्थरों के द्वारा आर्थिक लाभ लेने के स्वार्थ ने
यहाँ के माफियाओं ने पहाड़ों को, जंगलों को पूरी तरह से मिटा दिया है. एक बहुत बड़े
इलाके में दिन-रात चलती क्रेशर मशीनों के कारण किलोमीटरों तक धूल के बादल बने
दिखाई देते हैं. इस धूल ने रहे-सहे वृक्षों पर, पेड़-पौधों पर, उपजाऊ जमीन पर अपना
कब्ज़ा कर रखा है. हरियाली के स्थान पर सफ़ेद चादर सी लगातार गहराती जा रही है.
बुन्देलखण्ड में जल-संकट का हाल तब
है जबकि यहाँ नदियों, जलाशयों, कुँओं आदि की पर्याप्त उपलब्धता है. यमुना, बेतवा,
नर्मदा, काली, सिंध, धसान, केन आदि नदियों; कीरत सागर, मदन सागर, सेमरताल आदि के
साथ-साथ बुन्देलखण्ड का कश्मीर कहा जाने वाला चरखारी है, जो अपनी झीलों के कारण
प्रसिद्द है. इसके अलावा पातालतोड़ कुँओं की उपलब्धता भी यहाँ है. असीमित भूगर्भीय
जलस्त्रोत धुरहट जैसे स्थान बुन्देलखण्ड में हैं. इसके बाद भी यहाँ जल संकट का
होना यहाँ के निवासियों के जागरूक न होने, संवेदनशील न होने का ही परिचायक है. भू
एवं खनन माफिया तो लगातार यहाँ की वन सम्पदा का, पर्वत श्रेणियों का नाश करके
जल-संकट पैदा कर ही रहे हैं, ज्यादा से ज्यादा आर्थिक लाभ लेने के लालच में
बड़े-बड़े किसानों द्वारा भी भूगर्भीय जल स्त्रोतों का जबरदस्त ढंग से विदोहन किया
जा रहा है. इसने भी जल स्तर को लगातार कम करके भी जल-संकट पैदा किया है. एक अनुमान
के अनुसार बुन्देलखण्ड में औसत बारिश 95 सेंटीमीटर होती है. इसके
चलते कृषि योग्य जलसंकट लगभग बना ही रहता है. ऐसे में यहाँ उन्हीं कृषि फसलों को
वरीयता दी जाती रही है जिनमें सिंचाई के लिए कम से कम पानी की आवश्यकता हो. इधर
कुछ वर्षों से आर्थिक लाभ के चलते ऐसी फसलों का चयन भी किसानों द्वारा किया जाने
लगा जिनमें अत्यधिक पानी की आवश्यकता होती है. इस कारण से नलकूपों के माध्यम से
भू-गर्भीय जल स्त्रोतों से पानी खींचकर उन्हें सुखाया जाने लगा. एक अनुमान के
मुताबिक बुन्देलखण्ड में प्रतिवर्ष भूजल स्तर में दो से चार मीटर तक की गिरावट आ
रही है. ऐसे में सोचा जा सकता है कि हालात कितने भयावह होते जा रहे हैं.
अब हालात ऐसे हो गए हैं कि महज
कमियाँ निकाल कर, अव्यवस्थाओं का रोना रोकर इनका समाधान नहीं किया जा सकता है. काफी
समय पहले भारत सरकार के सिंचाई एवं विद्युत मंत्रालय के आंकड़ों से ज्ञात हुआ था कि
बुन्देलखण्ड में सम्पूर्ण वर्षाजल का लगभग ग्यारह प्रतिशत जल ही उपयोग में लाया जा
पाता है, शेष जल बर्बाद हो जाता है. अब ऐसे जल को बचाए जाने की जरूरत है. सरकार के
साथ-साथ यहाँ के जनसामान्य को जागरूक होने की आवश्यकता है. कृषि फसलों में ऐसी
फसलों का चुनाव करे जिनमें कम से कम पानी की आवश्यकता हो. वर्षाजल के संग्रहण की
व्यवस्था भी करनी होगी. पानी की बर्बादी को रोकना होगा. अपने-अपने क्षेत्रों के
तालाबों, जलाशयों, कुँओं आदि को गन्दगी से, कूड़ा-करकट से बचाना होगा. जहाँ तक संभव
हो, नए-नए तालाबों, कुँओं आदि का निर्माण भी जनसामान्य को करना चाहिए. इसके अलावा
सरकारी स्तर पर बुन्देलखण्ड में क्रेशर पर, सीमेंट निर्माण कारखानों पर रोक लगाई
जानी चाहिए. इससे न केवल जंगल मिट रहे हैं, उपजाऊ धरती नष्ट हो रही है वरन अनेकानेक
बीमारियों के चलते यहाँ के निवासी भी गंभीर बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं. बुन्देलखण्ड
का जल-संकट जितना प्रकृतिजन्य है उससे कहीं अधिक मनुष्यजन्य है. ऐसे में प्रकृति अपने
स्तर से जल-संरक्षण कैसे करेगी उससे अधिक महत्त्वपूर्ण ये है कि जनसामान्य उसके संरक्षण
में आगे कैसे आयेंगे? भविष्य की भयावहता को वर्तमान की भयावहता से देखा-समझा जा
सकता है. एक-एक दिन की निष्क्रियता अगली कई-कई पीढ़ियों के दुखद पलों का कारक
बनेगी.
(चित्र चित्रकूट जिले में विशेष बुन्देलखण्ड पैकेज से निर्मित रसिन बाँध है. इसे प्रवासनामा से लिया गया है.)
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