देश में एक तरफ केन्द्रीय स्तर पर
स्वच्छ भारत अभियान चलाया जा रहा है, दूसरी तरफ आम नागरिक जाने-अनजाने स्वच्छ भारत
की संकल्पना पर ग्रहण सा लगाने में लगा हुआ है. आज महानगरों की, शहरों की बात तो
छोड़ ही दीजिये, सामान्य से कस्बे, ग्रामीण इलाके भी प्रदूषण की चपेट में आने लगे
हैं. हवा में फैला
धुआँ, कर्कश
कानफोडू शोर, गन्दा
पेयजल, नदियों
में मिलता अपशिष्ट, जगह-जगह लगते-बढ़ते पोलिथीन के ढेर आज हमारे समाज की पहचान
बनते जा रहे हैं. वैसे देखा जाये तो समूचा प्रदूषित वातावरण ही मनुष्य के जीवन
हेतु हानिकारक है किन्तु इनमें भी सर्वाधिक घातक स्थिति पालीथीन के बढ़ते प्रचलन के
कारण उत्पन्न हो रही है. अब तो विडम्बना ये है कि पोलिथीन का चलन न केवल नगरों,
महानगरों में बढ़ा है बल्कि गाँव-गाँव तक इसने गहरी पैठ बना ली है. पॉलीथीन के घातक
होने का मुख्य कारक उसका नष्ट न होना तो है ही साथ ही उसके द्वारा उत्सर्जित होने
वाली जहरीली गैसें भी इसका बहुत बड़ा कारक हैं. पॉलीथीन का निस्तारण अपने आपमें ही एक
गंभीर समस्या है क्योंकि इसे किसी भी रूप में नष्ट नहीं किया जा सकता है.
जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है
कि पॉलीथीन में पाली एथीलीन
होती है जो एथिलीन गैस बनाती है. इसमें पालीयूरोथेन नामक रसायन के अतिरिक्त पालीविनायल
क्लोराइड (पीवीसी) भी पाया जाता है. पॉलीथीन हो या कोई भी प्लास्टिक, उसमें पाये जाने
वाले इन रसायनों को नष्ट करना लगभग असंभव ही होता है क्योंकि प्लास्टिक या पॉलीथीन
को जमीन में गाड़ने, जलाने, पानी
में बहाने अथवा किसी अन्य तरीके से नष्ट करने से भी इसको न तो समाप्त किया जा सकता
है और न ही इसमें शामिल रसायन के दुष्प्रभाव को मिटाया जा सकता है. यदि इसे जलाया
जाये तो इसमें शामिल रसायन के तत्व वायुमंडल में धुंए के रूप में मिलकर उसे प्रदूषित
करते हैं. यदि इसको जमीन में दबा दिया जाये तो भीतर की गर्मी, मृदा-तत्त्वों से
संक्रिया करके ये रसायन जहरीली गैस पैदा करते हैं, इससे भूमि के अन्दर विस्फोट की
आशंका पैदा हो जाती है. पॉलीथीन को जलाने से क्लोरोफ्लोरो कार्बन गैस धुंए के रूप
में वायुमंडल से मिलकर ओजोन परत को नष्ट करती है. इसके साथ-साथ पॉलीथीन को जमीन में
गाड़ देना भी कारगर अथवा उचित उपाय नहीं है क्योंकि यह प्राकृतिक ढंग से अपघटित नहीं
होता है इससे मृदा तो प्रदूषित होती ही है साथ ही ये भूमिगत जल को भी प्रदूषित
करती है. इसके साथ-साथ जानवरों द्वारा पॉलीथीन को खा लेने के कारण ये उनकी मृत्यु
का कारक बनती है. ये सब जानते-समझते हुए भी लोग बहुतायत में पॉलीथीन का उपयोग करने
में लगे हुए हैं. पॉलीथीन के दुष्प्रभावों के प्रति जागरूकता दिखाने के बाद भी
इसका प्रयोग धड़ल्ले से हो रहा है, साथ ही इस पर प्रतिबंध लगाने हेतु आन्दोलन भी चल
रहे हैं. यद्यपि केन्द्रीय सरकार ने रिसाइक्लड, प्लास्टिक मैन्यूफैक्चर एण्ड यूसेज रूल्स के अन्तर्गत
1999 में 20 माइक्रोन से कम मोटाई के रंगयुक्त प्लास्टिक बैग के प्रयोग तथा उनके विनिर्माण
पर प्रतिबंध लगा दिया था किन्तु ऐसे प्रतिबन्ध वर्तमान में सिर्फ कागजों तक ही
सीमित रह गए हैं. इसका मूल कारण पॉलीथीन बैग की मोटाई की जांच करने की तकनीक की
अपर्याप्तता है. पॉलीथीन के दुष्परिणामों को जानने के बाद भी हम सबकी विडम्बना ये है
कि हम पूरी तन्मयता से इसका उपयोग करने में लगे हैं. इसमें भयावहता ये है कि देश के
कई राज्यों में कड़ी सजा के प्रावधान होने के बाद भी पॉलीथीन का उपयोग किया जा रहा है.
ऐसे में पॉलीथीन के दुष्प्रभाव को
रोकने का सर्वाधिक सुगम उपाय उसके पूर्ण प्रतिबन्ध का ही बचता है. इसके लिए उत्तर
प्रदेश सरकार द्वारा उठाया गया कदम निश्चित रूप से सराहनीय है. मुख्यमंत्री अखिलेश
द्वारा पॉलीथीन के पूर्ण प्रतिबन्ध का नियम प्रदेश में लागू कर दिया है. यद्यपि
इसके बाद भी लोग पॉलीथीन के इस्तेमाल का मोह त्याग नहीं पा रहे हैं तथापि जगह-जगह इसके
कड़ाई से पालन करने के उदाहरण भी सामने आये हैं. पॉलीथीन के द्वारा उत्पन्न वर्तमान
समस्या और भावी संकट को देखते हुए नागरिकों को स्वयं में जागरूक होना पड़ेगा. कोई
भी सरकार नियम बना सकती है, अभियान का सञ्चालन कर सकती है किन्तु उसे सफलता के
द्वार तक ले जाने का काम आम नागरिक का ही होता है. देश के कई-कई प्रदूषित राज्यों,
शहरों की भांति उत्तर प्रदेश भी गंदगी का शिकार है, राज्य की राजधानी में भी बुरी
तरह से प्रदूषण देखने को मिल रहा है. ऐसे हालात सिर्फ लखनऊ अकेले में नहीं वरन बहुतायत
शहरों, ग्रामीण इलाकों में भी हैं. ऐसे में राज्य सरकार द्वारा पॉलीथीन के
प्रतिबन्ध को आम नागरिकों द्वारा ही सफल बनाया जा सकता है.
इसके लिए उनके द्वारा दैनिक उपयोग
में प्रयोग के लिए कागज, कपड़े और जूट
के थैलों का उपयोग किया जाना चाहिए. नागरिकों को स्वयं भी जागरूक होकर दूसरों को
भी पॉलीथीन के उपयोग करने से रोकना होगा. हालाँकि अभी भी कुछ सामानों, दूध की
थैली, पैकिंग वाले सामानों आदि के लिए सरकार ने पॉलीथीन के प्रयोग की छूट दे रखी
है, इसके लिए नागरिकों को सजग रहने की आवश्यकता है. उन्हें ऐसे उत्पादों के उपयोग
के बाद पॉलीथीन को अन्यत्र, खुला फेंकने के स्थान पर किसी रिसाइकिल स्टोर पर अथवा
निश्चित स्थान पर जमा करवाना चाहिए. ये बात हम सबको स्मरण रखनी होगी कि सरकारी
स्तर पर पॉलीथीन पर लगाया गया प्रतिबन्ध कोई राजनैतिक कदम नहीं वरन हम नागरिकों
के, हमारी भावी पीढ़ी के सुखद भविष्य के लिए उठाया गया कदम है. इसको कारगर उसी
स्थिति में किया जा सकेगा, जबकि हम खुद जागरूक, सजग, सकारात्मक रूप से इस पहल में
अपने प्रयासों को जोड़ देंगे.
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन - भारत भूषण जी की पुण्यतिथि में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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