आप सबको मकर-संक्रांति पर्व की शुभकामनायें. सूर्य के धनु राशि को छोड़कर मकर राशि
में प्रवेश करने के कारण इस पर्व को मकर-संक्रांति के नाम से जाना जाता है. इसके
साथ ही इसी दिन से सूर्य की उत्तरायण गति भी प्रारम्भ होती है. शास्त्रों के
अनुसार सूर्य के दक्षिणायन रहने को देवताओं की रात्रि अर्थात नकारात्मकता का
प्रतीक माना जाता है तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात सकारात्मकता का
प्रतीक माना जाता है. संक्रांति का भावार्थ अवस्था-परिवर्तन से या फिर किसी स्थिति
से गुजरने के रूप में भी लिया जाता है. देखा जाये तो हमारा देश भी संक्रांति-काल
से गुजर रहा है.
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परम्पराओं, संस्कारों की दृष्टि से आधुनिक पीढ़ी अपने बने-बनाये नियमों, कानूनों, परम्पराओं को
स्थापित करने के पक्ष में दिख रही है वहीं बुजुर्ग पीढ़ी पुरातन संस्कारों, विचारों को क्रियान्वित करने पर
जोर दे रही है. ऐसी संक्रांति में पारिवारिकता की, सामाजिकता की अत्यंत
प्राचीन विवाह संस्था भी संकट के दौर से गुजर रही है. लिव-इन-रिलेशन, समलैंगिकता,
विवाहेतर सम्बन्ध, विवाह-पूर्व यौन सम्बन्ध आदि के चलते पति-पत्नी का आपसी
विश्वास, प्रेम कहीं दरक सा रहा है. परिवार में, दोस्तों में, सहयोगियों में, समाज
में अन्य लोगों में विश्वास, प्रेम, स्नेह, भाईचारा, सद्भाव, सहयोग आदि-आदि
संक्रमित दौर में है, संकटग्रस्त है. रक्त-सम्बन्धियों के मध्य रिश्तों की गरिमा
बरक़रार नहीं है, उम्र का ख्याल रखे बिना अनेकानेक कार्यों को अंजाम दिया जा रहा
है, इंसानियत का रूप विकृत होकर हैवानियत में परिवर्तित होता जा रहा है.
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परिवार की शांति, सुरक्षा, विश्वास खंडित हो रहा है तो देश की अखंडता, एकता,
सद्भाव, भाईचारा आदि पर भी संक्रमण का दुष्प्रभाव देखने को मिल रहा है. बाहरी
ताकतों के खतरे के साथ-साथ देश वर्तमान में अंदरूनी फिरकापरस्त ताकतों से भी जूझ
रहा है. सीमा पर आतंकी हमले का जितना भय दिखता है उससे कहीं अधिक भय देश के
अंदरूनी हिस्सों में आतंकी घटनाओं के होने का बना हुआ है. दिन-प्रतिदिन इस तरह के
डर का बढ़ना, अराजक घटनाओं में वृद्धि होते जाना, किसी भी घटना पर अकारण धर्म-मजहब
का मुखौटा लगा देना, सहिष्णुता-असहिष्णुता के नाम पर वैमनष्यता फैलाना, सब तरह से
सुरक्षित लोगों का भी तुष्टिकरण के चलते जनता को बरगलाने-डराने वाले बयान देना
आदि-आदि दर्शाता है कि सबकुछ सामान्य सा तो नहीं है. संक्रांति का ये दौर अत्यधिक
भयावह है और इससे जल्द छुटकारा मिलता दूर-दूर तक दिखता नहीं है.
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स्थितियाँ लगातार भयावहता के दृश्य प्रदर्शित करने में
लगी हैं और इस भयावहता को व्यक्तियों के संक्रमण ने, उनकी मनोदशा के संक्रांति-काल
ने और भी तेजी से बढ़ा दिया है. समाज में भय का वातावरण तेजी से गहराता जा रहा है.
अकेले निकलता हर इंसान आज घबराया हुआ है, फिर वो चाहे स्त्री हो, लड़की हो, मासूम बालिका
हो, पुरुष हो, लड़का हो या फिर कोई वृद्ध ही क्यों न हो. संक्रमण के इस दौर में सब
ही किसी न किसी रूप में सशंकित से दिख रहे हैं. ऐसे में जबकि भगवान भास्कर अपनी गति
परिवर्तित कर दक्षिणायन से उत्तरायण में आ गए हैं अर्थात देवताओं के दिन, उनके सकारात्मक पल तो आरम्भ हो गए हैं, मन प्रश्न कर रहा है कि
हमारा देश गति परिवर्तित करते हुए कब दक्षिणायन से उत्तरायण में आएगा? देश के,
देशवासियों के दिन कब नकारात्मकता से सकारात्मकता में आयेंगे?
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