‘चयन के बदले डीडीसीए के चयनकर्ता
द्वारा सेक्स की माँग की गई’ जैसे आरोप की गम्भीरता को समझने की आवश्यकता है. इस
आरोप को सामान्य आरोप अथवा झूठा बयान कहकर विस्मृत नहीं किया जा सकता है क्योंकि
ऐसे आरोप की जानकारी किसी सामान्य व्यक्ति द्वारा नहीं दी गई है. संवैधानिक पद पर
बैठे, मुख्यमंत्री जैसे जिम्मेवार पद पर बैठे किसी व्यक्ति द्वारा यदि इस तरह के
आरोप का खुलासा किया जा रहा है तो ऐसे आरोप को आपसी विवाद कहकर नजरंदाज़ नहीं किया
जा सकता है. दिल्ली मुख्यमंत्री के सचिव के कार्यालय पर सीबीआई के छापे के तत्काल
बाद ही जागृत अवस्था में आये दिल्ली मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने केन्द्रीय वित्त
मंत्री अरुण जेटली को डीडीसीए के घोटालों में घेरने का प्रयास किया. इसी प्रयास
में वे खिलाड़ी के चयन के बदले सेक्स की माँग जैसे आरोप को सामने रखने से भी नहीं
चूके. ये आरोप जितनी सपाट तरीके से डीडीसीए चयनकर्ताओं पर लगाया गया उतनी ही सपाट
तरीके से इसे भुला सा दिया गया. इस आरोप की गम्भीरता पर न तो डीडीसीए की तरफ से
ध्यान दिया गया और न ही स्वयं दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल द्वारा दिया गया. इस
तरह के आरोप के द्वारा भले ही केजरीवाल ने डीडीसीए को अथवा जेटली को घेरने का
प्रयास किया हो किन्तु इसे हलके में नहीं लिया जा सकता है. प्रत्यक्ष रूप से न सही
किन्तु अप्रत्यक्ष रूप से ही केजरीवाल ने अनेकानेक चयनकर्ताओं की माँओं के चरित्र
पर सवालिया निशान लगा दिए. डीडीसीए चयनकर्ताओं ने मात्र उसी एक खिलाड़ी का चयन नहीं
किया होगा, यदि सेक्स की माँग सही है तो केवल उसी के खिलाड़ी की माँ से नहीं की गई
होगी और यदि ऐसा कोई भी आरोप असत्य है तो भी कितनी-कितनी महिलाओं, कितने-कितने
खिलाडियों को शर्मसार होना पड़ रहा होगा इसका अंदाजा स्वयं केजरीवाल को नहीं होगा.
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ऐसे आरोप की जानकारी होने के बाद
भी केजरीवाल का शांत होकर बैठ जाना अपने में एक अलग कहानी कहता है. जैसा कि उनके
द्वारा बताया गया कि एक पत्रकार ने उनको ऐसी जानकारी दी तो उन्हें समूचे घटनाक्रम
को स्वयं संज्ञान में लेते हुए डीडीसीए के चयनकर्ताओं के खिलाफ जाँच बैठानी चाहिए
थी. और यदि इस तरह की बयानबाज़ी में कोई सत्यता नहीं है तो केजरीवाल ने न केवल
समूचे लोकतंत्र का अपमान किया है बल्कि तमाम महिलाओं का अपमान किया है, देश की
प्रतिभाओं का भी अपमान किया है. मुख्यमंत्री जैसे संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति के
द्वारा ऐसी जानकारी देने के बाद भी किसी तरह की जाँच न करना इसे कपोलकल्पित सिद्ध
करता है. यदि ऐसा महज राजनैतिक कटुता के कारण किया गया है तो घिनौनी राजनीति का
इससे बड़ा उदाहरण कहीं और नहीं मिलेगा. ऐसे बयान के बाद भी आश्चर्य देखिये कि किसी
भी जागरूक महिला संगठन की तरफ से, न किसी राजनैतिक दल की तरफ से, न डीडीसीए की तरफ
से, न किसी पत्रकार संगठन की तरफ से इसका कोई विरोध नहीं किया गया है. ये समझाने
के लिए ही पर्याप्त है कि किस तरह से राजनीति में महिलाओं को सम्मान दिया जा रहा
है. किसी वरिष्ठ राजनीतिक द्वारा सौ टका टंच माल से लेकर एक मुख्यमंत्री द्वारा
सेक्स की माँग के बयान तक उतर आना समूची स्थिति को स्पष्ट करता है.
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अपने आन्दोलन के बाद से जिस तरह से
केजरीवाल और उनकी टीम ने लोकप्रियता हासिल की थी वो उनके क्रियाकलापों के चलते
लगातार कम होती जा रही है. उनके समर्थक भले ही कुछ भी कहते रहें किन्तु आम आदमी
पार्टी की रैली में एक किसान की आत्महत्या के प्रयास में मृत्यु हो जाना, दिल्ली
में हुए रेप कांड के नाबालिग आरोपी को रिहाई पश्चात् आर्थिक सहायता उपलब्ध करवाए
जाने सम्बन्धी बयान, आम आदमी पार्टी के मंत्रियों, नेताओं का कई-कई आपराधिक मामलों
में लिप्त पाया जाना, मुख्यमंत्री के सचिव के कार्यालय से विदेशी मुद्रा का मिलना
और अब स्वयं मुख्यमंत्री केजरीवाल द्वारा महिलाओं, खिलाडियों के चरित्र को घेरे
में खड़ा कर देना अत्यंत क्षोभजनक है. केजरीवाल को समझना चाहिए कि दिल्ली का
मुख्यमंत्री होना किसी राज्य का मुख्यमंत्री होना भर नहीं है; देश की राजधानी होने
के कारण वैश्विक दृष्टि दिल्ली में लगी रहती है. उनके इस बयान के दीर्घगामी
परिणाम/दुष्परिणाम क्या होंगे ये तो आने वाला समय बताएगा किन्तु इस तरह के बयान को
देने और फिर किसी भी तरह की कार्यवाही न करना उनकी क्षुद्र मानसिकता को ही दर्शाता
है. राजनीति में विभिन्न दलों के बीच, विभिन्न व्यक्तियों के मध्य आपसी वाद-विवाद
चलते ही रहते हैं किन्तु राजनैतिक विवाद में जिस तरह के कदम केजरीवाल द्वारा अथवा
उनके अन्य नेताओं द्वारा उठाये जाते रहे हैं वे निंदनीय हैं. कहीं न कहीं ‘राजनीति
बदलने आये हैं’ जैसे उनके बयान की ही बखिया उधेड़ते हैं. यहाँ इन नेताओं को नहीं
वरन उन महिलाओं को सजग होने की आवश्यकता है जो जरा-जरा सी बात को महिलाओं की इज्जत
से जोड़ते हुए वितंडा खड़ा करने लगती हैं. केजरीवाल ने जो कुछ कहा है वो महज बयान
नहीं, महज एक आरोप नहीं बल्कि अनेकानेक माताओं का चरित्रहनन है.
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ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, सियाचिन के परमवीर - नायब सूबेदार बाना सिंह - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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