अंततः किशोर न्याय कानून को
राज्यसभा से मंजूरी मिल ही गई, अब इसे राष्ट्रपति की मंजूरी मिलना बाकी है. इस
मंजूरी के बाद ये विधेयक पूर्ण रूप से कानून बनकर सामने आएगा. इस कानूनी विधेयक के
अनुसार सोलह से अठारह वर्ष तक के किशोर अपराधियों पर भी वयस्क अपराधियों की तरह
मुकदमा चलाये जाने का प्रावधान किया गया है. इसके साथ ही विधेयक में ऐसी व्यवस्था
की गई है कि किसी भी किशोर अपराधी को फाँसी अथवा उम्रकैद नहीं दी जा सकेगी. इस
कानून के अनुसार अधिकतम सात वर्ष से दस वर्ष तक की सजा दी जा सकेगी. संसद में बहस
के दौरान इस तरह से दर्शाया गया कि इस कानून के अमल में आने के बाद नाबालिग अथवा
किशोर अपराधियों में भय का माहौल बनेगा, वे अपराध करने से डरने लगेंगे. किशोर
न्याय कानून किस तरह से किशोर अपराधियों को भयभीत करेगा, किस तरह समाज में किशोरवय
के लोगों को अपराध करने से रोकेगा ये तो आने वाला समय बताएगा. दिल्ली में हुए
जघन्य रेप कांड के बाद जिस तरह से नाबालिग अपराधियों पर मुकदमा चलाये जाने, उन्को
भी वयस्कों की तरह सजा दिए जाने की माँग उठी थी, उस माँग को तीव्रता पुनः उसी
अपराधी के छूट जाने के बाद मिली. पीड़ित लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार के बाद उसके
गुप्तांग में सरिया गुसेड़ कर सड़क पर फेंक दिए जाने जैसा ह्रदयविदारक अपराध करने
वाले अपराधी को महज तीन साल की सजा देकर इसलिए बरी कर दिया जाता है क्योंकि अपराध
करने के समय वो नाबालिग था. ये अपने आपमें विद्रूप है कि एक व्यक्ति जो बलात्कार
करने में सक्षम है, किसी भी महिला से शारीरिक सम्बन्ध बनाने में सक्षम है, किसी की
हत्या करने की मानसिकता रखता है उसे उम्र के आधार पर नाबालिग होने के कारण सजा से
वंचित रखा जाता है.
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यदि हाल-फ़िलहाल में सिर्फ बलात्कार
को ही आधार बनाया जाये तो समाज में किशोर बलात्कारियों से अधिक संख्या वयस्क
बलात्कारियों की है. लगभग रोज ही किसी न किसी महिला को वयस्क उम्र के व्यक्ति
द्वारा अपनी हवस का शिकार बनाया जाता है. और ऐसा तब हो रहा है जबकि बलात्कारियों
को सजा देने के लिए कानून बना हुआ है. कानून बने होने के बाद भी, बलात्कार के
मामलों में सजा होने के बाद भी समाज में ऐसे अपराधों को रोका नहीं जा सका है;
अपराधियों के मन में कानून का खौफ पैदा नहीं किया जा सका है; लोगों को कानून का भय
दिखाकर अपराध से दूर रहने को सजग नहीं किया जा सका है. ऐसे में किस आधार पर कहा जा
सकता है कि किशोर न्याय कानून बनने के बाद किशोरवय के अपराधियों में डर जागेगा?
किस आधार पर कहा जा सकता है कि किशोर इस कानून के आने के बाद खुद को अपराध करने से
रोक सकेंगे? यहाँ एक बात समझनी होगी कि महज कानून बना देने से किसी अपराधी
मानसिकता वाले को अपराध करने से रोका नहीं
जा सकता है. हाँ, इस कानून के आने के बाद इतना अवश्य होगा कि नाबालिग अपराधियों (16 वर्ष से 18 वर्ष तक की उम्र वाले) पर वयस्कों की
भांति मुकदमा चलाया जा सकता है. कहा जा सकता है कि ये कानून ऐसे अपराधियों पर
मुकदमा चलाये जाने की कानूनी अनुमति प्रदान करता है. इसके बाद भी सवाल खड़ा होता है
कि 14-15 वर्ष तक की उम्र वाला कोई किशोर यदि दिल्ली कांड जैसा
जघन्य अपराध करता है तो उसे किस कानून के द्वारा दण्डित किया जा सकेगा? क्या उसके
लिए फिर से संसद के द्वारा नए कानून को लाना पड़ेगा? या फिर कानून के अभाव में ऐसा
अपराधी एकबार फिर रिहा कर दिया जायेगा?
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कानूनी दृष्टि से किसी के साथ
भेदभाव का होने पाए या फिर अपराध रोकने की दृष्टि से अपराधी की मानसिकता, उसकी
उम्र को आधार भले ही बनाया जाये किन्तु उसके साथ-साथ उस अपराध की जघन्यता को भी
ध्यान में रखा जाये. कोई व्यक्ति जो अपराध को वीभत्स स्थिति तक अंजाम देता हो उसे
महज उम्र के आधार पर, उसकी मानसिकता के आधार पर रिहा करना कहाँ तक न्यायसंगत है? जघन्य
अपराध की मामूली सी सजा देकर समाज में आपराधिक मानसिकता के लोगों के बीच कौन सा
सन्देश प्रेषित किया जायेगा, ये समझ से परे है. आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों में
किस तरह से ये कानून भय पैदा करेगा, उन्हें अपराध करने से रोकेगा, कहना मुश्किल
है. कानून का काम आवश्यक रूप से समाज में अपराधियों में भय पैदा करना और नागरिकों
को निर्भय होकर जीवन-यापन करने देने का होता है. मगर जब आपराधिक मानसिकता का कोई
व्यक्ति इन्हीं कानूनों का सहारा लेकर अपराध करने लगे तो समाज में निर्भय
जीवन-यापन की कल्पना करना संभव नहीं है. इस नए कानून का स्वागत किया जाना चाहिए
किन्तु साथ ही कानून को, न्यायालयों को अपने आपमें इतनी छूट लेनी होगी कि वो
अपराधी के जघन्य कृत्य के आधार पर भी कानून से इतर समाजहित में कोई निर्णय ले सके.
यदि ऐसा नहीं किया जा सकता तो संभव है कि अन्य कानूनों की भांति किशोर न्याय कानून
भी कानूनी किताबों में, दस्तावेजों में सुशोभित होता रहेगा.
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