18 दिसंबर 2015

बच्चों की परवरिश पर ध्यान देने की आवश्यकता


समाज जिस तरह के एकांगी होता जा रहा है, उसका सर्वाधिक असर परिवार पर दिखाई दे रहा है. इसमें भी कहें कि परिवार के सबसे छोटी इकाई ‘बच्चों’ पर ये एकांगीपन सर्वाधिक दुष्प्रभाव डाल रहा है तो कोई अतिश्योक्ति न होगी. देखने में आ रहा है कि बहुसंख्यक परिवारों ने अपने आपको सीमित कर रखा है. संयुक्त परिवार से बाहर निकल कर एकल परिवार और फिर उससे भी एक कदम आगे जाकर नाभिकीय परिवार सामने आने लगे हैं. ऐसे परिवारों के अस्तित्व में आने के बाद बच्चों के लालन-पालन सम्बन्धी अनेक समस्याओं से भी समाज को, माता-पिता को सामना करना पड़ा है. कई बार बच्चों की गतिविधियों को देखकर अभिभावकों को एहसास होता है कि क्या हम अपने बच्चों का लालन-पालन सही से नहीं कर पा रहे हैं? क्या हमारे बच्चे उद्दण्ड, अनुशासनहीन होते जा रहे हैं? क्या हमारे बच्चे माता-पिता के प्यार का नाजायज फायदा उठा रहे हैं? क्या माता-पिता बच्चों के बिगाड़ने में खुद प्रभावी भूमिका निभा रहे हैं?
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ये सवाल आये दिन, पल प्रति पल हमारे दिमाग में कौंधते रहते हैं. ऐसे सवालों का उभारना इसका संकेत है कि कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ अवश्य है. समाज में परिवार के बिखरते ढाँचे के कारण बच्चों की परवरिश की तरफ अभिभावकों का पर्याप्त ध्यान नहीं जा रहा है, जिसके चलते बच्चों में चिडचिड़ापन आता जा रहा है. यही कारण है कि अब समाज में आये दिन हम युवा, किशोरवय के लड़के-लड़कियों, मासूम बच्चों की असमय मृत्यु की खबरों को सुन रहे हैं. कहीं उनके द्वारा आत्महत्या किये जाने की खबर तो कहीं उनके द्वारा अपने साथी की हत्या किये जाने के बाद जान देने का मामला है. कहीं वे हताशा में आत्महत्या की तरफ मुड़ रहे हैं तो कभी नशे की हालत में बच्चे मृत्यु की तरफ जा रहे हैं तो कहीं किसी तरह के अपराधबोध के कारण ऐसा हो रहा है. बच्चों के साथ-साथ वर्तमान युवाओं की मनोदशा पर गौर किया जाये, किशोरवय के लोगों की मानसिकता को समझा जाये तो पता चलता है बहुतायत में ऐसे मामलों के पीछे प्यार में असफलता की, एकतरफा प्यार की कहानी छिपी होती है. ये अपने आपमें अचंभित करता है कि जिस उम्र में इन बच्चों को अपने कैरियर पर ध्यान देना चाहिए, रोजगार के लिए, भविष्य बनाने के लिए सचेत रहने की, जागरूक रहने की जरूरत है, उस समय वे नौनिहाल नशे का, अपराध का, हत्या का, आत्महत्या का रास्ता चुन रहे हैं.
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समस्या के आलोक में समझना होगा कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? यहाँ अभिभावक गलत हैं अथवा बच्चे गलत हैं? ये जानकारी करनी होगी कि समाज उनको गलत दिशा दिखा रहा है अथवा परिवार उनका सही दिशा-निर्देशन नहीं कर पा रहा है? वर्तमान समय की आपाधापी में माता-पिता दोनों ही अपनी गृहस्थी की गाड़ी को सुचारू रूप से चलाने के लिए जद्दोजहद करने में लगे हैं, साथ ही भौतिकतावादी दुनिया में दिखावे के लिए भी अभिभावकों द्वारा रहन-सहन को दिखावटी बनाए जाने की कवायद की जा रही है, जिसके चलते भी उनका एकमात्र मकसद धनोपार्जन रह जाता है. ऐसे में उनके द्वारा अपने बच्चों के लिए समय, स्नेह, प्यार आदि दे पाना सहज रूप से संभव नहीं हो पता है. मासिक रूप से भारी-भरकम जेबखर्च देने को, महंगी-महंगी बाइक, कार आदि उपलब्ध करवा देने को, एशो-आराम की सभी वस्तुओं की उपलब्धता को माता-पिता की प्यार भरी छाँव के रूप में नहीं देखा-समझा जा सकता है. इस स्थिति के दूसरे पहलू के रूप में विचार किया जाये तो बच्चे भी कम दोषी नहीं लगते हैं. बहुतायत अभिभावकों द्वारा अपनी सुविधानुसार सुख-सुविधा के सभी संसाधनों को उपलब्ध करवाए जाने के प्रयास किये जाते हैं. बच्चों की जायज, नाजायज मांगों को तुरंत स्वीकार कर लेना भी बच्चों में गलत सन्देश का बीजारोपण करता है. किशोरावस्था में बच्चों को सही-गलत को परिभाषित करना सहज नहीं होता है और वे अपने माता-पिता, परिवार से मिल रही आज़ादी को नकारात्मक रूप में देखने लगते हैं. सहज उपलब्ध स्थिति के चलते ही ऐसे बच्चों में कुछ भी सहजता से पा लेने की भावना घर करने लगती है और इसका दुष्परिणाम ये होता है कि ऐसे बच्चे किसी भी स्थिति में असफलता मिलने पर अपनी जान गँवा बैठते हैं अथवा सामने वाले की जान ले बैठते हैं.
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ऐसे मोड़ पर जबकि समाज घनघोर संक्रमण के दौर से गुजर रहा है, माता-पिता को अपने बच्चों के लालन-पालन में आरम्भ से ही इस बात का ख्याल रखा जाना चाहिए कि वे उनकी किसी भी तरह की नाजायज मांगों को न मानें. खुद किशोरावस्था के बच्चों को भी चाहिए कि वे समाज में सही-गलत को समझकर अपने माता-पिता की भावनाओं को सम्मान दें. बच्चों को समझना ही होगा कि दुनिया में कोई भी माता-पिता अपने स्तर पर अपने बच्चों का बुरा नहीं चाहते हैं और उसको अपनी सामर्थ्य भर प्रत्येक सुख-सुविधा उपलब्ध करवाने की कोशिश करते हैं. ऐसे में माता-पिता को अपने बच्चों को पर्याप्त समय देने की जरूरत है, उनकी आवश्यकताओं को सहज रूप में लेने की जरूरत है. माता-पिता का एक-एक पल, एक-एक कदम ही बच्चों को सही-गलत दिशा की तरफ ले जाता है.

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