जब किसी
प्रदेश में चपरासी पद के लिए आवेदन करने वालों में इंजीनियर, पी-एच० डी०,
परास्नातक, स्नातक आदि शामिल हों तो उस प्रदेश में रोजगार की स्थिति को समझा जा
सकता है. चपरासी के के 368 पदों के लिए तेईस
लाख से अधिक लोगों का आवेदन करना प्रदेश में बेरोजगारों की भारी-भरकम फ़ौज को
चित्रित करता है.कितना भयावह लगता है कि चपरासी के जिस पद की योग्यता महज पाँचवीं
उत्तीर्ण होना हो, उससे सम्बंधित आवेदन पत्रों की संख्या तिरेपन हजार है जबकि इसके
उलट उच्चतर शिक्षा प्राप्त लोगों के द्वारा किये गए आवेदन पत्रों की संख्या कई
गुणा अधिक है. खबर है कि डेढ़ लाख से अधिक आवेदन पत्र तो इंजीनियरिंग, बी०एस-सी०
आदि किये लोगों ने भरे हैं जबकि 255 ऐसे व्यक्तियों ने आवेदन
किया है जो पी-एच०डी० किये हुए हैं. यकीनन ये संख्या किसी भी रूप में हास्य का,
नजरंदाज करने का मसला नहीं है वरन चिंता करने योग्य है. प्रदेश की सरकार को इस
बारे में चिंतित होने की आवश्यकता है.
.
यदि
सम्पूर्ण देश के बजाय प्रदेश की रोजगार सम्बन्धी स्थिति पर निगाह डालें तो पाएंगे
कि विगत कई वर्षों में प्रदेश सरकारों द्वारा रोजगार के अवसर सृजित नहीं किये गए
हैं. अनेकानेक विभाग ऐसे हैं जहाँ दशकों से नियुक्तियाँ नहीं हुई हैं. दर्जनों के
हिसाब से पद खाली पड़े हैं. यदि उच्च शिक्षा को ही देखा जाये तो कई हजार पद वर्षों
से रिक्त पड़े हैं और आयोग द्वारा लगातार विज्ञापन निकालने के अतिरिक्त कोई दूसरा
काम नहीं किया गया है. कुछ ऐसी स्थिति माध्यमिक में, प्राथमिक में देखने को मिल
रही है. कमोवेश ऐसी स्थिति सभी विभागों में है. कहीं नियुक्तियाँ नहीं की जा रही
हैं, कहीं नियुक्तियों में अनियमितताएँ हैं, कहीं नियमानुसार रिक्तियों को नहीं
भरा जा सका है, कहीं अदालती आदेश के चलते भर्तियों पर रोक लगा दी गई है, कहीं-कहीं
तो रिक्तियों को, नियुक्तियों को रद्द ही किया गया है, कहीं भ्रष्टाचार के चलते
नियुक्तियों में अनियमितताएँ हैं तो कहीं भाई-भतीजावाद, कहीं जातिवाद, क्षेत्रवाद आदि
के चलते नियुक्तियाँ अधर में लटकी हुई हैं. हालात ये हैं कि स्थायी नियुक्तियाँ
किये जाने के स्थान पर लगभग सभी जगहों पर मानदेय के रूप में, संविदा के रूप में,
अंशकालिक रूप में, अस्थायी रूप में नियुक्तियाँ करके काम निपटाया जा रहा है. इस
तरह से कार्य करते लोगों में जहाँ युवा बेरोजगार भी है वहीं सेवानिवृत्त कर्मचारी
भी हैं. स्पष्ट है कि सरकारी स्तर पर इस तरह की नीति बनाई ही नहीं जा रही है कि
प्रदेश के युवा बेरोजगारों को स्थायी रूप से रोजगार मिल सके.
.
इतनी बड़ी
संख्या में बेरोजगारी का होना, बेरोजगार युवाओं का होना दर्शाता है कि प्रदेश के
आधारभूत ढाँचे में बहुत बड़ी खामी है. इस खामी को दूर करने का कार्य सरकार द्वारा
किया नहीं जा रहा है और न ही युवाओं द्वारा इस तरह के प्रयास किये जा रहे हैं कि
वे शिक्षा के क्षेत्र में उभरते माफियाराज को दूर करने का काम करें. कुकुरमुत्तों
की तरफ जगह-जगह उग रहे बहुत से महाविद्यालयों, इंजीनियरिंग संस्थानों ने अपनी
व्यवस्थाओं से शिक्षा व्यवस्था को जहाँ एक ओर खोखला सा किया है वहीं युवाओं को
रसातल में भेजने का काम भी किया है. नक़लयुक्त शिक्षा व्यवस्था, अध्यापनशून्य वातावरण,
कागजों पर प्रशिक्षित अध्यापक और वास्तविक में अप्रशिक्षित शिक्षकों का होना, शिक्षा
व्यवस्था को व्यापार बना देना आदि ऐसी स्थितियाँ हैं जिनके चलते शिक्षा संस्थानों
ने बेरोजगारों की फ़ौज का निर्माण किया है. बड़ी-बड़ी, मोटी-मोटी रकम चुकाने के बाद
भारी-भरकम डिग्री लेने के बाद भी ऐसे युवाओं का आधारभूत ज्ञान शून्य ही रहा, शिक्षा
का उद्देश्य इनके लिए सिर्फ और सिर्फ सरकारी नौकरी करना रहा सो लगातार बेरोजगारी
की मार देश-प्रदेश को दे रहे हैं. स्पष्ट है कि यदि सरकार इस स्थिति के लिए दोषी
है तो ये युवा जो उच्चतम शिक्षा लेने के बाद भी चपरासी की नौकरी के लिए आवेदन कर
रहे हैं, कम दोषी नहीं हैं.
.
इसके अलावा
जो बात अत्यंत महत्त्वपूर्ण है वो ये कि चपरासी की नौकरी के लिए आवेदन करने को
रोजगार सम्बन्धी मजबूरी बताने वाले ये उच्च शिक्षा प्राप्त युवा बताएँगे कि वाकई
बेरोजगारी की स्थिति इतनी भयावह है कि इनको चपरासी की नौकरी के लिए आवेदन करना पड़ा?
या फिर इनकी डिग्री, शिक्षा इस स्तर की नहीं है कि कहीं उच्च स्तरीय रोजगार, नौकरी
प्राप्त की जा सके? या फिर इन सबको सिर्फ और सिर्फ सरकारी नौकरी की चाह है और उसी
की लालसा में, लोभ में चपरासी पद का आवेदन किया है? मीडिया में खबर आते ही तमाम
लोग जिस तरह से सक्रिय होकर सरकार की, व्यवस्था की, बेरोजगारी की बुराई करने लगे
थे उन सभी लोगों को इस तथ्य को भी गंभीरता से लेना होगा कि क्या ये युवा किसी निजी
कंपनी में, निजी शिक्षा संस्थान में, किसी निजी कारखाने में ऐसा कोई काम नहीं कर
सकते जो इनकी डिग्री-योग्यता पर के हिसाब से हो, इनकी डिग्री-योग्यता पर शोभित
होता हो? चलिए मान भी लिया जाये कि प्रदेश में ढांचा इतना ख़राब हो गया है कि उच्च
शिक्षित व्यक्ति की डिग्री-योग्यता के हिसाब से कोई नौकरी नहीं बची है या नहीं मिल
रही है तो क्या ये युवा किसी दूसरे निजी संस्थान में चपरासी की ही नौकरी करने को
तैयार होंगे? इसका उत्तर निश्चित रूप से ‘नहीं’ ही होगा. जिन युवाओं में सरकारी
नौकरी के प्रति आकर्षण रहेगा, मेहनत के स्थान पर आराम वाली नौकरी की चाह रहेगी,
बैठने को कुर्सी और पैर फ़ैलाने को मेज की तृष्णा रहेगी, शिक्षा व्यवस्था को
सुधारने की ललक न रहेगी, अव्यवस्था से लड़ने की जिम्मेवारी न रहेगी, विकास की राह
बढ़ने की उत्कंठा न रहेगी तब तक ऐसे युवा सरकारी नौकरी के लिए, आरामतलबी के लिए
चपरासी से नीचे के पद हेतु भी आवेदन करते मिलेंगे.
.
चपरासी की नौकरी के लिए आवेदन करने को रोजगार सम्बन्धी मजबूरी बताने वाले ये उच्च शिक्षा प्राप्त युवा बताएँगे कि वाकई बेरोजगारी की स्थिति इतनी भयावह है कि इनको चपरासी की नौकरी के लिए आवेदन करना पड़ा? या फिर इनकी डिग्री, शिक्षा इस स्तर की नहीं है कि कहीं उच्च स्तरीय रोजगार, नौकरी प्राप्त की जा सके? या फिर इन सबको सिर्फ और सिर्फ सरकारी नौकरी की चाह है और उसी की लालसा में, लोभ में चपरासी पद का आवेदन किया है? - .... बहुत सही बात है
जवाब देंहटाएंbhai last ki 3-4 line me to ekdum maja aagaya
जवाब देंहटाएं