प्रशासन का दायित्व किसी भी रूप में
शांति व्यवस्था बनाये रखना होता है. इसके लिए कई बार प्रशासन की तरफ से कठोर कदम
उठाये जाते हैं. इन कठोर क़दमों में अकसर प्रशासनिक स्तर पर लाठीचार्ज करना, आँसू
गैस के गोले छोड़ना, पानी की बौछार करना, प्लास्टिक की गोलियां चलाया जाना आदि
शामिल हो जाता है. इस तरह के कदम प्रशासन की तरफ से उस समय उठाये जाने आवश्यक
प्रतीत होते हैं जबकि हालात उनके नियंत्रण से बाहर के दिखाई देते हैं. प्रशासनिक
दृष्टि में महज इतना स्पष्ट होना चाहिए कि सामने खड़ी भीड़ के अनियंत्रित होने से कानून
व्यवस्था को समस्या है, सम्बंधित इलाके में अराजकता फ़ैल सकती है, जान-माल को
नुकसान पहुँच सकता है. ऐसे में यदि प्रशासन किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर कार्य
करने लगे, भीड़ का जातिगत, धार्मिक चेहरा देखकर कार्य करने लगे, किसी वर्ग विशेष को
संतुष्ट करने के लिए उक्त कार्य को अंजाम देने लगे तो स्पष्ट है कि उस समय प्रशासन
का उद्देश्य न तो भीड़ को नियंत्रित करना है और न ही वातावरण को सामान्य बनाना है वरन
सरकार के पूर्वाग्रहों को संतुष्ट करना है.
इस बार इस पूर्वाग्रह का शिकार बने गंगा
नदी में मूर्ति विसर्जित करने निकले साधु-संत-बाबा और साथ में नन्हे-नन्हे, मासूम
बटुक. देश की धार्मिक नगरी वाराणसी में रात के अंधियारे में प्रशासन द्वारा महज इस
कारण से जबरदस्त लाठीचार्ज किया गया क्योंकि ये साधु-संत पावन नदी गंगा में गणेश
विसर्जन करना चाहते थे. इन लोगों द्वारा मूर्ति विसर्जन की जिद सही थी या गलत, ये
आकलन बाद का विषय है. प्रथम दृष्टया इसका आकलन होना चाहिए कि जिस तरह से
बर्बरतापूर्ण ढंग से, गलियों में दौड़ा-दौड़ा कर पुलिसकर्मियों द्वारा इनको पीटा गया
क्या वो सही था? ये सही है कि विगत कई वर्षों से लगातार सरकारी स्तर पर देश में
नदियों के साफ़-सफाई हेतु ध्यान दिया जा रहा है; कल-कारखानों के गंदे पानी को,
नगरों के मलमूत्र अपशिष्ट आदि को नदियों में जाने से रोकने के प्रबंध किये जा रहे
हैं किन्तु जिस तरह से मूर्ति विसर्जन रोकने के नाम पर वहाँ उपस्थित लोगों को जिस
तरह से पीटा गया, वो निंदनीय है.
स्थानीय प्रशासन को इस बात का जवाब देना
होगा कि क्या उसके द्वारा गंगा नदी में गंदगी फ़ैलाने वाले सभी कारकों का निस्तारण
कर दिया गया है? क्या किसी भी रूप में गंगा में आसपास स्थित कल-कारखानों, घरों, बाज़ार
आदि के अपशिष्ट आदि का गिरना नहीं हो रहा है? क्या प्रशासन गंगा में किसी भी तरह
से गंदगी फ़ैलाने वालों के विरुद्ध भी इसी तरह की कठोर कार्यवाही करता है? यदि
प्रशासन द्वारा किसी भी रूप में सत्ताधारी राजनीति की अपनी किसी मजबूरी के चलते,
सत्ताधारी राजनीति की तुष्टिकरण की नीति के चलते ऐसा कदम उठाया गया है तो ये
प्रशासन की अक्षमता है. ऐसे में सरकार को समझाना चाहिए कि क्या उसके द्वारा प्रदेश
में नदियों की स्वच्छता सम्बन्धी आवश्यक और अनिवार्य कदमों को पूर्ण रूप से उठाया
जा चुका है? क्या गंगा नदी के सन्दर्भ में ही स्वच्छता सम्बन्धी नियमों का सख्ती
से पालन किया जा रहा है? क्या जहाँ-जहाँ से गंगा नदी प्रवाहित हो रही है वहाँ-वहाँ
उसके आसपास बने कल-कारखानों का गन्दा पानी, अपशिष्ट आदि को गंगा नदी में गिरने से
पूरी तरह से रोका जा सका है? सम्पूर्ण प्रदेश न सही, क्या सरकार ने वाराणसी में ही
गंगा नदी को उच्च स्तरीय रूप से स्थापित करने हेतु कोई ठोस कदम उठाया है? यदि ऐसा
नहीं है तो फिर मूर्ति विसर्जन के नाम पर एकाएक सख्ती को दिखाने के पीछे का मंतव्य
आसानी से समझ में आ सकता है. उत्तर प्रदेश में वर्तमान सरकार के कार्यकाल में ये
कोई पहला अवसर नहीं है जबकि हिन्दू धर्मावलम्बियों के साथ पक्षपातपूर्ण व्यवहार
किया गया है. अनेक अवसरों पर एक वर्ग विशेष के प्रति तुष्टिकरण सम्बन्धी नीति
अपनाकर प्रशासन द्वारा कठोर एवं सख्त कदम उठाये गए. स्पष्ट है कि सरकार कहीं न
कहीं खुद को एक धर्म विशेष का, एक वर्ग विशेष का समर्थक दिखाना चाहती है जो उसके
लिए चुनावी मौसम में वोट-बैंक के रूप में सफल सिद्ध हो.
यहाँ
एक बात और कि सरकारी स्तर पर, प्रशासनिक स्तर पर नदियों में गिरती गन्दगी को रोकने
के लिए भले ही बहुत सकारात्मक कार्य न किये गए हों; भले ही वर्तमान परिदृश्य में
गंगा नदी में उसके आसपास स्थित कल-कारखानों, नगरीय इलाकों, बस्तियों आदि से
अपशिष्ट, मलमूत्र, गंदगी, कचरा आदि लगातार गिराया जा रहा हो किन्तु इसके चलते किसी
भी रूप में गंदगी फ़ैलाने की छूट किसी को नहीं दी जा सकती है. सामाजिक रूप से
नागरिकों को भी इसके लिए सचेत और जागरूक होने की आवश्यकता है और इसकी महती
आवश्यकता उस समय प्रतीत होती है जबकि यह प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र की घटना
हो. आवश्यक नहीं कि जो कार्य सदियों से होता आ रहा हो उसे काल-परिस्थिति के अनुसार
बदला न जा सके. किसी समय में नदियों में जल-प्रवाह तेजी से हुआ करता था, उनके
आसपास कल-कारखानों की इतनी बड़ी संख्या नहीं थी, नदियों में गिरने वाले अपशिष्ट की
मात्र भी इतनी अधिक नहीं थी जैसी कि आज है. उस समय नदियों में मूर्ति-विसर्जन इस
कारण भी सहजता से संपन्न हो जाता था क्योंकि मूर्तियों के रंगों में रासायनिक
तत्त्वों का प्रयोग नहीं किया जाता था. अब जबकि मूर्तियों को सजाने-संवारने में
अनेकानेक रासायनिक तत्त्वों का प्रयोग किया जा रहा है; मूर्तियों के साथ में उपयोग
की गई सहायक सामग्री आदि को भी भरपूर मात्रा में प्रवाहित किया जा रहा है तब नागरिकों
को, धर्मावलंबियों को, साधु-संतों को स्वयं गंगा नदी की स्वच्छता के प्रति, नदियों
की स्वच्छता के प्रति सजग रहने की आवश्यकता है.
बहरहाल
गंगा नदी की स्वच्छता को लेकर, नदियों में गिरते अपशिष्ट को रोकने के सम्बन्ध में
सरकारी स्तर पर, नागरिक स्तर पर क्या और कैसे प्रयास किये जा रहे हैं ये किसी से
छिपा नहीं है. इसके बाद भी सत्यता यही है कि वाराणसी में रात के अंधियारे में
मूर्ति-विसर्जन कर रहे लोगों पर बर्बरतापूर्ण लाठीचार्ज किया गया. जहाँ आज भी गंगा
नदी में भारी मात्रा में गिरते अपशिष्ट को रोकने में स्थानीय प्रशासन नाकाम रहा
है, सरकारी स्तर पर किये जा रहे प्रयास असफल सिद्ध हो रहे हैं वहाँ एक
मूर्ति-विसर्जन होने देने से कोई आफत नहीं आ रही थी. चूँकि प्रशासन सत्ताधारी
राजनैतिक दल के हाथों संचालित होकर सम्पूर्ण गतिविधि को अंजाम दे रहा था और
सत्ताधारी पक्ष किसी दूसरे वर्ग विशेष को आकर्षित करने की मानसिकता से संचालित था.
ऐसे में ये लाठीचार्ज महज लाठीचार्ज नहीं था, ऐसे में यहाँ महज मूर्ति-विसर्जन को रोकना
उद्देश्य नहीं था; यहाँ गंगा नदी की स्वच्छता मात्र का ध्यान नहीं रखा जा रहा था
वरन रात के अंधियारे में किये गए लाठीचार्ज के द्वारा कई-कई निशाने साधने के
प्रयास किये गए थे. सरकारी स्तर पर ऐसी सोच वाकई चिंतनीय है, निंदनीय है.
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