जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाये जाने की कवायद जारी है साथ ही
राजनीतिक तिकड़में भी चलती दिख रही हैं. जिस तरह से वहाँ के मतदाताओं ने भाजपा के
पक्ष में और विपक्ष में अपना रुख दर्शाया है, वो भाजपा को सचेत करने के साथ-साथ
समूचे राजनैतिक परिदृश्य पर नज़र रखने वालों के लिए भी सचेतक का काम करेगा. विगत आम
चुनाव से इतर वर्तमान चुनावों में मतदाताओं ने जहाँ भाजपा को स्वीकार भी किया है
वहीं उसको नकारने का काम भी किया है. घाटी से भाजपा को विजय श्री न मिलना भी बहुत
कुछ स्पष्ट करता है. जम्मू-कश्मीर के मतदाताओं के इस राजनैतिक दृश्य और चिंतन में पिछले
दिनों वहाँ पर आई बाढ़ के समय वहाँ के पुलिसकर्मियों द्वारा उत्तर भारतीयों से किये
गए व्यवहार की ही झलक देखने को मिलती है. इस बात को सुनकर-पढ़कर शायद उन लोगों को
अवश्य ही बुरा लगेगा जो आज भी किसी न किसी रूप में तुष्टिकरण हेतु पाकिस्तान की,
कश्मीरी मुसलमानों की वकालत करते दिखते हैं.
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हाल ही में आई बाढ़ में समय हमारे व्यक्तिगत परिचित कई परिवार
वहाँ फँस गए थे. वहाँ से वापस आने पर उनकी जुबानी वहाँ की पुलिस का जो हाल सुना,
उसे सुनकर लगा नहीं कि जम्मू-कश्मीर इसी देश का हिस्सा है. जब तक सेना ने अपने
नियंत्रण में वहाँ की स्थिति को नहीं ले लिया, तब तक पुलिस स्टेशनों में शरणार्थी
बने गैर-कश्मीरियों को एक-एक ब्रेड स्लाइस के लिए, एक-एक ढक्कन पानी के लिए
पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने को मजबूर किया जाता था. नारे न लगाने पर अथवा एक
स्लाइस, एक ढक्कन पानी से ज्यादा मांगने पर पुलिस की मार भी सहनी पड़ती थी. (इसे
व्यक्तिगत रूप से हमने स्वयं भुक्तभोगियों से मिलकर महसूस किया है) ऐसी स्थिति में
जबकि राज्य से बाहर के नागरिक परेशानी की हालत में हों, मुश्किल में हों, परिवार
बिछड़ गए हों, उनका सामान बाढ़ में बह गया हो, खाने-पीने का संकट हो गया हो तब भी
वहाँ की पुलिस को वे लोग सिर्फ इंडियन समझ आ रहे थे, विदेशी दिख रहे थे. ऐसी
स्थिति में उस राज्य में यदि भाजपा की सरकार बन जाये या फिर कोई हिन्दू व्यक्ति
मुख्यमंत्री बन जाए तो अराजकता की स्थिति सोची जा सकती है. एक वरिष्ठ राजनीतिज्ञ
अपना मंतव्य भी इस पर व्यक्त कर चुके हैं.
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देखा जाये तो भाजपा को मिली सीटों और उसको मिले समर्थन के बाद
मामला सरकार बनाने से ज्यादा इस बात का है कि जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ-साथ
गैर-कश्मीरियों में भाजपा के सरकार बनाने के प्रयासों को लेकर किस तरह उथल-पुथल
मची हुई है. जो राज्य अपने आपको पाकिस्तान का अंग समझता हो, जहाँ के लोगों के लिए
हिन्दू मुख्यमंत्री बनना अभिशाप जैसा हो, जहाँ मुश्किल में फँसे लोगों से
पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगवाए जाते हों, जिनके लिए भाजपा हिन्दूवादी पार्टी
हो, जिस पार्टी को समूची घाटी से एक सीट न मिली हो उन नागरिकों की
क्रिया-प्रतिक्रिया को समझा जा सकता है किन्तु जिस तरह से गैर-कश्मीरी सिर्फ इस
बात पर भाजपा के सरकार बनाये जाने का विरोध कर रहा है कि उसे भाजपा का सरकार बनाना
पसंद नहीं तो भविष्य की भयावहता को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है. जिस राज्य की पुलिस
ने बाढ़ में फँसे उन नागरिकों से (जो उस राज्य से बाहर के थे). एक ब्रेड की स्लाइस के
लिए, एक ढक्कन पानी के लिए पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगवा लिए हों, पिटाई भी की हो
उस राज्य में भाजपा की सरकार बन जाना या फिर हिन्दू मुख्यमंत्री बन जाना कपोलकल्पना
ही है. राज्य को उथल-पुथल से बचाने के लिए, हिंसा-मुक्त रखने के लिए भाजपा अपनी जिद
को त्यागे. सरकार में भले ही शामिल हो जाए किन्तु मख्यमंत्री सामने वाले का बनवा दे.
भाजपा ने यदि अड़-अड़ कर अपना मुख्यमंत्री बनवा भी लिया तो राज्य से इतर नागरिकों को
'इंडियन'
कहने वाले लोग राज्य में शांति-विकास नहीं होने देंगे. दीर्घकालिक लाभों
के लिए अल्पकालिक लाभ त्याग देने चाहिए.
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