राष्ट्रीय महिला
आयोग के देह व्यापार को वैधता प्रदान किये जाने प्रस्ताव से लम्बे समय से चली आ
रही बहस फिर से जिंदा होकर सामने आई है. देह व्यापार को वैध करने के पक्षधर इसके
द्वारा महिलाओं के स्वास्थ्य, सुरक्षा, सम्मान की बात करते हैं, उनको हेय दृष्टि
से बचाए जाने की, अपराध न समझे जाने की, काम के घंटे, पारिश्रमिक आदि निर्धारित
करने जैसी स्थितियाँ भी निर्मित होंगी. सैद्धांतिक रूप से ये सुनने में अच्छा लगता
है कि देह व्यापार में संलिप्त महिलाओं को कानूनी जामा मिल जाने से सुरक्षा,
सम्मान मिल सकेगा; सामाजिक लोग उनको अपराधी की निगाह से नहीं देखेंगे; इसके द्वारा
महिलाओं की तस्करी आदि रुक सकेगी. इसके उलट यदि इसके व्यावहारिक पक्ष की ओर ध्यान
दिया जाये तो अनेक खतरे मंडराते दिखाई देते हैं.
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देह व्यापार के
मामले में इस बात पर गौर किया जाना आवश्यक है कि आयोग अथवा वैश्यावृत्ति को कानूनी
जामा पहनाने के समर्थक कानूनी स्वरूप देकर इसकी किस बुराई को दूर करना चाहते हैं? महिलाओं
को वैश्यावृति से, देह व्यापार से मुक्ति करवाने की कोई पहल इस कानूनी स्वरूप के
द्वारा संभव है? महिलाओं को, बच्चियों को इस कानूनी स्वरूप के द्वारा वैश्यावृत्ति
के धंधे में, देह व्यापार में धकेले जाने से रोकने की कोई कवायद की जानी संभव है? प्रथम
दृष्टया तो ऐसा कुछ नहीं लगता है, तो फिर किस दृष्टिकोण के साथ इस पूरे प्रस्ताव को
प्रस्तुत करने का विचार बना, जानना आवश्यक हो जाता है. वैश्यावृत्ति को रोक पाने
में असफलता से ऐसे विचार का जन्म होना अवश्य समझ आता है.
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जैसा कि महिला आयोग
ने कहा है कि इसके द्वारा देह व्यापार में लगी महिलाओं के काम के घंटे, उनके
सम्मानजनक स्थिति, स्वास्थ्य आदि के बारे में सहूलियत हो जाएगी, के बाद समझने की
बात है कि क्या इसको कानूनी बनाये जाने की समर्थक महिलाएं इस व्यापार को अपनाना
पसंद करेंगी? वर्तमान तक की जो स्थिति देह व्यापार में देखने को मिलती है, उसमें
गरीब महिलाएँ, जबरन धकेली गई महिलाएँ अथवा अपहृत महिलाएँ ही संलिप्त दिखती हैं.
महिला आयोग और अन्य लोग जिस उत्साह के साथ वैश्यावृत्ति को कानूनी बनाये जाने के
पक्ष में दिखते हैं, कुतर्क सा करते दिखते हैं, उसके अनुसार कानूनी रूप मिल जाने
के बाद क्या सभ्रांत घरों की, अमीर महिलाएँ, अन्य दूसरे व्यापार में संलग्न
महिलाएँ भी जल्द ही इस व्यापार को अपनाना पसंद करेंगी? यदि देह व्यापार का कानूनी
स्वरूप सिर्फ उन्हीं महिलाओं के लिए कारगर है जो इस नरक को झेल रही हैं तो इसका
कोई लाभ नहीं. इस कानूनी प्रक्रिया का कोई दीर्घगामी, सकारात्मक लाभ होता नहीं
दिखता है.
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यदि इसके दूसरे पहलू
पर गौर किया जाये तो संभव है कि महिलाओं की तस्करी, अपहरण, बच्चियों के अपहरण और
बढ़ जाएँ क्योंकि वैश्यावृत्ति के कानूनी होने के बाद इसमें संलिप्त अपराधी खुद को
कानूनी शिकंजे से साफ़-साफ़ बचा ले जायेंगे. बेहतर तो ये होगा कि जहाँ-जहाँ
वैश्यावृत्ति में महिलाएं संलिप्त हैं, सरकार की तरफ से उनके पुनर्वास की व्यवस्था
की जाये. ऐसी महिलाओं का चिकित्सकीय परीक्षण करवाकर उनके स्वास्थ्य के प्रति उनको
जागरूक किया जाये. इसी के साथ ऐसी महिलाओं को रोजगार दिलवाने और उनके बच्चों के
स्वास्थ्य, शिक्षा आदि की व्यवस्था भी करनी चाहिए. देह व्यापार को कानूनी रंग देना
शुतरमुर्ग की तरह का बचाव करना है. ये कोई स्थायी समाधान नहीं है वरन इस समस्या से
न निपट पाने, इस समस्या का हल न निकाल पाने की हताशा है. यदि यही हाल रहा तो कल को
बलात्कार, हत्या, डकैती आदि को भी कानूनी जामा पहनाने के लिए भी प्रस्ताव आ सकता
है.
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