05 सितंबर 2014

शिक्षक बनने-बनाने के प्रति सोच ही कहाँ है



देश के पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन के सम्मान में मनाया जाने वाले शिक्षक दिवस पर लोगों को शुभकामनाओं का आदान-प्रदान करते देखकर सुखद एहसास हुआ. महाविद्यालय के उन विद्यार्थियों द्वारा, जो आये दिन अपने कृत्यों से शिक्षकों को अपमानित करने का अवसर नहीं चूकते, आज सम्मान करते देखा गया; उन महानुभावों के द्वारा, जो शिक्षकों को निठल्ला कहकर अपमानित करना अपना धर्म समझते हैं, शिक्षकों द्वारा माला पहनाते देखा गया; ऐसे लोगों द्वारा, जो शिक्षकों को ‘हराम की कमाई खाने वाले’ कहकर तिरस्कृत करते हैं, आज प्रशस्ति-पत्र, अंगवस्त्र पहनाते देखा गया. दिल ने खुद से ही सवाल उठाया कि शिक्षक का सम्मान आज तमाम विकृत स्थितियों के बाद भी बरक़रार है या फिर सिर्फ आज शिक्षक दिवस के अवसर पर आयोजनात्मक व्यवस्था भर है? शिक्षक दिवस गुजरते ही किसी भी शिक्षक के प्रति चढ़ा सम्मान को चश्मा भी उतारकर रख दिया जायेगा या फिर ये सम्मान बरक़रार रहेगा? इन्हीं सवालों के मध्य एक और सवाल ने अंगड़ाई लेकर शिक्षक होने पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया. आज के आधुनिक सोच वाले, भौतिकतावादी दौर में, रातों-रात अकूत सम्पत्ति पैदा करने की लालसा रखने वाले समाज में कौन युवा शिक्षक बनना चाहता है; कौन से माता-पिता अपनी संतानों को अध्यापक बनाना चाह रहे हैं?
.
वर्तमान व्यवस्था और जीवनशैली पर निगाह डाली जाये तो ये सवाल महज सवाल नहीं हैं वरन हम सबकी मानसिकता को परिलक्षित करते हैं. बहुराष्ट्रीय कंपनियों के भारी-भरकम पैकेज के बीच, आधुनिक साजो-सामान से लैस निजी कंपनियों के लुभावने आवरण के बीच युवा वर्ग की मानसिकता शिक्षक बनने की दिखती ही नहीं है, इसके साथ ही इनके माता-पिता द्वारा भी इनको अध्यापन-कार्य हेतु प्रेरित भी नहीं किया जाता है. माध्यमिक स्तर तक की शिक्षा के दौरान ही अभिभावकों द्वारा अपनी संतानों के मन में इंजीनियरिंग, मेडिकल, एमबीए, एमसीए, सीए व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में प्रवेश का बीजारोपण कर दिया जाता है. उनको बड़ी-बड़ी व्यावसायिक डिग्री के प्रति जागरूक बनाया जाता है, बड़ी-बड़ी कंपनियों के बड़े-बड़े पैकेज लेने को प्रेरित किया जाता है, निजी कार्य के द्वारा अकूत संपत्ति (कैसे भी) पैदा करने के रास्ते बताये जाते हैं. हालाँकि इस भौतिकतावादी व्यवस्था के बीच युवाओं में शिक्षक बनने की होड़ हाल-फ़िलहाल में दिखने लगी है तथापि इस होड़ के पीछे के कारण बहुत अलग हैं.
.
धन के पीछे भागती इस दुनिया में युवाओं में शिक्षक बनने की सोच, होड़ उस समय विकसित होती है जबकि तमाम रास्तों पर अवरोधक आने लगते हैं; नौकरी करने के, व्यवसाय करने के, बड़े-बड़े पैकेज मिलने के अवसर समाप्त से दिखने लगते हैं. यही कारण है कि इंजीनियरिंग सहित तमाम व्यावसायिक डिग्रीधारियों को आज प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षक बनते देखा जा रहा है. दरअसल उनके शिक्षक बनने के पीछे का कारण उनकी अध्यापन-कार्य में आने की सोच या प्रेरणा नहीं वरन स्वयं को आर्थिक रूप से सुरक्षित करना है. सोचा जा सकता है कि ऐसी मानसिकता में जो व्यक्ति इस क्षेत्र में आएगा वो अध्यापन-कार्य के साथ कितना न्याय कर पायेगा? विद्यार्थियों को शिक्षा के प्रति कितना संवेदित कर पायेगा? समाज में शिक्षकों के लिए कितनी सम्मानजनक स्थिति को बना पायेगा? सच्चाई तो ये है कि आज न तो युवा-वर्ग में शिक्षक बनने के प्रति जागरूकता है और न ही अभिभावकों द्वारा उनको इसके लिए प्रेरित किया जाता है. ऐसी स्थिति में महज धनोपार्जन के लिए बने शिक्षकों से उत्कृष्टता की उम्मीद रखना बेमानी ही है. और शायद यही कारण है कि शिक्षा का स्तर दिनों-दिन गिरता जा रहा है, समाज में शिक्षकों के प्रति सम्मान कम होता जा रहा है, विद्यार्थियों में नैतिकता का ह्रास होता जा रहा है. अभिभावकों को इसके लिए जागना होगा, यदि उनको अपने बच्चों को के लिए बेहतर शिक्षा चाहिए है तो शिक्षण संस्थानों में उत्कृष्ट शिक्षकों का होना अनिवार्य है. किसी को तो अपने बच्चों में मात्र धनार्जन के नहीं वरन शिक्षा देने के संस्कार पैदा करने होंगे, शिक्षक बनने के गुण विकसित करने होंगे. 
.

1 टिप्पणी: