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संभव है कि ये मामला
किसी अनब्याही माँ से जुड़ा हुआ हो, जिसका सामाजिक दबाव में, पारिवारिक दबाव में उसका
गर्भपात करवाया गया हो? ऐसे में भी ये पता करने की आवश्यकता बनती है कि आखिर इस
कृत्य में किस चिकित्सक ने मदद की है. ये एक आम शिक्षित व्यक्ति को भी पता है कि
सात माह की अवस्था में चिकित्सकीय रूप से गर्भपात संभव-सुरक्षित ही नहीं है. ऐसे
में ये जानना और भी आवश्यक हो जाता है कि ऐसा क्यों, कब, कहाँ और किसके द्वारा
किया गया?
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एक सम्भावना ये भी
बनती है कि ये किसी विवाहित महिला की ‘प्री मैच्योर डिलीवरी’ हो या फिर ‘मिसकैरिज’
जैसी कोई घटना हो जिसके लिए किसी चिकित्सक की मदद ली गई हो. यदि ऐसा है तब भी इस
घटना को भुलाने योग्य नहीं माना जा सकता है क्योंकि सम्बंधित स्त्री को चिकित्सकीय
सुविधा देने के बाद, उसकी मदद करने के बाद किसी भी चिकित्सक, सम्बंधित नर्सिंग होम
आदि की जिम्मेवारी बनती थी कि वे उस भ्रूण का यथोचित निपटान करते. ऐसा न किया जाना
और उसे नाली में बहा देना अमानुषिक कृत्य ही कहा जायेगा, जिसके लिए न सही कानूनी
किन्तु सामाजिक दंड के भागी सम्बंधित लोग बनते ही हैं.
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समाज में कई बार किसी
भीख मांगने वाली महिला के साथ, मानसिक विक्षिप्त महिला के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाये
जाने की घटनाएँ, उनके गर्भवती होने की घटनाएँ भी सामने आई हैं. इस मामले में भी
संभव है ऐसा ही कुछ हुआ हो और सम्बंधित गर्भवती महिला के साथ समुचित चिकित्सकीय
देखभाल के अभाव में ऐसा कुछ हो गया हो. यदि ऐसा भी है तो ये हमारी सामाजिक व्यवस्था
पर कलंक है जहाँ किसी भिखारिन, किसी मानसिक विक्षिप्त महिला को हवस का शिकार बना
लिया जाता हो. ये कहीं न कहीं प्रशासनिक अक्षमता भी कही जाएगी कि उनके द्वारा आज
भी ऐसे लावारिस लोगों को, अनाथ लोगों को संरक्षण, चिकित्सकीय सुविधाएँ दे पाना संभव
नहीं हो सका है.
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यहाँ सवाल नाली में
सात माह के भ्रूण के बालक या बालिका होने का नहीं है वरन मानव स्वभाव की मानसिकता
का है. ये अपने आपमें सम्पूर्ण मानव जाति के लिए, मानवता के लिए शर्म का विषय तो
है ही कि आधुनिकता में रचे-बसे समाज में आज भी भ्रूण-हत्याएं हो रही हैं किन्तु ये
और भी कलंकित करने वाली घटना है कि एक भ्रूण नाली में बहते पाया जाता है. वास्तविकता
क्या है इसे सामने आने में समय लगेगा, कहिये प्रशासनिक लीपापोती में सामने न भी
आये किन्तु ये घटना दर्शाती है कि हम मानव आज भी जानवर ही बने हुए हैं.
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चित्र मीडिया मित्रों के सहयोग से प्राप्त... ये घटना ७ सितम्बर २०१४ की है..... चित्रों की वीभत्सता को कम करने के लिए आवरण ओढ़ा दिया गया है.....
संयोजक-बिटोली
डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर
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