शहर में गंदे पानी
का निकास करती नाली; कूड़ा-करकट, गंदगी, अन्य अपशिष्ट को अपने साथ बहाकर ले जाती
नाली; सफाई के अभाव में बजबजाती नाली और इसी नाली में बहता मिलता है मानव भ्रूण. उत्तर-प्रदेश
के बुन्देलखण्ड भूभाग का जनपद जालौन और उसका जिला मुख्यालय उरई, जहाँ कि जनपद स्तर
के सभी प्रशासनिक अधिकारियों के आवास हैं, कार्यालय हैं; सभी बड़े राजनैतिक दलों के
नेता-कार्यालय मौजूद हैं; राष्ट्रीय-प्रादेशिक-स्थानीय स्तर के समाचार-पत्रों के कार्यालय
यहाँ हैं; इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की उपस्थिति भी यहाँ है, सरकारी, गैर-सरकारी
बड़े-बड़े प्रोजेक्ट लेकर समाजसेवा करने वाली नामी-गिरामी गैर-सरकारी संस्थाएं भी
यहाँ हैं, इसके बाद भी भ्रूण-हत्या जैसा अपराध होना, भ्रूण के नाली में बहाए जाने जैसी
शर्मनाक घटना होना दर्शाता है कि अपराधी किस हद तक अपना मनोबल ऊँचा किये हुए हैं.
नाली में भ्रूण मिलने की घटना मानवता को कलंकित करने वाली इस कारण से भी कही जा
सकती है क्योंकि जहाँ ये भ्रूण पाया गया है वहाँ शहर के प्रतिष्ठित चिकित्सक का
नर्सिंग होम है. समाज में कहीं भी भ्रूण-हत्या जैसी वारदात सामने आने पर प्रथम
विचार कन्या भ्रूण हत्या का आता है, कुछ ऐसा ही इस घटना पर भी हुआ.
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नाली में सात माह के
मानव भ्रूण की खबर मिलते ही सभी की आशंका कन्या भ्रूण हत्या को लेकर उपजी किन्तु
ये उस समय लोगों के आश्चर्य की बात हो गई जबकि उन्हें पता चला कि नाली में मिला
मानव भ्रूण बालक है. एकाएक उपजी लहर सी शांत हो गई; मीडिया के लिए स्टोरी नहीं;
सामाजिक संस्थाओं के लिए आन्दोलन का मुद्दा नहीं आखिर भ्रूण बालक का है. क्या वाकई
ये संवेदनशील मामला नहीं कि एक नर्सिंग होम के पास नाली में बहता हुआ सात माह का
मानव भ्रूण मिलता है. सवाल यहाँ उसके बालक या बालिका होने का नहीं, सवाल मानव जाति
की मानसिकता का है, मानवता का है. ये किसी तरह का अपराध नहीं है कि एक नर्सिंग होम
के पास मानव भ्रूण मिलता है किन्तु इस बात की जाँच अवश्य होनी चाहिए कि आखिर वहाँ
ये आया कैसे? ये आसानी से समझने वाली बात है कि इस भ्रूण हत्या में कन्या होना
तत्त्व केन्द्र में नहीं है क्योंकि सात माह में किसी भी भ्रूण के लिंग की पहचान सहजता
से हो जाती है. स्पष्ट है कि ये मामला कन्या भ्रूण-हत्या से सम्बंधित नहीं है. ऐसी
स्पष्ट स्थिति के बाद प्रशासन को और तत्परता से वास्तविकता को सामने लाने का
प्रयास करना चाहिए.
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संभव है कि ये मामला
किसी अनब्याही माँ से जुड़ा हुआ हो, जिसका सामाजिक दबाव में, पारिवारिक दबाव में उसका
गर्भपात करवाया गया हो? ऐसे में भी ये पता करने की आवश्यकता बनती है कि आखिर इस
कृत्य में किस चिकित्सक ने मदद की है. ये एक आम शिक्षित व्यक्ति को भी पता है कि
सात माह की अवस्था में चिकित्सकीय रूप से गर्भपात संभव-सुरक्षित ही नहीं है. ऐसे
में ये जानना और भी आवश्यक हो जाता है कि ऐसा क्यों, कब, कहाँ और किसके द्वारा
किया गया?
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एक सम्भावना ये भी
बनती है कि ये किसी विवाहित महिला की ‘प्री मैच्योर डिलीवरी’ हो या फिर ‘मिसकैरिज’
जैसी कोई घटना हो जिसके लिए किसी चिकित्सक की मदद ली गई हो. यदि ऐसा है तब भी इस
घटना को भुलाने योग्य नहीं माना जा सकता है क्योंकि सम्बंधित स्त्री को चिकित्सकीय
सुविधा देने के बाद, उसकी मदद करने के बाद किसी भी चिकित्सक, सम्बंधित नर्सिंग होम
आदि की जिम्मेवारी बनती थी कि वे उस भ्रूण का यथोचित निपटान करते. ऐसा न किया जाना
और उसे नाली में बहा देना अमानुषिक कृत्य ही कहा जायेगा, जिसके लिए न सही कानूनी
किन्तु सामाजिक दंड के भागी सम्बंधित लोग बनते ही हैं.
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समाज में कई बार किसी
भीख मांगने वाली महिला के साथ, मानसिक विक्षिप्त महिला के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाये
जाने की घटनाएँ, उनके गर्भवती होने की घटनाएँ भी सामने आई हैं. इस मामले में भी
संभव है ऐसा ही कुछ हुआ हो और सम्बंधित गर्भवती महिला के साथ समुचित चिकित्सकीय
देखभाल के अभाव में ऐसा कुछ हो गया हो. यदि ऐसा भी है तो ये हमारी सामाजिक व्यवस्था
पर कलंक है जहाँ किसी भिखारिन, किसी मानसिक विक्षिप्त महिला को हवस का शिकार बना
लिया जाता हो. ये कहीं न कहीं प्रशासनिक अक्षमता भी कही जाएगी कि उनके द्वारा आज
भी ऐसे लावारिस लोगों को, अनाथ लोगों को संरक्षण, चिकित्सकीय सुविधाएँ दे पाना संभव
नहीं हो सका है.
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यहाँ सवाल नाली में
सात माह के भ्रूण के बालक या बालिका होने का नहीं है वरन मानव स्वभाव की मानसिकता
का है. ये अपने आपमें सम्पूर्ण मानव जाति के लिए, मानवता के लिए शर्म का विषय तो
है ही कि आधुनिकता में रचे-बसे समाज में आज भी भ्रूण-हत्याएं हो रही हैं किन्तु ये
और भी कलंकित करने वाली घटना है कि एक भ्रूण नाली में बहते पाया जाता है. वास्तविकता
क्या है इसे सामने आने में समय लगेगा, कहिये प्रशासनिक लीपापोती में सामने न भी
आये किन्तु ये घटना दर्शाती है कि हम मानव आज भी जानवर ही बने हुए हैं.
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चित्र मीडिया मित्रों के सहयोग से प्राप्त... ये घटना ७ सितम्बर २०१४ की है..... चित्रों की वीभत्सता को कम करने के लिए आवरण ओढ़ा दिया गया है.....
संयोजक-बिटोली
डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर
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