इंटरनेट ने समाज में
परिवर्तन की बयार ला दी है. लोगों को तकनीकी से अत्यंत सहजता से जोड़ने के साथ-साथ
समूचे विश्व को एक ग्राम में परिवर्तित कर दिया है. सूचनाओं के आदान-प्रदान के साथ-साथ
सभ्यताओं-संस्कृतियों को जानने-समझने की सुविधा प्रदान की है. वैश्विक स्तर पर भी
इंटरनेट ने तकनीक का विस्तार कर इन्सान को विकसित होने में मदद की है. इस विस्तार
ने भाषाई विकास के भी रास्ते खोले हैं, विशेष रूप से हिन्दी भाषा के विकास के. इधर
देखने में आया है कि इंटरनेट पर किसी विषय-वस्तु पर सामग्री की खोज में भले ही
हिन्दी भाषा से अधिक सामग्री अंग्रेजी भाषा में देखने को मिल रही है किन्तु हिन्दी
भाषा के प्रति लोगों का रुझान लगातार बढ़ता ही जा रहा है. इसे देखते हुए कई
प्रतिष्ठित संस्थानों ने अपनी वेबसाइट का हिन्दी संस्करण भी बना रखा है. आम
हिन्दी-प्रेमी भी इंटरनेट पर विभिन्न माध्यमों से जुड़कर हिन्दी भाषा का विकास करने
में लगा हुआ है. यद्यपि ये हिन्दी विकास अभी कविताओं, ग़ज़लों, छोटे-छोटे लेखों आदि
के द्वारा किया जा रहा है को किसी विषय पर गंभीर सामग्री तो उपलब्ध नहीं करा पा
रहा है तथापि हिन्दी को इंटरनेट पर समृद्ध कर रहा है.
.
ब्लॉग के द्वारा,
सोशल मीडिया के अन्य दूसरे साधनों के द्वारा हिन्दी का विकास पर्याप्त रूप से हो
रहा है. सामान्य रूप में आपसी वार्तालाप में जहाँ हर एक-दो शब्दों के बाद अंग्रेजी
के शब्दों का प्रयोग करना आम बात सी हो गई है वहीं ब्लॉग-लेखन में अथवा अन्य
माध्यमों के लेखन में ऐसा देखने को नहीं मिलता है. इंटरनेट पर उपलब्ध इन साधनों का
उपयोग करते हुए जो लोग भी हिन्दी लेखन करने में लगे हैं वे ऐसा अंग्रेजी के शब्दों
को जबरन ठूँसे बिना कर रहे हैं. इस विकास के बाद हिन्दी भाषा व्यापक अशुद्धियों का
शिकार हो रही है, जिससे लगता है कि हिन्दी का विकास घड़ी के उस लोलक के समान न हो
रहा हो जो चलता तो चौबीसों घंटे हैं मगर किसी मंजिल को प्राप्त नहीं कर पाता है. व्याकरण
का ध्यान रखे बिना शब्दों, वाक्यों का प्रयोग किया जा रहा है. वर्तनी की
अशुद्धियाँ भाषाई विकृति को पैदा कर रही हैं. बहुत से लोग ‘अनेक’ शब्द को भी बहुवचन बनाकर ‘अनेकों’ लिख देते हैं. ‘आशीर्वाद’ को ‘आर्शीवाद’ लिखने की; ‘उपलक्ष’
तथा ‘उपलक्ष्य’ को, अलग
अर्थ होने के बाद भी, एक ही अर्थ में लिखने की गलती की जा रही है. इसी तरह बोलचाल
के रूप में ‘पानी का गिलास उठा देना’, ‘पानी की बोतल ला देना’ या फिर ‘एक फूल की माला देना’ बोलने को इसी रूप में लिखा भी
जाने लगा है. ये नितांत अशुद्ध है, सोचिए क्या वाकई ‘गिलास’
या ‘बोतल’ पानी के हैं,
क्या माला वाकई एक फूल की है? लिखने-बोलने की एक और बड़ी गलती
आम होती जा रही है जब कि लिखा-बोला जा रहा है ‘महिला
लेखिकायें’ या ‘महिला लेखिका’. यह गलती बड़े-बड़े हिन्दी पुरोधा करने में लगे हैं. समझना होगा कि लेखिका तो
अपने आप में महिला होने का सबूत है.
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हिन्दी लेखन के नाम
पर इस तरह की अशुद्धियों को कुछ लोग नज़रंदाज़ करने की बात कहते हैं. ऐसे लोगों का
तर्क है कि भाषा विकास के लिए बंधे-बंधाये नियमों को ध्वस्त करना ही होगा. संभव है
कि ये सत्य हो किन्तु ये भी ध्यान रखना होगा कि रूढ़ नियमों को ध्वस्त करने के
चक्कर में कहीं हम हिन्दी विकास को अवरुद्ध तो नहीं कर रहे हैं. हिन्दी शब्दों,
वर्णों, वर्तनियों के साथ खिलवाड़ तो नहीं कर रहे हैं.
. चित्र गूगल छवियों से साभार
बेहतरीन लेख राजा जी।
जवाब देंहटाएंआपके विचारों से एकदम सहमत हूँ, हमें हिन्दी में जाने - अनजाने की जाने वाली गलतियों से सबक सीखना होगा। सादर ... अभिनन्दन।।
नई कड़ियाँ :- आज से हम भी वर्डप्रेस पर …..
शिक्षक, शिक्षा और शिक्षक दिवस - 1