04 जून 2014

वाहनों के साथ सड़क पर दौड़ती मौत




इस बार सड़क दुर्घटना ने एक केन्द्रीय मंत्री को छीन लिया तो सर्वत्र सड़क हादसों पर चर्चा होती दिखने लगी. मीडिया में बहस दिखाई जाने लड़ी, सड़क सुरक्षा कानून की आवश्यकता पर बल दिया जाने लगा. सोचने की बात सिर्फ इतनी है कि यदि केन्द्रीय मंत्री का निधन सड़क हादसे में नहीं हुआ होता तो क्या इस घटना को भी महज एक हादसा समझकर भुला दिया जाता? आँकड़े देश में हो रहे सड़क हादसों की भयावहता को दर्शाते हुए बताते हैं कि प्रति तीन मिनट में एक व्यक्ति की मृत्यु सड़क हादसे में हो रही है. ये संख्या दुःख प्रकट करने वाली नहीं वरन व्यवस्था के प्रति क्षोभ प्रकट करने वाली है. आज़ादी के छह दशक से अधिक का समय गुजर जाने के बाद भी आम नागरिक अपनी जान-माल की सुरक्षा को लेकर आश्वस्त नहीं है, मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दरबदर भटक रहा है.
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देखा जाये तो विगत एक दशक से अधिक के समय में सामाजिक ताना-बाना इस तरह का बन गया है कि हम सभी अपनी-अपनी ज़िम्मेवारियों से मुंह फेर चुके हैं. जिनके हाथ में व्यवस्था बनाने का ज़िम्मा है वे इससे इतर काम करने में लगे हैं; जिनको व्यवस्था को दुरुस्त करने की जिम्मेवारी सौंपी गई है वे ही इसे ध्वस्त करने में लगे हैं; जिसके पास सुरक्षा करने का दायित्व है वो खुद ही असुरक्षा फ़ैलाने में लगा है और इसके साथ ही आम नागरिक जिसको शासन-प्रशासन के कार्यों में सहयोग देना है वो स्वयं अवरोधक बना हुआ है. एक सड़क की व्यवस्था ही नहीं अपितु लगभग सम्पूर्ण ढांचे में एक तरह की दीमक लग चुकी है और इस दीमक के रूप में यदि एक तरफ वे लोग हैं जिनका काम व्यवस्था सञ्चालन का है तो दूसरी ओर वे भी हैं जिनका काम इस व्यवस्था का लाभ लेना है.
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दरअसल समाज में प्रत्येक व्यक्ति अपने अधिकारों की बात तो करता है किन्तु अपने दायित्वों का बोध उसे नाममात्र को भी नहीं होता है. यदि सड़क दुर्घटनाओं को ही आधार बनाया जाए तो सड़क निर्माण करने वाली संस्थाओं की जिम्मेवारी मात्र सडकों को बना देना ही नहीं है बल्कि उनका रखरखाव भी उसी संस्था का दायित्व है. न केवल सड़कों का निर्माण बल्कि मानकों के अनुसार और सम्बंधित क्षेत्र की भौगौलिक स्थिति के अनुसार सड़क का निर्माण आवश्यक है. इसके बाद भी देखने में आ रहा है कि न केवल स्थानीय सडकों की बल्कि राष्ट्रीय राजमार्गों के, हाईवे के, एक्सप्रेस हाईवे के निर्माण में भी मानकों की अनदेखी की जा रही है, उनके रखरखाव पर भी किसी प्रकार का ध्यान नहीं दिया जा रहा है. इसी तरह से इन सड़कों पर फर्राटा भरते कार सवारों, बाइक सवारों को भी अपनी ज़िम्मेवारियों का भान नहीं है. वे न केवल गति को सुपरगति बना रहे हैं बल्कि नियमों की अनदेखी करते हुए अपने साथ-साथ दूसरों की जान भी जोखिम में डाल रहे हैं. अंधाधुंध गति से कार, बाइक का सड़क पर चलाना; बिना सीट बेल्ट बांधे, बिना हेलमेट लगाये यात्रा करना; शराब के नशे में गाड़ियों का चलाया जाना, गलत ढंग से, गलत दिशा से ओवरटेकिंग करना भी दुर्घटनाओं को आमंत्रित करता है.
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भले ही नागरिकों का भी बराबर का दोष सड़क हादसों में रहता हो किन्तु इससे सरकार को, शासन-प्रशासन को अपनी ज़िम्मेवारियों से मुंह फेरने की अनुमति नहीं है. नागरिकों की जिम्मेवारी से अधिक उनकी जिम्मेवारी बन जाती है कि वे सडकों पर हो रही दुर्घटनाओं को कम करने का प्रयास करें. दुर्घटना में किसी केन्द्रीय मंत्री का जाना देश के लिए दुखद का क्षण हो सकता है, देश की राजनीति में एक शून्य पैदा कर सकता है तो एक आम इन्सान की मृत्यु भी उसके परिवारीजनों के लिए शोक का विषय होता है, उसके परिवार में शून्य पैदा करता है.
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