माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा बत्ती लगाने
सम्बन्धी कुछ नियम-कायदे निर्धारित किये गए हैं. इससे पहले भी इस सम्बन्ध में
नियम-कायदे समय-समय पर बनते रहे हैं पर जिस तरह से सड़कों पर लाल-नीली बत्ती लगी
गाड़ियों की भरमार दिखाई देती है उसे देख कर लगता नहीं है कि पूर्व की तरह से इस
बार भी उच्चतम न्यायालय के इस बार के दिशा-निर्देशों का पालन किया जायेगा. लाल-नीली
बत्ती के, हूटर के उपयोग के सम्बन्ध में उनके इस्तेमाल सम्बन्धी नियम-कायदों, उनको
पालन करवाने से पहले जो कई सवाल पैदा होते हैं वो ये कि आखिर इन बत्तियों की, हूटर
की आवश्यकता क्यों है? आखिर इन बत्तियों, हूटर के माध्यम से खुद को विशेष दिखाने
की मानसिकता किस कारण है? आखिर किस लाभ की लालसा में इनका उपयोग किया जाता है?
कहीं ये सामंतवादी मानसिकता का प्रदर्शन तो नहीं? इनके अलावा भी कई सवाल
मन-मष्तिष्क में उमड़ते-घुमड़ते रहते हैं किन्तु कई बार लगा कि हो सकता है इन
बत्तियों, हूटर का कोई संवैधानिक महत्त्व होता हो किन्तु वास्तविकता में ऐसा कुछ
भी आज तक दिखा नहीं.
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सामान्य
पर देखा जाए तो कोई लाल-नीली बत्ती वाली गाड़ी, हूटर बजती गाड़ी किसी भयंकर
सड़क जाम में फँसी है तो वह इस विशेषता के कारण उड़कर तो निकल नहीं जाएगी. यदि किसी
उपद्रव की स्थिति में, आतताइयों के बीच इस तरह की बत्तियां लगी, हूटर लगी गाड़ियाँ
आ जाएँ तो उन उपद्रवियों में किसी तरह का भय व्याप्त नहीं होता है. इन कारों में
बैठे नेता-अधिकारी भी उपद्रवियों का शिकार बन ही जाते हैं. ये भी समझने की बात है
कि यदि किसी मुख्यमंत्री की कार बिना बत्ती, हूटर के किसी भी शहर से गुजरे तो उसके
साथ चलने वाला सुरक्षा दस्ता ही दर्शा देता है कि कोई विशेष व्यक्ति गुजर रहा है.
कुछ इस तरह की स्थितियाँ उन दूसरे उच्च संवैधानिक पदों के लिए भी है जिनके लिए
बत्ती आदि की व्यवस्था उच्चतम न्यायालय द्वारा की गई है. हाँ, एम्बुलेंस के मामले
में कुछ विशेष स्थिति को समझा जा सकता है.
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लाल-नीली बत्ती के, हूटर के उपयोग के सम्बन्ध
में साफ तौर पर देखने को मिलता है कि इनक उपयोग सिर्फ और सिर्फ पानी धमक दिखाने के
लिए, अपनी हनक को दर्शाने के लिए, जनसामान्य के बीच अपने आपको विशिष्ट दिखाने के
लिए किया जा रहा है. किसी भी जनपद में किसी सांसद के, किसी विधायक के पुछल्ले
समर्थक तक तो लाल बत्ती, हूटर के साथ घूमते नजर आते हैं; प्रशासनिक सेवाओं में
कार्यरत किसी भी अधिकारी के परिजन तक नीली बत्ती, हूटर लगाये रौब गांठते आये दिन
मिल ही जाते हैं और इन पर लगाम लगाने की हिम्मत किसी भी उच्च अधिकारी में नहीं
दिखाई देती है. ऐसे में इस बात को कपोलकल्पना ही समझा जाये कि माननीय उच्चतम
न्यायालय के दिशा-निर्देशों का अक्षरशः पालन हो सकेगा. बहरहाल हमारी अपनी समझ के
अनुसार इस तरह की किसी भी विशेष सुविधा की आवश्यकता कतई नहीं है. जब जनप्रतिनिधि,
कानून के रखवाले, कानून का पालन करवाने वाले जनता के बीच से ही हाँ, जनता के लिए
ही हैं तो फिर इनको जनता के बीच ही, जनता के सामने ही खास बनने की, कुछ अलग दिखने
की सुविधा क्यों?
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हाँ, किसी संवैधानिक प्रक्रिया के अंतर्गत यदि
लाल-नीली बत्ती लगाना, हूटर लगाना अनिवार्य ही हो तो फिर इन बत्तियों और हूटर की
बाज़ार में खिली बिक्री बंद की जाये. सरकारी स्तर पर किसी एजेंसी को इनके विक्रय के
लिए अधिकृत किया जाए और माननीय न्यायालय के आदेशानुसार ही सम्बंधित पद को सम्बंधित
लाल-नीली बत्ती, हूटर प्रदान किया जाये. एक के मिलने के बाद दूसरे का मिलना, ख़राब
होने की दशा में उसके बदलने आदि को लेकर भी दिशा निर्देश बनें तो संभव है कि इन
बत्तियों का, हूटर का दुरुपयोग रुक सके. यदि कोई ठोस, सकारात्मक कदम नहीं उठाया
जाता है तो आये दिन माननीय न्यायालय इसी तरह के दिशा निर्देश देती दिखेगी और तमाम
ऐरे-गिरे लाल-नीली बत्ती, हूटर लगाये सड़कों पर अपनी हनक दिखाते नजर आते रहेंगे.
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