माननीय न्यायालय की
टिप्पणी के बाद लिव-इन-रिलेशन फिर चर्चा में है. महिला मुक्ति के समर्थक ऐसे किसी
भी विषय का समर्थन करते आसानी से दिख जाते हैं जहाँ से शारीरक संबंधों की बाध्यता
से स्वतंत्रता मिलती दिखती हो जबकि संस्कृति की रक्षा का झंडा उठाये घूमते लोग ऐसे
विषयों के विरोध में बात करते दिखते हैं. देखा जाये तो इन दोनों पक्षों के लोग
कहीं न कहीं एक तरह की कट्टरता का अनुपालन करते दिखते हैं. इन लोगों के लिए विषय
की गंभीरता, उसके उद्देश्य, समाज पर उसका प्रभाव, उसकी दीर्घकालिकता का कोई अर्थ
नहीं होता, वे सिर्फ और सिर्फ अपनी-अपनी बात को सिद्ध करने का अनर्गल प्रयास करने
में लगे रहते हैं. लिव-इन-रिलेशन भी एक इसी तरह का विषय है जो एक तरफ स्त्री की
स्वतंत्रता का आयाम तय करता है वहीं दूसरी तरफ महिलाओं की स्थिति को ही नाजुकता प्रदान
करता है.
.
भूमंडलीकरण के इस
दौर में युवा वर्ग अपने कैरियर को बनाने की जद्दोजहद में लगा हुआ है. उसके लिए
वर्तमान में विवाह से अधिक महत्त्वपूर्ण जल्द से जल्द सफलता का मुकाम हासिल करना
होता है; अधिक से अधिक धनार्जन करना होता है; ऐशो-आराम के समस्त संसाधनों को
प्राप्त कर लेना होता है. आगे निकलने की आपाधापी में लगे युवाओं में विवाह संस्था
के प्रति विश्वास भी लगभग शून्य सा होता जा रहा है. किसी तरह की सामाजिकता का भान
उन्हें इस संस्था में नहीं दीखता है वरन यह एक तरह की बंदिश, प्रतिबन्ध सा दिखाई
देता है. बिना किसी प्रतिबन्ध, बिना किसी जिम्मेवारी, निर्द्वन्द्व भाव से जीवन
जीने की संकल्पना, अकल्पनीय स्वतंत्रता के बीच शारीरिक संबंधों की स्वीकार्यता ने
ही लिव-इन-रिलेशन जैसे संबंधों को जन्म दिया. इस तरह के सम्बन्ध नितांत दैहिक
आकर्षण और उसकी माँग और आपूर्ति जैसे क़दमों की देन होते हैं और यदि ये कहा जाए कि
ऐसे सम्बन्ध यदि दीर्घकालिक, पूर्णकालिक नहीं हैं तो इनका सर्वाधिक नुकसान महिलाओं
को ही उठाना पड़ता है, उन महिलाओं का कोपभाजन बनना होता है जो शारीरिक स्वतंत्रता
को महिला-स्वतंत्रता से सम्बद्ध करके देखती हैं. जबकि सत्यता यही है कि ऐसे
संबंधों में प्रत्येक रूप में महिलाओं को ही दुष्परिणाम सहने पड़ते हैं.
.
प्राकृतिक रूप से
स्त्री-पुरुष की शारीरिक स्थिति नितांत भिन्न रही है. सामाजिक प्रस्थिति को सफलता
के बिंदु पर ले जाने के बाद भी महिलाओं का अपनी विभिन्न शारीरिक क्रियाओं, उसकी
गतिविधियों पर नियंत्रण नहीं रहा है. यही कारण है कि जहाँ एक तरफ महिलाओं सम्बन्धी
गर्भ-निरोधक साधनों की, गर्भ रोकने के उपायों की बाज़ार में भरमार हुई है वहीं
दूसरी तरह गर्भपातों की, बिन-व्याही माताओं की, कूड़े के ढेर पर मिलते नवजातों की
संख्या में भी अतिशय वृद्धि देखने को मिली है. ये समूची स्थितियाँ महिलाओं को
अत्यधिक प्रभावित करती हैं. यदि लिव-इन-रिलेशन जैसे सम्बन्ध आपसी सामंजस्य से
विवाह संस्था से बचने के लिए हैं; सामाजिकता का अनुपालन करते हुए वैवाहिक कर्मकांडों
से बचने के लिए है; शारीरिक संबंधों की निर्बाध स्वीकार्यता के लिए है; अल्पकालिक
दैहिक सुख के लिए है तो सहजता से कहा जा सकता है कि ऐसे सम्बन्ध असामाजिकता को ही
बढ़ायेंगे. इस असामाजिकता को ध्यान में रखकर समझा जा सकता है कि भले ही ऐसे सम्बन्ध
दो अविवाहितों के बीच बनें, दो विवाहितों के बीच बनें या फिर एक अविवाहित-एक
विवाहित के बीच बनें वे सिर्फ और सिर्फ अनैतिकता को ही बढ़ावा देंगे. लिव-इन-रिलेशन
को सामाजिक-कानूनी मान्यता-स्वीकार्यता देने के पूर्व खुले मंच से इस पर बहस हो,
खुले दिल-दिमाग से इसके समस्त पहलुओं पर चर्चा हो, सकारात्मक दृष्टि से इसके नैतिक-अनैतिक
रूप का आकलन हो.
.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें