उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा
चौरासी कोसी परिक्रमा रोकने की कवायद के बाद अभी तक शांति से होती परिक्रमा पर विवाद
के बादल छा गए हैं. इसमें कोई दोराय नहीं कि आने वाले समय में रामजन्मभूमि मंदिर
की तरह ये यात्रा भी विवादित हो जाएगी. इस विवाद में एक तरफ विहिप, साधू-संत हैं
जो यात्रा करने पर अड़े हैं, दूसरी ओर प्रदेश सरकार है जो परिक्रमा रोकने को आमादा
है. बहरहाल इन दोनों पक्षों को पूर्वाग्रह से ग्रसित हुए बिना समझने की आवश्यकता
है.
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सरकार का पक्ष देखा जाये तो वो
ये तो कह रही है कि इस परिक्रमा से कानून व्यवस्था बिगड़ने की आशंका है पर स्पष्ट
नहीं करती कि किस तरह? कुछ साधू-संतों की रामधुन गाते यात्रा करने से कैसे माहौल
बिगड़ता, कानून व्यवस्था कैसे ध्वस्त होती? किसी सुरक्षा एजेंसी की रिपोर्ट का
हवाला नहीं है कि इस परिक्रमा से प्रदेश की शांति व्यवस्था, सुरक्षा, नागरिकों को
खतरा है. ऐसा भी याद नहीं पड़ता कि परिक्रमा लगा रहे साधू-संतों ने कभी अराजकता
फैलाई हो, उत्पात-दंगा जैसे हालात पैदा किये हों. यदि ऐसा कभी हुआ भी था तो भी सरकार
को स्पष्ट रूप से सबके सामने अपना पक्ष रखना चाहिए था. दरअसल सपा हमेशा से यादव
मतों के साथ-साथ मुस्लिम मतों के सहारे राजनैतिक वैतरणी पार करती रही है. अभी तक
सपा द्वारा मुस्लिम वर्ग को अयोध्या में विवादित परिसर में राममंदिर नहीं बनने देने
का भरोसा लगातार दिलाया जाता रहा पर माननीय उच्च न्यायालय द्वारा इस मामले में दिए
निर्णय से सपा के हाथ से ये तीर निकल चुका था. ऐसे में मुस्लिम मतदाताओं को रोकने
की योजना के अंतर्गत कभी मुस्लिम आतंकवादियों को जेल से रिहा करने की, कभी
अल्पसंख्यक के नाम पर आरक्षण की राजनीति की, कभी मुस्लिम नेताओं से आपराधिक मुक़दमे
वापस लेने की कवायद की जाती है. सपा सरकार इस परिक्रमा को रोककर मुस्लिम मतदाताओं
में विश्वास पैदा कर रही है कि सपा हर हाल में मुस्लिमों के पक्ष में है.
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अब यदि विहिप और साधू-संत की
बात की जाये तो यहाँ भी राजनीति ही दिखाई देती है. यात्रा समर्थकों को एक बात स्पष्ट
करनी होगी कि यात्रा का यही समय क्यों? सूत्र बताते हैं कि भाद्रपद में कभी परिक्रमा
नहीं की गई क्योंकि हिन्दू मान्यताओं के अनुसार ये समय चातुर्मास का होता है जिसमें
मान्यता है कि भगवान विश्राम की अवस्था में होते हैं. यदि साधू-संत सिर्फ रामधुन
गाते हुए परिक्रमा पूरा करना चाहते हैं, बहुत बड़ा धार्मिक कर्मकांड नहीं है तो फिर
ऐसा करना कभी भी संभव है. ऐसे में जबकि भगवान शयन अवस्था में हैं तो इस परिक्रमा से
उस मोक्ष की सम्भावना भी शून्य हो जाती है, जिसके मिलने की बात संत समाज कहता है. ऐसी
स्थिति में विवाद पैदा करने के अतिरिक्त और कुछ नहीं होने वाला. विहिप तथा संत
समाज ने इस परिक्रमा की भूमिका चुनावी वर्ष को देखते हुए ही बनाई है. ये सभी के
संज्ञान में है कि मोदी के चुनावी कमान थामने से हिन्दू मतदाताओं का ध्रुवीकरण हो
सकता है. इसके अलावा कांग्रेस के प्रति देशव्यापी असंतोष और प्रदेश में सपा की
गिरती साख से भाजपा में सत्ता की आशा जगी है. ऐसे में भाजपा-सपा आदि सहित कोई भी
अपनी कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहता है.
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भले चौरासी कोसी परिक्रमा से माहौल
न बिगड़ रहा हो; किसी तरह की कानूनी व्यवस्था ध्वस्त न होती हो पर ये तो स्पष्ट है
कि अब इस परिक्रमा को रोकने से, संत समाज के अड़ने से माहौल तनावपूर्ण होगा. सरकार
द्वारा ये कदम उठाये जाने से उन अराजक ताकतों को बल मिलेगा जो समाज में
हिन्दू-मुस्लिम विवाद को हवा देना चाहते हैं, अराजकता फैलाना चाहते हैं. प्रदेश सरकार
को और परिक्रमा आयोजकों को बातचीत के माध्यम से बीच का रास्ता निकालना चाहिए था. विवाद
को हवा देने तथा नया विवाद पैदा करने से बचना चाहिए था. सरकार को समझना चाहिए कि
विवाद किसी भी समस्या का समाधान नहीं. यात्रा को बलपूर्वक रोकने से बेहतर था कि
परिक्रमा स्थलों पर ऐसी सुरक्षा व्यवस्था की जाती कि कोई अराजक तत्त्व प्रदेश का
माहौल बिगाड़ न पाता.
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