समाज जिस तेजी से विकास की ओर
अग्रसर है, उसी तेजी से उसमें विकार भी आते जा रहे हैं. कहीं न कहीं संबंधों में,
रिश्तों में कुछ बिखरता सा, छीजता सा नजर आ रहा है. रक्त-संबंधों में, पारिवारिक
संबंधों में, रिश्ते-नातेदारी में अपनत्व का, भावनात्मक लगाव का होना स्वाभाविक है
किन्तु इन संबंधों के अलावा दोस्ती का रिश्ता तथा पति-पत्नी का रिश्ता विशेष
महत्त्व रखते हैं. इन रिश्तों में लगाव, अपनत्व, भावनात्मकता का होना अपने आपमें
अद्भुत ही है. बिना किसी रक्त-सम्बन्ध के एक अजब सा बंधन एक-दूसरे को ताउम्र जोड़े
रखता है. समाज के बिखराव के मध्य इन पवित्र रिश्तों में भी गिरावट देखने को मिल
रही है. वैसे समाज में रिश्तों का, संबंधों का बिखराव उसके सशक्त विकास के लिए सही
नहीं है किन्तु दोस्ती के, पति-पत्नी के संबंधों में आती कड़वाहट किसी भी रूप में समाज
के लिए सुखद संकेत नहीं है.
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हमेशा से कहा जाता रहा है कि
पति-पत्नी जीवन रुपी गाड़ी के दो पहिये हैं, जिनका एकसमान होना, एकसाथ चलना ही जीवन
को गति प्रदान करता है; सफलता की मंजिल तक ले जाता है. इधर देखने में आ रहा है कि
पति-पत्नी जीवन रुपी एक गाड़ी के दो पहिये न होकर जीवन-पथ पर चलने वाले दो वाहन हो
गए हैं. ये दोनों वाहन अलग-अलग रूप के, अलग-अलग सोच के हैं, जो कभी एक साथ चलते
हैं, कभी एक दूसरे को पीछे छोड़ने की होड़ में लग जाते हैं, कभी आमने-सामने आते हैं
और कभी-कभी तो आपस में टकरा कर स्वयं को क्षतिग्रस्त कर बैठते हैं, जीवन-पथ को भी
नुकसान पहुँचाते हैं. दाम्पत्य-जीवन के बिखराव के लिए, पति-पत्नी के आपसी विश्वास
में कमी के लिए दोनों प्राणी ही दोषी हैं. स्वयं को दूसरे से श्रेष्ठ समझने का
अहम्, खुद को दूसरे से उच्च समझने का घमंड इस पवित्र रिश्ते को आये दिन कलंकित कर
रहा है, इसके लिए किसी उदाहरण की आवश्यकता नहीं.
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इसी तरह से कृष्ण-सुदामा की
दोस्ती का उदाहरण देने वाले समाज में आज दोस्ती भी कलंकित होते दिख रही है. आये
दिन देखने में आता है कि एक दूसरे पर जान देने वाले दोस्तों ने एक दूसरे की जान ले
ली. सगे सम्बन्धियों से, रक्त-सम्बन्धियों से बढ़कर माना गया ये रिश्ता भी अपनी
पावनता को नष्ट कर रहा है. लड़कों के बीच की दोस्ती हो, लड़कियों के बीच की दोस्ती हो
या फिर लड़के और लड़कियों के बीच की दोस्ती (हालाँकि इस विपरीतलिंगी दोस्ती के अभी
समाज स्वयं ही सकारात्मक सोच के साथ नहीं देखता है) सभी में एक दंभ सा दिखाई देने
लगा है. दोस्तों के बीच होने वाला हल्का-फुल्का हँसी-मजाक भी अब दोस्ती में दरार
पैदा करने की दम रखने लगा है. नितांत अनौपचारिक इस रिश्ते में भी घनघोर औपचारिकता
देखने को मिल रही है. एक दूसरे को अपना अभिन्न मित्र बताने वाले लोगों में आपस में
छिपी वैमनष्यता, कटुता, असहयोग, विश्वासघात जैसी कु-स्थितियाँ आज आम हो चुकी हैं.
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ऐसा नहीं है कि उक्त दोनों
पवित्र रिश्ते पूर्णतः अपनी विश्वसनीयता गँवा चुके हैं. आज भी हमारे बीच में
सैकड़ों उदाहरण इस तरह के हैं जो अनुकरणीय कहे जा सकते हैं. इसके बाद भी बहुसंख्यक
रूप में इन संबंधों में गिरावट ही देखने को मिल रही है. किसी अदृश्य डोर से बंधे, प्रेम-स्नेह
की रक्त-मज्जा से बनी रिश्तों की बुनियाद को आज के परिप्रेक्ष्य में बचाए रखना परम
आवश्यक हो गया है. नितांत खोखले होते चले जा रहे समाज को दृढ़ता प्रदान करने के
लिए, खोते जा रहे विश्वास को पुनः प्राप्त करने के लिए, औपचारिकता को जीवन का एक
अंग बना चुके लोगों के बीच भावनात्मकता जगाने के लिए, मशीन की तरह से चलायमान
इन्सान को संवेदित इन्सान बनाये रखने के लिए रिश्तों का मजबूत होना, विश्वास्परक
होना अनिवार्य है. आइये संबंधों को मजबूत करें, रिश्तों को सशक्त करें, दोस्ती को पवित्र
करें.
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