नाबालिगों का नशे में लिप्त होना, पब, रेव पार्टियों में उन्मुक्त रूप में इनका शामिल होना; नाबालिग युवाओं की सेक्स, रेप मामलों में ज्यादा से ज्यादा संलिप्तता होना; आपराधिक गतिविधियों में नाबालिगों का सामने आना संभवतः नब्बे के दशक में शुरू हुए उदारीकरण, निजीकरण, वैश्वीकरण (Liberalisation, Privatisation, Globalisation = LPG) का पूर्ण विस्फोटक रूप है. ये बात शायद उन लोगों को न सुहाए जो उस दौर में भी इस एलपीजी का समर्थन कर रहे थे और आज भी उसी के भक्त बने वास्तविकता से मुँह मोड़ रहे हैं. हो सकता है कि इन सब बातों से सीधे-सीधे इसका कोई तालमेल न हो पर जिस तरह से नई पीढ़ी के सामने एलपीजी को प्रदर्शित किया गया है, उससे इस पीढ़ी को अपने जीवन का सार इसी में नज़र आया. तत्कालीन केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री का बयान आज भी याद आता है, जो उन्होंने ९५-९६ में युवाओं को संदर्भित करते हुए दिया था, कि कौन किसके साथ सोता है, इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता, बस वो कंडोम का इस्तेमाल करते हों. समझा जा सकता है कि जिस एलपीजी को देश के आर्थिक विकास के लिए अनिवार्य समझा गया था उसे कहीं न कहीं दूसरे रूप में युवाओं के सामने पेश किया जा रहा था.
युवाओं को समूचा विश्व आज मुट्ठी में बंद सा दिखता है; एक क्लिक पर समूची दुनिया युवाओं को अपने सामने खड़ी दिखाई पड़ती है, ऐसे में वैश्विक स्तर पर वे अपने को कमतर कैसे समझ सकते हैं. एलपीजी ने वैश्विक संस्कृतियों के घालमेल को जन्म दिया है न कि उनके आदान-प्रदान का अवसर दिया है. हमारे युवा अपने देश की पावन संस्कृति को भुलाते हुए वैश्विक आधुनिक संस्कृति को अपनाने को आतुर दिखते हैं. इन युवाओं की स्वच्छंद सोच पर उनके अभिभावकों का नियंत्रण, समाज का नियंत्रण आज एलपीजी के समर्थक लोगों को दकियानूसी लगता है, गुलाम मानसिकता का दिखाई देता है. जल्द से जल्द अपने आपको सफलता के मुकाम पर ले जाने, आधुनिकता के नाम पर कुछ भी करने को स्वतंत्रता मान लेने की मानसिकता ने युवाओं को एक प्रकार की अंधी दौड़ में शामिल करवा दिया है. इस दौड़ में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पैकेज, वैश्वीकरण की रंगीन मानसिकता, धुंए के छल्ले, शराब के छलकते जाम, बाँहों में विपरीतलिंगी साथी का साथ, सड़क पर बेतहाशा दौड़ते वाहनों, धन का अंधाधुंध दुरुपयोग आदि युवाओं के कदम भटकाने में उत्प्रेरक की भूमिका निभा रहे हैं.
एलपीजी
के विस्फोटक दौर में समाज कहाँ जाएगा, यहाँ का युवा कहाँ जाकर स्वयं को नियंत्रित
करेगा, आर्थिक गिरावट के दौर में सांस्कृतिक पतन को कौन संभालेगा, मंहगाई के
अनियंत्रित रूप में युवाओं का आपराधिक चेहरा कैसे नियंत्रित किया जायेगा, केंद्र
सरकार-राज्य सरकारें, राजनैतिक दल, राजनीतिज्ञ कब अपनी-अपनी भूमिका का सही निर्वहन
करके देश को घोटालों-भ्रष्टाचार से मुक्त करने के साथ-साथ युवाओं में भी सकारात्मकता
का विकास करेंगे....इन तमाम सारे सवालों के साथ-साथ अनगिनत अनुत्तरित प्रश्न और अव्यवस्थित
स्थितियाँ अपना मुँह खोले खड़ी हैं. जब तक इन विपरीत स्थितियों को सकारात्मक नहीं
बनाया जायेगा तबतक हम अपने देश के युवाओं को इस एलपीजी के मोहपाश में बंधे देखते
रहेंगे. यही मोहपाश उनको धीरे से आपराधिक प्रवृत्ति की तरफ कब ले जाता है, न
उन्हें मालूम पड़ता है, न ही उनके अभिभावकों को, न ही समाज को.
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