22 फ़रवरी 2013

धमाकेविहीन जिंदगी का सूनापन मिटा



          वाह! बहुत दिनों बाद कुछ खालीपन दूर हुआ; कुछ अच्छा-अच्छा सा महसूस हुआ। बहुत दिन हो गये थे और कोई धमाकेदार खबर सामने नहीं आई थी, ऐसा लगने लगा था कि अब ये फरवरी भी निपट खाली निकलेगा। आखिर इसमें भी कितने दिन रह गये थे, कुल मिलाकर चार-पांच और उसके बाद फरवरी भी अपने छूछेपन के लिए इतिहास में जानी जाने लगती। हमारी तरह बहुत से लोग होंगे जो इस खालीपन को, रीतेपन को बड़ी शिद्दत से महसूस कर रहे होंगे। सम्भव है कि आप भी खालीपन को इसी शिद्दत से महसूस कर रहे होंगे..कर रहे थे न...! और देखिये हमारे-आपके खालीपन को भरने का इन साबह लोगों को, माननीय लोगों को कितना ख्याल है। हैदराबाद में आकर धमाका किया और विगत कुछ दिनों से आये धमाकेविहीन जीवन को धमाकेदार बना दिया। 
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          पिछले कुछ वर्षों में हमारे जीवन में धमाकों ने इतना प्रभाव जमाया है कि यदि कुछेक दिन छूछे निकल जायें तो अपच जैसी स्थिति होने लगती है; बदहजमी सी होने लगती है; खट्टी-खट्टी डकारें आने लगती है; पेट में मरोड़ सी बनी रहती है लगता है कोई धमाका हो और ऐसी विषम स्थिति से छुटकारा मिले। बहुत दिनों से बड़ी अकुलाहट सी महसूस हो रही थी, अब जाकर चित्त को राहत मिली, कलेजे में ठंडक पड़ी। धमाकेविहीन जीवन में दो-तीन धमाके करके आतंकियों ने तरंग सी उठा दी। अब हम कुछ दिनों तक पाकिस्तान को गरियाते पाये जायेंगे; कुछ दिनों तक आतंकी हमलों की भर्त्सना करेंगे; कुछ दिनों तक इन हमलों के तार जोड़ने की कवायद करेंगे; कुछ दिनों तक अपने-अपने एक्सपर्ट कमेंट करके चाय-पान की दुकानों की शोभा बढ़ायेंगे; कुछ दिनों तक इन हमलों को भारतीय राजनीति से जोड़कर अपने विचारों को व्यक्त करके स्वयं को बुद्धिजीवी साबित करने का प्रयास करेंगे और इस पूरी उठापटक में जैसे ही जीवन धमाकेविहीन दिखाई देगा, हमारे आयातित साहेबान पुनः कुछेक धमाके करके हमें बातों के बताशे फोड़ने को प्रेरित कर देंगे। 
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          वैसे कुछ भी हो, इस बार के हैदराबादी धमाकों ने जितना खालीपन दूर करके कुछ कहने को प्रेरित किया है, उससे अधिक प्रेरणा, प्रोत्साहन, उमंग, उल्लास, भरा-भरापन हमारे आला मंत्री महोदय ने दिया है। उनके बयान को सुनकर लगा कि कोई है तो इस देश में जो दो दिन पहले खुफिया जानकारी मिलने के बाद भी खामोशी से इंतजार करता रहा। इससे पहले कि कुछ सोचा विचारी का कार्यक्रम हम अपनी खोपड़ी में चालू करते कि एकाएक याद आया कि ये महाशय निराधार बयान देने के, निराधार बात कहने के पूर्ण अधिकारी हैं। हो सकता है कि अपनी इसी पिनक में वे यह समझ रहे हों कि देश का खुफिया तन्त्र भी निराधार बात करने लगा हो अथवा निराधार बयान देने लगा हो। ऐसा हर बार सम्भव नहीं कि हर बात ही निराधार हो और फिर इस बात का ध्यान हमारे उन आतंकी महानुभावों को याद रखनी चाहिए थी, जिन्हें हमारे देश के शीर्षस्थजन साहब-साहब कहते नहीं थकते हैं, उन साहेबानों को याद रखना चाहिए था कि कम से कम एक-दो बार तो आला मंत्री महोदय का विश्वास बनाये रखना चाहिए था। खुफिया तन्त्रों की जानकारी को निराधार साबित तो करवा ही देना चाहिए था। 
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          बहरहाल कुछ भी हो, कुछ खालीपन तो दूर हुआ ही और यह भी समझ आया कि अभी भी देश का खुफिया तन्त्र निराधार बातें नहीं करता है। यह बात और है कि हमारे आला मंत्री जी निराधार बातें कर लेते हैं; आतंकवाद को भी परिभाषित कर लेते हैं; उसे रंगबिरंगा बना देते हैं। चलिए, धमाकों के बीच कुछ समय गुजरेगा, कुछ दिनों छीछालेदर की जायेगी और फिर खुफिया जानकारियों की सूचना को नजरअंदाज किया जायेगा। इस बीच हमारे कुछ साहेबान हमारी सरकारी उदासीनता का लाभ उठाते हुए कहीं और धमाका करेंगे....फिर भी कुछ भी कहो हमारी धमाकेविहीन जिन्दगी को धमाकों से गुलज़ार तो नहीं......गुल करते हैं।
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.चित्र गूगल छवियों से साभार

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