22 जनवरी 2013

तुष्टिकरण और हिन्दुओं को बदनाम करने के लिए इतना न गिरो


शाबास शिंदे साहब... हमारी निगाह में आपको साहब कहना आपका अपमान कतई नहीं हो सकता है क्योंकि आपकी पार्टी के एक महामना आतंकवादियों तक को साहब कहते हैं. कहना भी चाहिए, आखिर आपही की पार्टी है जो गाँधी जी के सिद्धांतों का पूरी तरह से (अ)पालन करती है. गाँधी जी दुश्मन को भी प्रेम करने की बात किया करते थे और आपकी पार्टी उनकी बात को मानती है. बहरहाल आपके लिए आज गाँधी जी कितने प्रासंगिक हैं...गाँधी जी के नियम-कानून कितने प्रासंगिक हैं, गाँधी जी के सिद्धांत कितने मायने रखते हैं ये भी चिंतन का बिंदु होना चाहिए. (वैसे चिंतन शिविर में आपके नव-मनोनीत पार्टी उपाध्यक्ष ने चिंता जताई भी है कि कांग्रेस कई बार बिना नियम-कानून के काम कर जाती है.) लगता है बात फिर भटक रही है...बिलकुल आप लोगों की तरह, कोई बात नहीं..जो कहना चाह रहे हैं अब वही कहते हैं.
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आपको तो परिवार की राय के साथ, मौन राय के साथ सदैव सहमती व्यक्त करते देखा गया है. उसका पुरस्कार आपको पहले ही मिल चुका है, अब किस बात की लालसा है आपको? ये तो आप भी जानते होंगे कि प्रधानमंत्री तो आपको बनाया नहीं जाएगा...पार्टी का अध्यक्ष, उपाध्यक्ष जैसा कोई महत्वपूर्ण पद भी आपके हिस्से में नहीं आना है...फिर क्या कारण रहा कि आपने फिर से परिवार को खुश करने के लिए, पार्टी के नए-नए उप-मुखिया को खुश करने के लिए एक शिगूफा छोड़ दिया? आपने भाजपा, आरएसएस पर निशाना साध कर अपनी पार्टी के एकमात्र परिवार को खुश करने की नीति का पालन करने का प्रयास किया है. देखा जाए तो आपका निशाना किसी भी रूप में भाजपा या आरएसएस नहीं है...आप इनकी आड़ में सिर्फ और सिर्फ हिन्दुओं पर निशाना साधने की कोशिश में हैं.
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ये बात आप और आपकी पार्टी भली-भांति समझती है कि यदि हिन्दुओं पर आप लोगों द्वारा निशाना साधा जाता है तो आपकी पार्टी की तुष्टिकरण की नीति सफल होती है, आपके परमप्रिय पडोसी देश के ‘साहब’ आतंकी भी प्रसन्न होते हैं. यही कारण रहा कि आपके बयान देते ही सीमा पार से ‘साहब’ आतंकी ने भारत देश को आतंकवादी राष्ट्र घोषित करने की माँग छेड़ दी. ये बात सभी को भली-भांति मालूम है कि उन ‘साहब’ की माँग पर कुछ होने वाला नहीं है पर डर इस बात का है कि कहीं आपकी सरकार आप ही की तरह सुरताल करने लगी और उन ‘साहब’ की माँग का समर्थन कर दिया तो.........??? आप और आपकी पार्टी के तमाम लोग हिन्दू-विरोध के नाम पर, तुष्टिकरण के नाम पर कुछ भी...कुछ भी कर सकते हैं.
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जहाँ तक सवाल हिन्दुओं का है तो इस देश में सदैव से ही हिन्दुओं को सांप्रदायिक घोषित करने का काम किया जाता रहा है. धर्मनिरपेक्षता और साम्प्रदायिकता के नाम पर बार-बार समाज में वैमनष्यता साबित करने की कोशिश की जाती रही है. आप और आपकी पार्टी को हमेशा ही कष्ट होता है जब पूरे विश्व में कहीं से भी ‘इस्लामिक आतंकवाद’ ‘मुस्लिम आतंकवाद’ जैसे शब्दों की ध्वनि-प्रतिध्वनि सुनाई देने लगती है. ऐसे में आपका और आपकी पार्टी का एकमात्र उद्देश्य यही रह गया कि कैसे भी भारत देश में भगवा आतंकवाद, हिन्दू आतंकवाद का प्रचार किया जाए...उसको बार-बार बिकाऊ मीडिया के द्वारा पूरे देश में फैलाया जाए. इस कुप्रचार करने के कुकृत्य में आप भूल गए कि भगवा वो क्रांतिकारी रंग है जिसने इस देश की आज़ादी के महासंग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है. आप सब भूल गए कि भगवा रंग हमारे राष्ट्रध्वज में है...स्वयं आपकी पार्टी के झंडे में है...आप भूल गए कि इसी भगवा रंग के वस्त्र धारण करके स्वामी विवेकानंद ने न केवल देश का नाम बल्कि हिन्दू धर्म का नाम समूचे विश्व में रोशन किया था. वैसे भूलने वाली बात आप लोगों के लिए घनघोर रूप से अप्रासंगिक है क्योंकि आपको न तो अपनी पार्टी के मूल सिद्धांत याद है, न आपको अपनी पार्टियों के महान पुरखों के कार्य याद हैं तो फिर आप भगवा के महत्त्व को कैसे याद रखते?
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वैसे आपकी दो कौड़ी की बात के लिए, एक परिवार को खुश करने के लिए छेड़े गए शिगूफे के लिए, तुष्टिकरण की नीति को और प्रभावी बनाने के लिए, पडोसी देश के ‘साहब’ आतंकियों को राहत देने के लिए दिए गए उठाये गए इस चिंतन से सनातन धर्म पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला....किसी समय देश भर के सभी धर्मों को, जातियों को, वर्गों को जागृत करने वाला भगवा रंग भी धूमिल नहीं होने वाला. बात सिर्फ इतनी है कि भले ही आपके बयान से कुछ न होने वाला हो, भले ही कोई फर्क पड़ने वाला न हो पर आप लोगों की क्षुद्र मानसिकता स्पष्ट हो चुकी है, तुष्टिकरण के लिए किसी भी निम्नता तक पहुँचने की बात स्पष्ट हो चुकी है. अंत में एक सलाह (कोई सही बात मानना आपने और आपकी पार्टी ने सीखा ही कहाँ है) कि भले ही आप तुष्टिकरण की नीति चालू रखो, भले ही आप हिन्दुओं को सांप्रदायिक घोषित करते रहो, भले ही आप भगवा आतंकवाद को प्रचारित करते रहो पर कम से कम सब करने से पहले ‘देश-हित’ को भी देख लिया करो. ‘जन-हित’ को तो आपकी पार्टी, सरकार की नीतियों ने मिटा ही डाला है, कम से कम ‘देश-हित’ का तो ध्यान किये रहो. 

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