पिछले कुछ दिनों से मन कुछ चिन्तन करने जैसी हालत में
पहुंचने की कोशिश करता और कुछ ही पल में उदास हो जाता। उसे चिन्तन करने के लिए नित
ही तमाम सारे बिन्दु मिल रहे थे किन्तु चिन्तन करने का स्थान नहीं मिल पा रहा था।
चिन्तन के लिए स्थान न मिल पाने के कारण चिन्तन करने वाले बिन्दुओं का लगातार ढेर
लगता जा रहा था। इधर एकाएक तीव्रगति से दौड़ते मन को चिन्तन करने लायक स्थान मिल
गया। जैसे ही मन को स्थान मिला, मन ने मनन
करना,
चिन्तन करना शुरू कर दिया। एक के बाद एक बिन्दुओं को सामने
रखा जाता,
उस पर चिन्तन किया जाता और चिन्तन ही किया जाता।
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मन ने पहले मुद्दा रखा मंहगाई का; अभी इस पर चिन्तन प्रारम्भ हो ही पाता कि मन के किसी कोने
से आवाज आई कि ये भी कोई मुद्दा है, चिन्तन करने लायक?
बकवास....कोई जिम्मेवारी समझो और यकीनन चिन्तन जैसा कुछ
करो। बस मंहगाई को एक कोने में डालकर जिम्मेवारी जैसा कुछ चिन्तन किया जाने लगा।
इसी चिन्तन की कड़ी में रसोई गैस लीक कर गई। मन ने बहुत गम्भीरता से इस ओर चिन्तन
करना शुरू ही किया था कि उसकी हवा निकाल दी गई। एकाएक हवा बनने और उसी तेजी से हवा
निकल जाने से गैस में संकुचन पैदा हो गया। कभी घटती, कभी बढ़ती...कभी छह पर टिकती तो कभी नौ का आंकड़ा छूती। इस पर कोई ठहराव आता
जिम्मेवारी निर्धारित करने वाले तत्व फिर हावी हो गये। जिम्मेवारी को सामने देखकर
मन ने अपनी सहमति कटिया मारकर बिजली हीटर जलाकर उसको रसोई में प्रयोग करने का
प्रस्ताव पारित कर दिया। जिम्मेवारी निर्धारित करने वालों ने भी जय-जयकार की और
चिन्तन के तमाम बिन्दुओं में एक बिन्दु आसानी से निपट गया।
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अभी कुछ और हुआ होता कि मन ने अपनी उड़ान भर कर डीजल, पैटोल की कीमतों की चर्चा छेड़ी रेलवे किराये की बात उठी, खाद्य पदार्थों की बात उठी, नागरिकों की सुरक्षा की बात उठी, देश की सुरक्षा पर चिन्तन करने का प्रयास किया गया, आर्थिक नीतियों पर चिन्तन करने का सुझाव दिया गया, विदेश नीतियों पर, पड़ोसी के व्यवहार पर व्यापक चिन्तन करने की ओर कदम बढ़ाने को सोचा गया किन्तु
हर बार किसी न किसी रूप में जिम्मेवारी निर्धारित करने वाले सामने आते रहे, जय-जयकार करते रहे और एक-एक करके तमाम सारे चिन्तन सम्बन्धी
बिन्दुओं को चिन्ताजनक बनाते रहे। अन्त में जिम्मेवारी निर्धारित करने की ओर सभी
का ध्यान खींचा गया। चिन्तन के बिन्दुओं को एक स्थिति पर केन्द्रित किया गया।
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मन अपनी ओर से पूरी तरह से मनन कर रहा था, चिन्तन कर रहा था किन्तु जिम्मेवारियों का निर्धारण करने की
मांग के चलते बार-बार चिन्तन में खलल पड़ता। अन्ततः हारकर मन ने भी जिम्मेवारियों
को निर्धारित करने वालों की तरफ शामिल होना स्वीकार किया। अबकी कोई समस्या सामने
नहीं आई। जिम्मेवारियों का भान मन को भी हो गया था। उसने अपने आपको इधर-उधर भटकाने
के स्थान पर जिम्मेवारियों के समझने पर केन्द्रित किया। मन अब व्याकुल नहीं था, उसे चिन्तन करने का उपयुक्त स्थान भी मिल गया था, चिन्तन करने को बिन्दु और चिन्तन करने का तरीका भी मिल गया
था।
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परिणाम कुछ भी रहे पर बाथरूम में सुबह-शाम आकर मन आसानी से
बिना किसी खलल के मनन-चिन्तन तो कर ही सकेगा।
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