06 दिसंबर 2012

अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता

            लोकसभा में एफ0डी0आई0 पर बहस के बाद अन्ततः उसे वहां से मंजूरी मिल गई अब वो राज्यसभा की राह पर है। खुदरा बाजार में विदेशी निवेशकों के आने से खुदरा व्यापारी जिन्दा रहेगा या मर जायेगा; किसान आत्महत्या करना बन्द कर देंगे अथवा नहीं; दलित खुदरा व्यापारी सम्पन्न हो जायेंगे अथवा और विपन्न होंगे ये तो बाद में ही पता चलेगा किन्तु जिस तरह का खेल इस पूरे मुद्दे पर राजनीतिक दलों द्वारा खेला गया वह बहुत कुछ स्पष्ट कर गया। एफ0डी0आई0 पर कुछ दिनों पहले हुए देशव्यापी बन्द में जो राजनैतिक दल एकसुर में इसका विरोध करते दिख रहे थे वही सदन में उसके समर्थन में चिंघाड़ते दिखे। इस मिमियाती चिंघाड़ के पीछे के उनके स्वार्थ या तो तुरन्त पूरे दिखे अथवा आने वाले दिनों में पूरे होते दिखने की सम्भावना है।

            बसपा को इस मुद्दे पर सरकार को बचाने का पारितोषिक तुरन्त ही प्राप्त हो गया। मुम्बई में इंदु मिल की जमीन पर अम्बेडकर स्मारक को बनावाने की वर्षों से लम्बित बसपा की मांग को सरकार ने आनन-फानन में मान लिया। इस मामले में कई बार राज्यसभा में मायावती के विरोध के चलते वहां की कार्यवाही तक स्थगित करनी पड़ी। सरकार ने अपना संख्या बल कम देखकर बसपा की मांग पूरी की और परिणामस्वरूप सदन से बहिर्गमन के द्वारा बसपा ने भी सरकार को जीवनघुट्टी पिला दी। कमोवेश कुछ इसी तरह का हाल सपा का भी रहा। हालांकि तुरन्त में कोई भी प्रत्यक्ष लाभ लेते सपा दिखती नहीं है किन्तु कहीं न कहीं उसने प्रमोशन में आरक्षण सम्बन्धी अपने प्रस्ताव को पारित करवाने के लिए एफ0डी0आई0 मुद्दे पर सरकार को समर्थन देने की राजनीति की होगी। यह अभी पर्दे के पीछे भले हो किन्तु जिस तरह से विगत कई माहों में सपा-बसपा की जुगलबन्दी सरकार को बचाने के सम्बन्ध में दिख रही है, उसके अनुसार किसी भी प्रकार का लेन-देन सम्भव है।
            इन दो दलों के अलावा वर्षों से देश में लेन-देन की, स्वार्थ की, परिवारवाद की राजनीति की जिस तरह से कांग्रेस ने बढ़ाया है, उसके फलक को इस मुद्दे पर और विस्तार ही मिला है। विगत कुछ माह से लगातार खुलते घोटालों के बीच जिस बेशर्मी से कांग्रेस ने एक के बाद एक जनता के साथ छलावा किया है, वह उसकी कुत्सित मानसिकता को दर्शाता है। अपने आपको घोटालों के बीच भी स्वच्छ और सर्वोपरि बताने की कुचेष्टा में उसने अपने प्रत्येक कदम से जनता के सामने अपनी हेकड़ी, अपनी हनक को ही प्रस्तुत किया है। एफ0डी0आई0 मुद्दे पर जिस तरह का माहौल उसके द्वारा रचा गया, वह भी हतप्रभ करने वाला रहा। 

            बहरहाल, एफ0डी0आई0 की सत्यता क्या है, यह अलग बात है किन्तु जिस तरह से राजनैतिक समीकरणों को बिना जनहित भावना के बनाया-बिगाड़ा जा रहा है उससे स्पष्ट है कि इन राजनीतिज्ञों के स्वार्थमयी लाभ जनहित से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं। दलितों की समर्थक, समाजवाद की पोषक बताते स्वयंभू इन राजनैतिक दलों-नेताओं ने अपने-अपने मंसूबों को जाहिर कर दिया है। एफ0डी0आई0 का परिणाम क्या होगा, यह तो भविष्य की बात है किन्तु आगामी लोकसभा चुनाव के आसपास किस हद तक लेन-देन की राजनीति देश में बढ़ेगी; संवैधानिकता का कितना विकृत रूप सामने रखा जायेगा; साम्प्रदायिकता, धर्मनिरपेक्षता का शिगूफा छोड़कर किस तरह की फिरकापरस्ती की राजनीति की जायेगी; स्वार्थमय सोच के द्वारा किस तरह से जनहित को ताक पर रखकर सम्पूर्ण देशवासियों को ठेंगे पर रखा जायेगा, यह पूर्णरूप से स्पष्ट होता दिखा है। इन दो दलों-सपा, बसपा- की राजनैतिक प्रतिद्वंद्विता भले ही सामने दिखती हो किन्तु यह साफ हो गया है कि अपने-अपने लाभ के लिए ये दोनों सब कुछ भुलाकर एक मंच पर गलबहियां करते दिख सकते हैं। लेन-देन की जिस राजनीति को वर्षों से कांग्रेस करती आई है, उसने पुनः अपनी थाती को स्पष्ट कर दिया है।

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चित्र गूगल छवियों से साभार

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