‘आने के ही साथ जगत में कहलाया जाने वाला’
बच्चन जी की मधुशाला की ये पंक्ति इस संसार मे सभी पर
एकसमान रूप से लागू होती हैं। हमारे जीवन का एक-एक पल गुजरते हुए चला जाता है और
हर एक पल के पीछे एक दूसरा पल हमारे सामने आने को खड़ा होता है। वर्ष 2012 जाने को है और उसके ठीक पीछे वर्ष 2013 आने को तत्पर खड़ा हुआ है। देखते-देखते नई सदी के 12 वर्ष भी गुजर गये और ऐसा लगता है जैसे इक्कीसवीं सदी के
स्वागत में मनाये गये आयोजन, कार्यक्रम जैसे कल की ही बात हो। इन 12 वर्षों में हमने बहुत कुछ खोया और बहुत कुछ पाया;
हर्ष भरे पलों ने हमें उल्लासित किया तो वहीं दुःख के पलों
में हमारी आँखों में आँसू भी आये। कुछ इस तरह का वातावरण वर्ष 2012 में भी देखने को मिला, कमोवेश हर्ष और दुःख का मिलाजुला माहौल प्रत्येक वर्ष हमें
देखने को मिलता है। यह और बात है कि हम अपने बीते पल की गलतियों से कोई सबक न लेते
हुए आने वाले पल के स्वागत में लग जाते हैं।
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व्यक्तिगत रूप से इस समाज के सभी लोगों ने वर्ष 2012 में हर्ष-उल्लास भरे पलों को जिया होगा तो दुःख की घड़ी का
भी सामना किया होगा। अपनी सफलताओं पर, सुखों पर हम सभी ने गर्वोन्नत भाव दिखा कर इसमें अपनी
बुद्धिमत्ता, अपने कौशल को महत्व दिया होगा, इसके ठीक उलट अपनी असफलताओं पर,
दुःखों पर हमने कहीं न कहीं भाग्य को,
तकदीर को, समय को, परिस्थितियों को, दूसरों को दोषी ठहराकर अपने आपको असफलता का जिम्मेवार बनाने
से बचा लिया होगा। इस कारण से हमारी असफलता का, हमारी विसंगति का, हमारी अव्यवस्था के प्रति हमारे मन पर कोई बोझ हम महसूस न
करके आसानी से नववर्ष 2013 के स्वागत, उसके हर्षोल्लास में पूरी तरह से रम गये। यहाँ एक पल को
ठहरकर सोचने का विषय यह है कि हमने आखिर जाते हुए वर्ष से सीखा क्या?
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जिस तरह आने वाले का जाना सत्य है, उसी तरह से यह भी सत्य है कि आने वाला अपने साथ कुछ लेकर
नहीं आता है और जाने वाला भी अपने साथ कुछ लेकर नहीं जाता है। यह सत्य वर्ष 2012 और वर्ष 2013 पर भी लागू होता है। वर्ष 2013 न तो अपने साथ कुछ लेकर आयेगा और न ही वर्ष 2012 अपने साथ कुछ लेकर जाने वाला है। इस वर्ष में जो भी
असफलतायें रहीं, जो विसंगतियाँ रहीं, जो अव्वस्थायें रहीं, जो निरंकुशतायें रहीं वे सब यहीं रहेंगी और आने वाले वर्ष 2013 में हमारे सामने और विकराल रूप मे आयेंगी। घोटाले,
भ्रष्टाचार, हिंसा, अत्याचार, महिला हिंसा, कन्या भ्रूण हत्या, हत्या, अपराध, आतंकवाद, अलगाववाद आदि-आदि का अन्त वर्ष के साथ नहीं होगा बल्कि ये
सब भी हमारी तरह नववर्ष के स्वागत में खड़े होंगे।
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आइये आने वाले का स्वागत करें और इस स्वागत के बाद बीते वर्ष की तमाम
विसंगतियों को दूर करने का प्रयास भी करें। जिस उत्साह,
उमंग के साथ हम रात-रात भर जागकर,
नशे में थिरकते हुए, बाँहों में बाँहें डाले नाचते-गाते नववर्ष का स्वागत करते
हुए अगले दिन से फिर पुराने ढर्रे पर लौट आते हैं, इस बार संकल्प करें कि यह उत्साह,
यह उमंग जाने वाले वर्ष की विसंगतियों को दूर करने में
दिखाई देगा। यदि हम ऐसा नहीं कर पाते हैं तो अभी-अभी बड़ी जागरूकता में जलाई गईं
हमारी मोमबत्तियों का कोई अर्थ नहीं, हमारे द्वारा दी गई श्रद्धांजलि का कोई मोल नहीं,
हमारी जागरूकता की कोई कीमत नहीं। हमारी क्षणिक जागरूकता से
कहीं ऐसा न हो कि हम आने वाले वर्षों का एक रात तो स्वागत करें और शेष शामों-रातों
को मोमबत्तियाँ ही जलाते रहें।
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बहुत बुरी-बुरी यादों को, घटनाओं की पीड़ा के साथ नववर्ष की शुभकामनायें देने की
औपचारिकता पूरी तो करनी ही है। आने वाला वर्ष सभी को शुभ हो।
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (31-112-2012) के चर्चा मंच-1110 (साल की अन्तिम चर्चा) पर भी होगी!
सूचनार्थ!
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कभी-कभी मैं सोचता हूँ कि चर्चा में स्थान पाने वाले ब्लॉगर्स को मैं सूचना क्यों भेजता हूँ कि उनकी प्रविष्टि की चर्चा चर्चा मंच पर है। लेकिन तभी अन्तर्मन से आवाज आती है कि मैं जो कुछ कर रहा हूँ वह सही कर रहा हूँ। क्योंकि इसका एक कारण तो यह है कि इससे लिंक सत्यापित हो जाते हैं और दूसरा कारण यह है कि पत्रिका या साइट पर यदि किसी का लिंक लिया जाता है उसको सूचित करना व्यवस्थापक का कर्तव्य होता है।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हमारी क्षणिक जागरूकता से कहीं ऐसा न हो कि हम आने वाले वर्षों का एक रात तो स्वागत करें और शेष शामों-रातों को मोमबत्तियाँ ही जलाते रहें।
जवाब देंहटाएं----सही कहा ...पर यही तो होता आया है दोस्त...उसी का यह परिणाम है..
---बात तो तब बने जब हम-सारा देश नव-वर्ष पर जश्न न मनाएं अपितु मोमबत्तियों के साथ संकल्प लें ..