29 जुलाई 2012

असंवेदनशील-अमानवीय समाज-निर्माण के जिम्मेवार हैं हम



समाज की विभिन्न समस्याओं से इतर हम सब इस समय सिर्फ और सिर्फ जनलोकपाल बिल को लेकर ही संजीदा हैं। जो लोग इस बिल के समर्थन में हैं वे अन्ना और उनकी टीम के साथ स्वर मिलाते दिख रहे हैं और जो लोग इसके विरोध में हैं उनके लिए अनशन-धरना एक तमाशा सा है। अनशन की, धरने की सच्चाई क्या है, अन्ना टीम और अन्ना की वास्तविकता क्या है, जनलोकपाल बिल का वर्तमान अथवा भविष्य क्या है, यह एक अलग विषय हो सकता है। इन सबसे इतर मनुष्य की संवेदनाओं का, मानसिकता का दायरा बदला है, उसका नजरिया बदला है। वर्तमान में देखा जाये तो मीडिया के चौबीस घंटे प्रसारण में अन्ना टीम के अनशन में भीड़ का आना या न आना विषय बना हुआ है; राजेश खन्ना की मृत्यु के बाद उनके प्रेम के, उनके वसीयत के, उनके वारिस के चर्चे हैं; कुछ घंटों का प्रसारण फूहड़ता का पर्याय बना हंसी का एक धारावाहिक निकाल देता है; कुछ घंटे हम भूत-प्रेत के साथ, अंधविश्वास के साथ, कुरीतियों-आडम्बरों के साथ गुजार देते हैं। इन सबके बीच अत्यल्प समय देश के हालातों से परिचित होने के लिए मिलता है और वो भी तुरत-फुरत समाचारों के रूप में।


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चित्र गूगल छवियों से साभार

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