माननीय जरदारी साहब
सादर प्रणाम,
आपकी भारत यात्रा को लेकर हम भारतवासी बहुत ही रोमांचित हैं साथ ही गर्व की अनुभूति कर रहे हैं। रोमांच इस कारण से कि इधर बहुत दिनों से दोनों देशों के मध्य इस तरह का कोई भी कदम उठाया नहीं गया है और गर्व इस बात का कि एक ओर भारत की ओर से अपने अपराधियों को सौंपे जाने की बात चल रही है और आप हिम्मत जुटाकर अपनी यात्रा को अंजाम दे रहे हैं। वाकई आप साहसी हैं और बधाई के पात्र हैं।
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जैसा कि मीडिया के द्वारा पता चला है (अब आपसे तो हमारे और आपके देश के ही बड़े-बड़े हुक्मरानों को सम्पर्क बनाने में नाकों चने चबाना पड़ जाते हैं तो हम आम आदमी की क्या औकात) कि आपकी यात्रा जियारत के लिए है। अच्छी बात है, कम से कम धर्म-मजहब के नाम पर जो सियासत राजनैतिक दल और विभिन्न राजनेता करते आये हैं, वह अब हमारे पड़ोसी राष्ट्राध्यक्ष के द्वारा भी दिखाई दे रही है।
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खैर छोड़िये इन बातों को, आपकी यात्रा से दोनों देशों को बहुत सी उम्मीदें हैं। होना भी चाहिए, पिछले छह दशक से अधिक का समय इसी उम्मीद पर गुजार कर हम पाकिस्तान की आतंकी गतिविधियों के विरुद्ध सिर्फ और सिर्फ सबूत ही एकत्र करते रहे हैं। हमने इस उम्मीद के साथ कि 12 वर्ष बाद तो घूरे के दिन भी बहुरते हैं, पाकिस्तान के मंसूबे बदलेंगे, वहाँ के हुक्मरानों के इरादे बदलेंगे, वहाँ से संचालित आतंकवादियों के निशाने बदलेंगे पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। कई 12 वर्ष बीत गये पर घूरे के दिन न बहुरे थे और सम्भवतः आगे भी न बहुरें। आप हम सभी के धैर्य को देखिये कि हमने कभी भी आपके देश में घुसकर मारने में नहीं वरन् जो आपके देश से हमारे देश में घुसकर आतंक मचाये हैं, उन्हें भी सहेजने में यकीन रखते हैं।
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हम सभी जानते हैं कि हमारे देश में भयंकर आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देने वाले; सैकड़ों-हजारों निर्दोषों को मौत की नींद सुलाने वाले; हमारे अभिन्न अंग कश्मीर में कब्जा जमाने की कोशिश में अराजकता फैलाने वाले; कश्मीर के एक बहुत बड़े भूभाग को अपने कब्जे में करने वाले तमाम सारे आतंकवादी आपके देश में शरण लिए बैठे हैं। आपका देश अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवादियों को भी शरण देने में महारत हासिल किये है और इसका उदाहरण अमेरिका द्वारा ओसामा को आपके देश में ही मार गिराना रहा है। इसके बाद भी हम आपकी यात्रा से यह उम्मीद जगाये बैठे हैं कि इससे दोनों देशों के मध्य शान्ति स्थापित होगी; अराजकता कम करने में (समाप्त करना तो खैर आपके हाथ में नहीं है) मदद मिलेगी; हमारे देश के अपराधियों को सौंपे जाने की कोई पहल आपकी ओर से होगी (पहल ही हो जाये तो बहुत है); कश्मीर में भी शान्ति बहाली के प्रयास किये जाने शुरू होंगे।
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उम्मीद के और भी कई-कई बिन्दु होंगे और इनसे उम्मीदों का पहाड़ खड़ा हो गया होगा। इस पहाड़ पर आपको और हमारे देश के प्रधानमंत्री जी को चढ़ना होगा। उनकी समस्या यह है कि वे वोट-बैंक के चक्कर में कुछ आतंकवादियों की फाँसी की सजा तक को रोके पड़े हैं और आपकी समस्या यह है कि आप अपने आतंकवादियों को छोड़े पड़े हैं। हमारे प्रधानमंत्री जी बिना मैडम के, बिना बाबा के एक कदम भी नहीं उठाते, एक साँस भी नहीं लेते ठीक यही हाल आपका है कि आप बिना सेना की मर्जी के कुछ भी नहीं करते। हमारे प्रधानमंत्री पूरे वर्ष में एक-दो बार देश की समस्या पर बोल जायें तो विश्व-रिकार्ड बन जाता है और आप तो पहले ही अपनी यात्रा को जियारत के लिए घोषित कर चुके हैं, ऐसे में राजनीतिक मुद्दों का, आतंकवादियों पर चर्चा का क्या काम।
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इसके बाद भी ‘आशा से आसमान टिका है’ की तर्ज पर हम आपसे उम्मीद लगाते हैं कि भले ही आप अराजकता को कम न कर पायें पर उसे और बढ़ने भी न दीजियेगा। आप हमारे अपराधी आतंकवादियों को हमें सौंप पायें या न सौंप पायें पर कम से कम नये आतंकवादी हमारे देश में घुसने न दीजियेगा। आपके वश में भले ही न हो पाक अधिकृत कश्मीर को मुक्त करवा पाना पर कम से कम जो हिस्सा हमारे देश में आपकी कृपा से बचा रह गया है, उसे हिंसामुक्त बना रहने दें। आप आतंकवादियों के विरुद्ध कोई ठोस कार्यवाही करने में सक्षम नहीं हैं पर कम से कम हमारे देश के मुसलमानों को और उनके नाम पर राजनीति करने वालों को इतना तो समझा ही सकते हैं कि जिहाद के नाम पर इस तरह की हिंसा को इस्लाम स्वीकार नहीं करता है।
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आपकी यात्रा जियारत के लिए है तो कृपया इसके साथ शान्ति, मैत्री, भाईचारा लेकर आइयेगा। हम डरते हैं आपके यहाँ से आने वाली हवाओं तक से जो अपने साथ सिर्फ और सिर्फ आतंक को, आतंकवादियों को लाती हैं; कभी कारगिल लाती हैं; कभी संसद हमला लाती हैं; कभी मुम्बई बम धमाके लाती हैं।
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आशा है कि आप एक आम हिन्दुस्तानी के मन की बात को समझ सकेंगे। आपके स्वागत में आतुर इस देश के हुक्मरानों द्वारा प्रस्तुत किये जाने वाले लजीज व्यंजनों के साथ आप आम भारतीयों की आशाओं को भी न गटक जाइयेगा।
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धन्यवाद सहित-
एक आम हिन्दुस्तानी
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