सरकार ने लोकपाल बिल का जो हाल करवाने की सोची होगी सम्भवतः वह उसे करवाने में सफल भी रही। लोकसभा में उसे संवैधानिक दर्जा दिलवाने में नाकाम रहने के बाद स्पष्ट तौर पर उसे ज्ञात था कि राज्यसभा में उसकी राह कठिन है। इस वजह से वहां बहस को अकारण खींचा गया और अन्त में पूरी बेशर्मी के साथ सदन को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया। इसके बाद सभी को स्पष्ट हो गया कि सरकार जानबूझ कर लोकपाल बिल को लागू करना ही नहीं चाहती है।
इस सारे घटनाक्रम और अन्ना के अपने आन्दोलन को बीच में ही छोड़ देने से उनके घनघोर समर्थकों में निराशा तो हुई है। वैसे भी इस पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है और उन तमाम लोगों को, जो अन्ना आन्दोलन के विरोध में थे, उनको भी बहुत कुछ मसाला जैसा मिल गया अन्ना के अनशन को बीच में समाप्त करने से। इसके बाद अन्ना का ऐलान हुआ कि वे पांच राज्यों में कांग्रेस के विरोध में प्रचार करेंगे। हमारा इस मामले में कुछ अलग तरह से सोचना है। अन्ना को अपना आन्दोलन किस कारण से और किन परिस्थितियों में बीच में बन्द हुआ, उन्होंने क्या विचार कर अपना तीन दिवसीय अनशन शुरू किया था ये अलग बात है किन्तु यह तो स्पष्ट है कि उन्होंने देश में भ्रष्टाचार के विरोध में एक लहर तो जगा ही दी है।
इधर विगत के कुछ माह में अन्ना ने पूरे देश में अपने आपको पूजनीय रूप में स्थापित करवा लिया है और ऐसे में उनकी और उनकी टीम की यह जिम्मेवारी बनती है कि वे पूरे देश की भावनाओं का ख्याल रखें। अन्ना और उनकी टीम का कांग्रेस विरोध में चुनावी मैदान में आना कहीं न कहीं उनकी छवि को धूमिल ही करेगा न कि उसे और प्रतिष्ठित करेगा। उनको तो चाहिए था कि बजाय किसी चुनावी विरोध अथवा समर्थन के अब लोगों के बीच से भ्रष्टाचार को दूर करने के कदमों को उठाते। जो लोग भ्रष्टाचार में लिप्त हैं उनके चेहरों को बेनकाब करके समाज के सामने लाने का काम करते। यह तो स्वयं अन्ना भी स्वीकारते दिखते थे कि लोकपाल बिल के लागू होने से भ्रष्टाचार समाप्त नहीं होगा बल्कि कुछ हद तक कम होगा, ऐसी स्थिति में यदि अन्ना और उनकी टीम सिर्फ लोकपाल के लागू किये जाने की जिद पर न अड़कर भ्रष्टाचार के निदान सम्बन्धी कदमों के लिए अड़ती तो शायद कुछ अधिक ही सार्थक होता।
इस बात से कोई भी इंकार नहीं करेगा कि भले ही इधर अन्ना लोकपाल बिल के लिए संघर्ष कर रहे थे और उधर सदन में बहस चल रही थी किन्तु इसी के बीच भ्रष्टाचारी अपना भ्रष्टाचार फैलाने में लगे हुए थे। आम इंसान अन्ना के आभामण्डल से ग्रसित होकर सिर्फ और सिर्फ इस खुमारी में खोया था कि लोकपाल बिल कोई जादू की छड़ी की तरह होगा जो एक बार पूरे देश पर घूमेगी और फिर देश से भ्रष्टाचार मिट जायेगा। ऐसे में यदि लोकपाल के लागू होने के बाद भी भ्रष्टाचार उस तेजी से नहीं मिटता जैसा कि जनता के बीच प्रचारित किया जा रहा था तो सम्भवतः और भी अधिक निराशा का वातावरण बनता।
अब जबकि सुसुप्तावस्था में पड़े देश को यह लगने लगा है कि भ्रष्टाचार-विरोध पर कोई आन्दोलन खड़ा किया जा सकता है तो अन्ना को भ्रष्टाचार को समाप्त करने की ओर अपने कदमों को बढ़ाना चाहिए न कि अनशन अथवा चुनावों में विरोधात्मक प्रचार करके अपनी शक्ति को बिखेरना चाहिए।
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चित्र गूगल छवियों से साभार
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