17 नवंबर 2011

बुन्देलखण्ड का आधारभूत ढाँचा तैयार हो पहले

उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री ने चुनावी आहट देखकर पूरे प्रदेश को चार भागों में बांटने का जबरदस्त पासा फेंक दिया है। यह तो तय बात है कि विधानसभा में, जैसी कि बसपा की स्थिति है, इस प्रस्ताव को पारित करवाने में मायावती को कोई समस्या नहीं है, बाकी तो उसके बाद की कहानी है। इन सब बातों के बीच सभी राजनैतिक दलों में और तमाम सारे संगठनों में हलचल सी मच गई है। मायावती के प्रस्ताव में बुन्देलखण्ड का नाम आना भी अपने आपमें लोगों में चर्चा का विषय बनाता है।

बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण की अब फिर से बात सामने आना इस ओर सक्रिय रहे लोगों को प्रसन्न तो करता ही है किन्तु इस ओर भी सोचने की आवश्यकता है कि क्या वाकई बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण होने से इस क्षेत्र का भला हो सकेगा? यह प्रश्न इस रूप में भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि इस क्षेत्र की जो भी प्राकृतिक सम्पदा थी उसका बुरी तरह से दोहन तो पहले ही किया जा चुका है। इसमें चाहे हम यहां के पर्वतों को लें, जंगलों को लें, नदियों को लें, बालू को लें, खनिज सम्पदा को लें...आज सब कुछ लगभग खात्मे की ओर है। दूसरी ओर कोई भी नवनिर्मित राज्य सिर्फ और सिर्फ प्राकृतिक सम्पदा के सहारे, खनिज सम्पदा के सहारे ही अपना विकास नहीं कर सकता है, उसके लिए आवश्यक है कि उस राज्य का आधारभूत ढांचा भी समृद्ध हो।

यदि हम निरपेक्ष रूप से विचार करें तो हमें साफ तौर पर दिखाई देता है कि बुन्देलखण्ड क्षेत्र के साथ हमेशा से भेदभाव वाली स्थिति ही रही है। हाल-फिलहाल में ही जनपद जालौन में एक मेडीकल कॉलेज बन कर तैयार हुआ किन्तु वह भी दो राजनैतिक दलों की आपसी रंजिश का शिकार होकर सिर्फ और सिर्फ इमारत बना खड़ा है। यह तो एक ही उदाहरण है, ऐसे एक नहीं कई उदाहरण है जिनको देखकर आसानी से कहा जा सकता है कि बुन्देलखण्ड के प्रति किस प्रकार का सौतेला व्यवहार किया जाता रहा है। इस दो तरफा व्यवहार का एक उदाहरण मुख्यमंत्री के इसी प्रस्ताव में साफ-साफ दिखाई देता है। यह बात सभी को भली-भांति ज्ञात है कि बुन्देलखण्ड राज्य का निर्माण उ0प्र0 के और म0प्र0 के कुछ जिलों को मिला कर होना है। यह भी स्पष्ट है कि बुन्देलखण्ड राज्य की मांग करने वाले लोग सिर्फ उ0प्र0 के सात जिलों का बुन्देलखण्ड किसी भी रूप में स्वीकार नहीं करेंगे। स्पष्ट है कि मायावती के इस प्रस्ताव का भले ही शेष तीन प्रस्तावित राज्यों के लोग समर्थन करें किन्तु बुन्देलखण्ड के लोग प्रस्तावित बुन्देलखण्ड का विरोध करेंगे।

वर्तमान सरकार का यह कदम सिर्फ और सिर्फ राजनैतिक है, चुनावी लाभ लेने के लिए है। बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण हेतु संकल्पित लोगों को इससे सावधान रहने की आवश्यकता है साथ ही आवश्यकता है इस क्षेत्र की जनता को बुन्देलखण्ड राज्य बनने के बाद के लाभों को समझाने की। स्पष्ट रूप से समझना होगा कि बिना इस क्षेत्र की जनता के जागरूक हुए, आन्दोलन में सशक्तता से शामिल हुए बिना बुन्देलखण्ड का निर्माण सम्भव ही नहीं है।


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1 टिप्पणी:

  1. प्रिय डाक्टर कुमारेन्द्र जी ,

    यदि राजनीति नहीं हो और सहजता से मिल रहा हो तो जो भी पहले हाथ आये उसे स्वीकार कर लें बाद में बचे हिस्से के लिए संघर्ष आसान हो जाएगा और दावा भी मजबूत रहेगा वर्ना दो राज्यों और बुनियादी ढांचे की तकनीकी अडचनों के तले कुछ भी हाथ नहीं आने वाला ! क्या आपको लगता है कि बुन्देलखंड के अभी जो हालात हैं वो सुधरने वाले हैं ? बुनियादी ढांचा विकसित करना एक दिवास्वप्न है अगर सच होने कि किंचित संभावना बन भी जाये तो यह पैसा किसके हाथ जाएगा आप भी जानते हैं :)

    कहावत तो है ही कि आधी छोड़ पूरी को धावे ना आधी मिले ना पूरी पावे :)

    इसीलिये कहता हूं यदि राजनीति ना हो तो जो भी मिले उसे स्वीकार कर लीजिए , जो अपना है वहां शून्य से शुरुवात करना बुंदेलों के लिए एक चैलेन्ज मानिए !

    एक सुझाव , आज , जैसे भी हो जहां भी मिले कुछ मिनट आल्हा सुनिए !

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