बिग बॉस को प्राइम टाइम में दिखाये जाने पर मंत्रालय ने पाबंदी लगाई तो अदालत ने इस आदेश पर रोक लगाकर उसे प्राइम टाइम में ही जारी रहने का निर्देश दे दिया। अब पता नहीं कि यह किसकी जीत और किसकी हार है किन्तु यह तो तय हो गया कि टी0वी0 पर दिखाया जा रहा भौंड़ापन प्राइम टाइम में जारी रहेगा।
यहां अदालती आदेश के विरुद्ध कुछ भी कहना अदालत की अवमानना हो जायेगी किन्तु अदालत को दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान के साथ एक बात तो कही ही जा सकती है कि माननीय न्यायालय ने शायद बिग बॉस को देखा नहीं है। यदि देखा होता तो मंत्रालय के आदेश पर रोक न लगाई होती बल्कि बिग बॉस के निर्माता को फटकार लगाई होती। बहरहाल...........
विवादों के बीच ही विश्वस्तरीय प्रसिद्धि पाई हुई पामेला ने धक-धक करना शुरू कर दिया। करोड़ों रुपयों के बाद उन्होंने तीन दिनों के लिए बिग बॉस में आना स्वीकर किया। उनके आते ही बिग बॉस परिवार---ऐसा परिवार किसी को न मिले---के सदस्यों के दिल धकधकाने लगे। हद तो तब हो गई तब तीन दिनों के अल्पकाल में उनको हिन्दी सिखाने का जिम्मा भी मनोज तिवारी को दे दिया गया। ऐसा लगा जैसे हिन्दी एक समृद्ध भाषा न हो बल्कि कोई टास्क हो जो बिग बॉस ने दिया हो।
इसके उलट भी बहुत सी बातें हैं जिन पर किसी की निगाह क्यों नहीं जाती और जब भी ऐसी बातों के विरोध में आवाज उठाई जाती है तो इसे सांस्कृतिक ठेकेदारों का शिगूफा कहा जाता है। खुलेआम प्रेमलीलाओं का दिखाया जाना, बिला वजह द्विअर्थी संवाद अदायगी किस तरह की संस्कृति परोस रही है पता नहीं।
ऐसे कार्यक्रमों पर कुछ भी कह देने से उन लोगों को बड़ा कष्ट होता है जो कुंठित मानसिकता में जीते हुए किसी न किसी रूप में अपनी कुंठा को बाहर निकालना चाहते हैं। यह कह देना कि चैनल पर दिखाये जाने वाले विवादास्पद कार्यक्रमों को दर्शक देखें नहीं उसी तरह का तर्क है कि हम घर-बाहर नंगे होकर घूमेंगे, जिसे शर्म आती हो वह अपनी आंखें बन्द करके चला करे।
चलिए जो होना था वो हो गया और जो होना है वह हो रहा है। जब इस देश की अस्मिता से खिलवाड़ करने वालों की कमी नहीं तो कैसे कल्पना करें कि ऐसे कार्यक्रमों से संस्कृति की, देश की अस्मिता की रक्षा हो सकेगी। इसलिए बिना विवाद के ऐसे कार्यक्रमों का समर्थन करिए, देखते रहिए और कहते भी रहिए ‘‘तेरी मां की आंख।’’ ऐसा हमारा बच्चा भी बोलेगा तो हमें गर्व भी तो होगा, देश की संस्कृति और अस्मिता की रक्षा तो काई न कोई कर ही लेगा।
"teri maa kii"
जवाब देंहटाएंkuchh dinon bad ye bhi ghosh vakya ho jayega desh ka aajkal sabhi bak rahe hain.
क्या करें सर जी ....गन्दा है पर धंधा है यह !!
जवाब देंहटाएंसही बात पर आप शब्दों की बेहतरीन चोट करते है, पर अफ़सोस लेखन लोगों पर अस्थाई प्रभाव डालता है, इसके हमे सीधे संवाद की जरूरत है,....बिना क्रान्ति...के...सभ्यतायें पुलकित नही...
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