20 नवंबर 2010

यदि हम ऐसा सामाजिकता का निर्वाह करने में करें तो बेहतर हो


हिन्दू माह के अनुसार कार्तिक माह में प्रातःकालीन स्नान का अपना महत्व है। धार्मिक प्रवृत्ति की महिलायें इन दिनों व्रत-उपवास के द्वारा कार्तिक माह के पुण्य स्नान को सम्पन्न करती हैं। स्नान के निर्धारित दिवसों के बाद तुलसी के पौधे तथा शालिगराम भगवान के विवाह का भी संस्कार सम्पन्न किया जाता है।

चित्र गूगल छवियों से साभार

हमें इस बारे में बहुत जानकारी नहीं है। इसका कारण एक तो यह हो सकता है कि घर की किसी भी वरिष्ठ महिला द्वारा इस ओर कोई आयोजन नहीं किया गया। न तो हमने अपनी दादी को कार्तिक स्नान करते देखा और न ही अपनी अम्मा जी को। हां मुहल्ले की महिलाओं के द्वारा इस बारे में चर्चा होते अवश्य सुनी है।

इस बार पड़ोस की एक चाची ने तुलसी के पौधे और शालिगराम भगवान के विवाह का आयोजन किया तो इस बारे में भी ज्ञात हुआ। इसमें सबसे बड़ी और विशेष बात यह लगी कि बाकायदा बारात आती है और एक आम विवाह की तरह से ही सारे कार्य सम्पन्न किये जाते हैं।

मुहल्ले में ढोल-बाजों के साथ बारात आई। दूसरे मुहल्ले की एक परिचित महिला बारात लेकर आईं। तुलसी का पौधा हमारे मुहल्ले में ही था। बारात आई, संस्कार सम्पन्न हुए। सारे कार्य निपटने के बाद खाने-पीने का इंतजाम था। अन्त में विदाई भी हुई।

इन तमाम सारी विशेष बातों के अलावा एक विशेष बात जो हमने गौर की। उस बात पर सोचा कि धार्मिक कार्य करते समय तो उसे सहजता से स्वीकार कर लिया गया किन्तु सामाजिकता का निर्वाह करते समय हम कितने रूढ़िवादी हो जाते हैं।

विशेष बात यह थी कि बारात लेकर आने वाली महिला ब्राहमण वर्ग से थी और तुलसी का पौधा जिनका था वे पिछड़ा वर्ग से सम्बन्धित थी। दोनों पक्षों के अलावा अन्य वर्गों के लोग भी इस धार्मिक विवाह में शामिल हुए। किसी ने किसी तरह का भेदभाव नहीं दिखाया।

गौर फरमाइये वर यानि कि शालिगराम भगवान ब्राहमण वर्ग के और कन्या यानि कि तुलसी का पौधा पिछड़ा वर्ग से इसके बाद भी दोनों का विवाह पूरे धूमधाम से हुआ। ऐसा किसी वास्तविक लड़के और लड़की की शादी में सम्भव है? शायद क्या वर्तमान में कदापि सम्भव नहीं। दोनों पक्ष अपने-अपने नाम और वंश के लिए किस हद तक गिर जायेंगे यह भी पता नहीं।

इसके बाद भी एक बात अच्छी लगी कि कम से कम भगवान के विवाह समारोह में, संस्कार में अभी जातिवाद नहीं दिख रहा है। कहीं ऐसा न हो कि कल को यहां भी जातिवाद दिखने लगे। आइये भगवान के विवाह संस्कार में जातिवाद न बढ़ने दें साथ ही समाज में फैल रहे जातिवाद को दूर करने में ऐसे धार्मिक आयोजनों से भी कुछ सबक सीखें।

आइये कुछ तो सीखें।


1 टिप्पणी:

  1. "भगवान के विवाह समारोह में, संस्कार में अभी जातिवाद नहीं दिख रहा है। कहीं ऐसा न हो कि कल को यहां भी जातिवाद दिखने लगे। आइये भगवान के विवाह संस्कार में जातिवाद न बढ़ने दें साथ ही समाज में फैल रहे जातिवाद को दूर करने में ऐसे धार्मिक आयोजनों से भी कुछ सबक सीखें।"
    right approach

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