ब्लॉगर्स का छोटा सा संसार कुछ विस्तृत होता दिख रहा है और इस विस्तार के बाद भी ऐसा लगता है कि इस क्षेत्र में भी मीडिया की तरह मारामारी है। इस मारामारी में ‘सबसे पहले हमने’ की दौड़ भी होती रहती है। इसको इस रूप में समझा जा सकता है कि ब्लॉग पर भी कुछ विषय अपने उत्पन्न होने के बाद दो-चार दिन सुर्खियों में रहते हैं और उसके बाद उनका अता-पता ही नहीं चलता है।
जो विषय चर्चा में होते हैं, अधिकांश ब्लॉग पर अधिसंख्यक रूप से उन्हीं विषयों पर टीका-टिप्पणी होतर रहती है। कई बार तो देखने में आता है कि जानकारी का अभाव होता है तो भी जैसे लेखन निर्वहन करने की औपचारिकता के कारण ऐसा करना पड़ना मजबूरी सी दिखाई देती है।
आपको नहीं लगता कि यह ठीक मीडिया के जैसी स्थिति है। किसी भी मुद्दे को इतनी बुरी तरह से दिखाया जाता है, बिना किसी ठोस जानकारी के कि मन ऊबने लगता है। बाद में उस विषय के ठंडा हो जाने पर टाँय-टाँय फिस्स।
अब बहुत कुछ न कहते हुए इसके कुछ उदाहरण---
कुछ महीनों पहले तक सभी समलैंगिकता पर अपने विचारों की सम्पन्नता दिखाने में लगे थे और अब समलैंगिकता की बात करने वाले आउटडेटेड कहे जा सकते हैं।
आजकल तो चर्चा में लिव इन रिलेशनशिप है, सानिया की शादी है, विवाहपूर्व यौन सम्बन्ध की बातें हैं, कुछ मोदी की पूछताछ को गरम किये हैं। ये कुछ दो-चार दिनों के मेहमान हैं उसके बाद.....
आपको क्या लगता है कि ब्लॉग को बुद्धिजीवियों का, जानकारी आदान-प्रदान करने का, सूचना-संसार विस्तृत करने का मंच दिखता है। (हाँ, कुछ ब्लॉगर्स को इस मीडिया के स्वभाव से दूर रखा जा सकता है)
चलिए, ब्लॉग के बारे में हमने हमेशा कहा है कि यह बहुतों के लिए एक रोजनामचा की तरह कार्य करता है। इसी रोजनामचे की स्थिति के कारण ही ब्लॉग का रूप मीडिया की तरह हड़बड़ी वाला हो गया है।
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