28 मार्च 2010

ये सब कहीं हिन्दू-मुस्लिम राजनीति का संकेत तो नहीं है....



वर्तमान में देश में उभरते कुछ बिन्दु जिन पर विचार करना आवश्यक है, इस नाते नहीं कि पृष्ठभूमि में हिन्दू या मुस्लिम हैं, इस कारण कि इनका सम्बन्ध देश से है।

(चित्र साभार गूगल छवियों से)

गोधरा कांड ज्यादा वीभत्स कहा जाये कि इसकी परिणति से उपजा गुजरात दंगा? यहाँ इस बात को भुलाना होगा कि दोनों घटनाओं में मरने वाले कौन थे। मृत्यु एक भारतीय की ही हुई है दोनों घटनाओं में, तो एक आम देशवासी की मृत्यु को सामने रखकर विचार किया जाये कि कौन सी घटना ज्यादा दर्दनाक है?

दूसरा बिन्दु यह कि मुम्बई आतंकी घटना में पकड़ा गया कसाब ज्यादा बड़ा आतंकवादी है या फिर गुजरात दंगों के लिए जिम्मेवार माने जा रहे मोदी? एक ओर कसाब को मीडिया के सामने पकड़ा गया है और दूसरी ओर मोदी को मीडिया ही आतंकवादी बना रही है।

तीसरा बिन्दु इसको लेकर है कि अदालत में बार-बार बयान बदलने वाली तीस्ता सीतलवाड़ा को गुनाहगार क्यों नहीं माना जा रहा जबकि गोधरा कांड में मरने वाले ही इस घटना के दोषी बताये जाते रहे हैं? क्या अदालत में बार-बार अपना बयान बदलना भारतीय दंड संहिता में क्षम्य हो गया है? क्या बार-बार बयान बदलने को कानूनी रूप से स्वीकृति प्राप्त हो चुकी है?

चौथा बिन्दु यह कि 1984 के सिख दंगों के दोषी आज भी संसद और विधानसभाओं में शोभित हैं और एक मात्र मोदी जो संदेह के घेरे में हैं क्यों बार-बार मीडिया की चपेट में आते हैं? क्यों मीडिया के दुष्प्रचार के बाद भी मोदी फिर से गुजरात के मुख्यमंत्री बने?

एक और बिन्दु यह कि यदि गुजरात आज वाकई हिंसा के लिए जाना जाता है तो क्यों देश के बड़े से बड़ा औद्योगिक घराना वहाँ अपना उद्योग लगाने को बेताब है?

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अब बिन्दु नहीं कुछ सवाल कि क्या मोदी को हिन्दू होने की सजा मिल रही है?

क्या गोधरा कांड इसलिए छोटा और कम दर्दनाक है कि इसमें मरने वाले हिन्दू थे?

क्या गुजरात कांड को लेकर सरकारें इस कारण तो चिन्तित नहीं कि इसमें प्रभावित होने वाले सर्वाधिक लोग सरकार का वोट बैंक हैं?

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यदि ऐसा है तो कानूनी मदद का नाटक क्यों रचा जा रहा है? क्यों तमाम पूछताछ का नाटक किया जा रहा है? क्यों देश में और भी दूसरी ट्रेन दुर्घटनाओं में मरने वालों की संख्या गोधरा कांड जितनी नहीं हुई? क्यों अदालत में बयान देने और मुकरने के आरोप में तीस्ता सीतलवाड़ा को जेल में नहीं डाला गया?

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सोचिए कि क्या ये कदम हिन्दू बनाम मुस्लिम नहीं? क्या हिन्दू मुस्लिम को आपस में टकराहट बढ़ाने के तरीके नहीं? क्या आज भी मुस्लिम सरकारों के लिए एक वोट बैंक सरीखा नहीं?

इसको स्वयं मुस्लिम ही समझें तो बेहतर होगा, हमारा कहा तो एक हिन्दू का कहा समझा जायेगा और इसमें भी मोदी की झलक को देखा जायेगा।

सोचिए कि सही क्या है, गलत क्या है?



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