29 मार्च 2010

बच्चों के पहले, शिक्षा व्यवस्था के पहले अभिभावकों को सुधारना होगा


आजकल उत्तर प्रदेश में परीक्षा महोत्सव चल रहा है। इंटरमीडिएट, हाईस्कूल के साथ ही साथ विश्वविद्यालय की परीक्षाएँ चालू हैं। यद्यपि इंटरमीडिएट और हाईस्कूल की परीक्षाएँ तो समाप्ति पर हैं और विश्वविद्यालयीन परीक्षाओं की अभी शुरुआत ही हुई है।
साल भर पढ़ाई (अब कितनी हुई है यह बताना तो अपने आपमें ही शर्मनाक है) के बाद परीक्षाओं का होना तो तय है, पहले से ही तय था। इसी तरह यह भी तय था कि विद्यार्थी अब अपनी अक्ल से ज्यादा जुगाड़ पर विश्वास करेंगे। आये दिन हम लोग इस विषय पर चर्चा अवश्य ही करते हैं कि देश में शिक्षा का स्तर दिन प्रतिदिन गिरता जा रहा है। छात्र-छात्राएँ पढ़ाई की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दे रहे हैं।
यह प्रत्येक व्यक्ति के साथ होता है कि वह एक निश्चित समयावधि तक शिक्षा जगत से जुड़ा होता है, जब वह स्वयं शिक्षा ले रहा होता है। इसके बाद जो व्यक्ति अध्यापन के क्षेत्र में आ जाते हैं वे अपने रिटायरमेंट तक शिक्षा से जुड़े रहते हैं। कुछ ऐसा ही सौभाग्य न चाहते हुए भी हमें मिला है और इस मौके के आ जाने के कारण हमें भी शिक्षा जगत के, शिक्षा विभाग के उन सुअवसरों को सीधे-सीधे देखने का सौभाग्य प्राप्त हो जाता है जो प्रत्येक व्यक्ति के भाग्य में नहीं हैं।
आजकल जिस तरह से एक विद्यार्थी अपनी शिक्षा को लेकर ज्यादा जागरूक नहीं दिखाई देता उससे अधिक तो जागरूकता उसके अभिभावकों में देखने को मिल रही है। परीक्षाओं के इस समय में माता-पिता की सक्रियता को आप देखिए, लगेगा कि बच्चे को किसी विश्व स्तर की परीक्षा में पास करवाने के लिए मेहनत कर रहे हों। जी नहीं, खुद उसके साथ तैयारी में लीन नहीं दिखते बल्कि उनका प्रयास रहता है कि कैसे भी उनके होनहार अच्छे से अच्छे अंकों से पास हो जायें, इसके लिए कुछ भी (समझ रहे हैं न, कुछ भी) क्यों न करना पड़े।
हमारे एक परिचित हैं, उनके सुपुत्र ने विगत दो-तीन वर्ष पहले इंटरमीडिएट की परीक्षा दी। परीक्षा समाप्त हुई इसके बाद तो सुपुत्र के सुपिता ने भागदौड़ करके दिन रात एक कर दिया और अन्ततः दमदार तरीके से रुपया खर्च करके सुपुत्र को पास करवा ही दिया। अभी भी ऐसे पिता मिलते हैं जो कालेज के बाहर अपने सुपुत्र को नकल करवाने के लिए हाथों में पुर्ची थामें खड़े दिखते हैं।
अब ऐसी स्थिति में जबकि पिता ही नकल करवाने के लिए कृत संकल्पित है तो सुपुत्र क्यों नहीं दुर्गति के साथ पास होंगे। ऐसे लोग ही बेरोजगारों की संख्या बढ़ाते हैं और एक न एक दिन स्वयं को अपराध की दुनिया में, नशे की दुनिया में खड़ा पाते हैं। हमें शिक्षा व्यवस्था में सुधार लाने के पूर्व अभिभावकों की सोच में सुधार लाने की आवश्यकता है।






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