27 मार्च 2010

जीवन ही एक नाटक बन गया है - (विश्व रंगमंच दिवस पर)




आज विश्व रंगमंच दिवस है, ऐसा हमें हमारी उरई इप्टा के कुछ साथियों ने बताया। रंगमंच का नाम आते ही सामने आता है एक बड़ा सा मंच और उस पर कुछ सार्थक प्रस्तुतियाँ करते कलाकार। इधर पिछले कुछ सालों से हमने नाटकों के प्रति लोगों में रुझान कम से कमतर की स्थिति तक देखा है।

(चित्र साभार गूगल से)

नाटकों का स्थान कभी फिल्मों (सिनेमा हॉल में) ने लिया और अब फिल्मों का स्थान छोटे से पर्दे ने ले लिया है। इसके बाद भी नाटकों की अहमियत कम नहीं हुई। जब भी किसी बड़े फिल्मी कलाकार का साक्षात्कार देखा अथवा सुना है तो उसके मन में नाटकों के प्रति, थियेटर के प्रति एक अजब सा मोह देखा है।

कहना न होगा कि देश की आधुनिकतम पीढ़ी ने प्रत्येक स्वरूप का लघु संस्काण प्रस्तुत कर उस स्वरूप को विखण्डित ही किया है। इस तरह से तुरत-फुरत मजा लेने की प्रवृत्ति ने आज की युवा पीढ़ी को कुछ करने के जज्बे से बहुत ही दूर कर दिया है।

नाटक ही क्यों खेल में, पढ़ाई में, कैरियर में, जीवन में, कुल मिला कर कहा जाये तो प्रत्येक क्षेत्र में लघुतम संस्करण की माँग उठने लगी है। हमारा युवा वर्ग इसे बहुत ही सहजता से स्वीकार भी कर रहा है। पढ़ाई के लिए किसी भी तरह से अच्छे नम्बर आने की लालसा, किसी भी तरह नौकरी पाना और फिर किसी भी तरह से अधिक से अधिक धन प्राप्ति की लालसा, प्यार में भी तुरत फुरत सब कुछ पाने की चाह में आज लघु संस्करण आसानी से देखने को मिल रहे हैं।

इस लघुतम को पाने की बीमारी के अलावा जब हमें रोजमर्रा के कार्यों में ही अच्छे से अच्छे नाटक देखने को मिल जाते हों तो कौन है जो थियेटरों की ओर जाना चाहेगा? घर से ही शुरुआत कीजिए, सड़क पर निकल जाइये, किसी भी कार्यालय पहुँच जाइये, किसी भी स्थान पहुँच जाइये सब जगह किसी न किसी रूप में नाटक होता मिल ही जायेगा।

इसके बाद भी आज के दिन इतना तो कहा ही जा सकता है कि सबसे बड़ा नाटक तो आज राजनीतिक क्षेत्र में लगे लोग कर रहे हैं। आये दिन बिना बात में जनता को फँसा लेना और फिर उस पर बेमतलब की बहस करवाकर अपना उल्लू सीधा करना किसी भी अच्छे से अच्छे नाटक से कम नहीं।

इसके अलावा एक बहुत ही बड़ा और गम्भीर किस्म का नाटक इस समय देश में खेला जा रहा है और वह है कसाब का नाटक। कसाब ने अपना डायलॉग बोल दिया है, वह अपना रोल निभा चुका है, अब देश की सरकार की बारी है। सब मिल कर सिद्ध करो कि वह आतंकवादी हमले में था। सबके सामने, सबको सब कुछ दिखाने के बाद भी हमें सिद्ध करना पड़ रहा है कि कसाब आतंकवादी है तो इससे बड़ा नाटक और कौन सा होगा? विडम्बना देखिये कि विश्व रंगमंच दिवस पर इससे बड़ा वैश्विक नाटक और कौन सा कहा जायेगा, जिसे केवल हमारे देश ने नहीं बल्कि मीडिया के द्वारा सारे संसार ने देखा था।




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