09 मार्च 2010

ख़ुशी की आसान राह के साथ ही 'बड़ी कठिन है डगर पनघट की'

कल के शर्मनाक प्रदर्शन के बाद आज राज्यसभा में सात सांसदों के निलम्बन के बाद महिलाओं की चिरपरिचित प्रतीक्षा की समाप्ति का प्रथम चरण पूरा हुआ। राज्यसभा ने 186 के समर्थन और मात्र 01 के विरोध (वोटिंग के आधार पर) के साथ महिला आरक्षण विधेयक को पारित कर दिया।

14 साल के लम्बे वनवास के बाद विधेयक को पारित होने का मौका मिला और महिलाओं को भी प्रसन्न होने का अवसर मिला। प्रसन्नता का अनुभव होना भी चाहिए किन्तु.................???


किन्तु का सवाल विधुर के किन्तु-परन्तु की तरह आज फिर सामने आ खड़ा हुआ है। महिला आरक्षण विधेयक को लेकर सरकार की नीति और नीयत का अन्तर साफ तौर पर दिखते हुए भी भले ही दिख रहा हो किन्तु विधेयक के कानून बनने के रास्ते के अड़ंगे तो दिख ही रहे हैं।

राज्यसभा की स्थिति स्पष्ट रूप से दिख रही थी कि वहाँ विरोध का तांडव इस हद तक हुआ कि देश को शर्मसार होना पड़ा। विधेयक की प्रतियाँ फाड़ना, सभापति के हाथों से प्रति को झीनना, उन पर अशालीनता से आरोपण करना आदि दर्शा रहा था कि राज्यसभा में विधेयक की डगर आसान नहीं होगी। आज राज्यसभा में उपद्रव करने वाले सात सांसदों को निलम्बित भी किया गया। बहस को भी करवाया गया और वोटिंग के बाद राज्यसभा में विजय प्राप्त हुई।

अब जरा सोचिए कि विधेयक का विरोध करने वाली यादव-त्रयी राज्यसभा में उपस्थित नहीं थी बल्कि उसे तो लोकसभा में अपना रूप दिखाना है। ऐसे में समस्या यह आती है कि क्या इनके उपद्रव के विरुद्ध लोकसभाध्यक्षा उस तरह मार्शल का प्रयोग कर पायेंगीं जैसा कि राज्यसभा में किया गया?


यह तो एक वह स्थिति है जो यादव-त्रयी के द्वारा पैदा होगी। इसके अलावा और दूसरी स्थितियाँ हैं जो विधेयक की राह को आसान नहीं बनातीं। जैसा कि स्पष्ट है कि यह एक संविधान संशोधन है और इसके लिए वोटिंग होना अत्यावश्यक है। वोटिंग के लिए आवश्यक है कि सदन में किसी तरह का हंगामा हो रहा हो। हंगामे के दौरान होने वाली वोटिंग का कोई महत्व नहीं रहता है।

वही विषम स्थिति सामने आती है कि क्या यादव-त्रयी आसानी से इस विधेयक के लिए वोटिंग हो जाने देगी?

इसके साथ-साथ जैसा कि ज्ञात है कि लोकसभा में किसी भी संविधान संशोधन के लिए 2/3 मत का होना आवश्यक है। विरोधी संख्या बल में भले ही कम दिखाई देते हैं किन्तु दो-तिहाई बहुतम के लिए सरकार के पास आँकड़े की सरलतम स्थिति दिखाई नहीं देती है। ऐसे में लोकसभा में विधेयक का हाल किसी से छिपा नहीं है।

अब एक पल को मान भी लिया जाये कि लोकसभा में विधेयक के पक्ष और विपक्ष के सांसदों का साथ मिल जाये और विधेयक पास हो जाये तो उसका अगला कदम राज्य की विधानसभाओं में से होकर गुजरता है। 20 विधानसभाओं में इस विधेयक के पक्ष में सहमति की आवश्यकता है, जिसमें से 15 विधानसभाओं में इस विधेयक को दो-तिहाई बहुतम का आँकड़ा जुटाना होगा।

कहना न होगा कि एक खुशी महिलाओं के साथ-साथ उन सभी को भी मिली होगी जो महिला सशक्तिकरण के समर्थन में हैं। इंतजार लोकसभा में सरकार की नीयत और नीति का है। देश के इतिहास में, वर्तमान में 09 मार्च का दिन इस उपलब्धि के कारण अवश्य ही याद रखा जायेगा। इसके साथ ही आशा है कि समूचा विश्व भी इस एक कदम की सफलता के बाद के अन्य सभी कदमों की सफलता को गौरवान्वित रूप में देखेगा।

आगे की राह कठिन है किन्तु इस एक कदम के सफलतापूर्वक सम्पन्न होने के बाद आगे भी सफलता मिलने की उम्मीद अपने बाबाजी के शब्दों के आलोक में दिखाई देती है। वे किसी भी कार्य की सफलता के अथवा एक छोटी सी शुरुआत के बाद सफलता अथवा पूर्णता की आशंकाओं को यह कहकर नकार देते थे कि ‘‘जब गधे ने मुँह उठाया है तो रेंकेगा ही।’’

यहाँ भी इसी कथन की आशा है कि 14 वर्ष के लम्बे वनवास के बाद यदि राज्यसभा में सफलता मिली है तो आगे भी सफलता अवश्य और अवश्य ही मिलेगी, अवश्य ही मिलेगी।

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चित्र गूगल छवियों से साभार

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