26 अक्टूबर 2009

इतिहास को भुला कर हम दिखाना क्या चाहते हैं???

बहुत-बहुत भटके पर कोई और न मिला। नहीं जी, ये हमारे दिले नादान का हाल किसी प्रियतमा के लिए नहीं है, हाल ये है हमारा ब्लाग और समाज के चलन पर। आज का दिन कुछ विशेष है क्योंकि किसी विशेष का जन्मदिन है। सम्भवतः किसी को याद भी नहीं है?

किसी को तो याद है तभी तो ब्लाग पर चर्चा भी है। गम्भीर विषयों पर, साहित्य के विविध पहलुओं पर अपनी व्यापक मौलिक सोच रखने वाले कृष्ण कुमार यादव जी ने शब्दकार पर गणेश शंकर विद्यार्थी जी पर एक आलेख लिखा है। यह आलेख इस महान व्यक्तित्व के बारे में दर्शाता है, समझाता है।

इसी के साथ समझाता है समाज के सोचने का तरीका। समाज में तीव्रता से आगे बढ़ने का चलन है, अपने से आगे वाले को कुचल कर भी। इस भागादौड़ में हम अपने देश के शहीदों को भूलते जा रहे हैं, भुलाते जा रहे हैं।

इसके लिए दोषी भी हम और आप ही हैं। देश के महापुरुषों की बात तो बाद में करें, यदि पूछा जाये कि हम में से कितने हैं जिन्हें अपने परिवार के पुरखों के नाम मालूम हैं? हो सकता है कि बाबा-दादी के माता-पिता या उनके बाबा-दादी के नाम तो पता हों उसके पूर्व का इतिहास कतई पता नहीं होगा। जब यह स्थिति हमारे परिवार को लेकर है तो सोचा जा सकता है कि देश के लिए शहीद हो जाने वालों का पूरा विवरण कौन याद रखने की जहमत उठायेगा?

देश के इतिहास पर निगाह डालिए तो पता चलेगा कि देश पर कुर्बान होने वाले एक-दो तो शहीद थे नहीं, पर याद हमें कितने हैं? बहुत से तो ऐसे भी रहे जिनके बारे में ज्ञात ही नहीं हो सका, उनकी बात को छोड़ दें, पर वे जो ज्ञात हैं हम आज उन्हें कितना याद कर ले रहे हैं?

वर्तमान में जो पीढ़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के पैकेज के पीछे भाग रही है उसे महात्मा गाँधी, नेहरू, भगत सिंह आदि दो चार नामों के अलावा कुछ और मालूम नहीं होगा।

अभी पिछले दिनों अपने एक कार्य के दौरान कुछ स्नातक और परास्नातक छात्र-छात्राओं से मिलना हुआ। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि उनमें से अधिकतर को पता ही नहीं था कि सरदार पटेल का पूरा नाम क्या है? उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री कौन थे? आजाद हिन्द फौज के अन्य जाबाँज कौन थे? और तो और हास्यास्पद स्थिति तो तब हो गई जब युवा पीढ़ी ने राजनीति में अपना आदर्श राहुल गाँधी जैसे युवा को बताया पर वे ये नहीं बता सके कि राहुल गाँधी के बाबा का नाम क्या है?

इसी तरह की स्थिति हमारे बुन्देलखण्ड क्षेत्र की है। पृथक बुन्देलखण्ड राज्य के लिए संघर्ष का दम भरने वाले युवा जानते ही नहीं हैं कि बुन्देलखण्ड के लिए अपनी जान लड़ा देने वाली रानी लक्ष्मीबाई मूल रूप से कहाँ की थीं? वे नहीं जानते कि छत्रसाल, अभई, आल्हा, ऊदल, कौन थे? उन्हें नहीं मालूम कि बुन्देलखण्ड के लिए अंग्रेजों से युद्ध करने वाले राजाओं और नवाबों में कौन-कौन बुन्देलखण्ड से था? इस तरह अपने इतिहास से कटकर यहाँ का युवावर्ग पृथक बुन्देलखण्ड राज्य का संघर्ष करने की बात करता है।

कदाचित यह स्थिति किसी एक भग या क्षेत्र की नहीं, कमोवेश सभी जगह की है, पूरे देश की है। हमारी सरकारों ने पाठ्यक्रमों से हमारे इस गौरवाशाली अतीत को पूरी तरह से हटा दिया है, जहाँ ऐसा नहीं हुआ है वहाँ ऐसा करने का प्रयास है। स्थिति यदि यही रही तो आने वाले दिनों की पीढ़ी सिर्फ अपने माता-पिता का नाम ही याद रख सकेगी, वो भी इस कारण से क्योंकि उसके शैक्षिक प्रमाण-पत्रों पर उनका नाम अंकित होगा।

7 टिप्‍पणियां:

  1. बात तो बिलकुल पते की कही आपने. हमने सोचा था की ब्लोगरी के माध्यम से कुछ किया जा सकेगा, परन्तु उसकी भी सीमायें हैं. पढेगा कौन? अब हमने जो लिखा है आप पढोगे ही क्योंकि हमने यहाँ टिपियाया है. किसी गैर ब्लोगर के दवरा हिंदी ब्लोगों को पढ़ा जाना अल्पज्ञात है. जब की अंग्रेजी ब्लोगों की स्थति कुछ अलग है. वहां ऐसे लोग पहुँचते हैं जो स्वयं ब्लॉगर नहीं होते. शायद "सर्च" का चक्कर है जिसे लोग अंग्रेजी में करते हैं. आभार आपका.

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  2. इतिहास में रुचि होने से पूर्व यह जानना ज़रूरी है कि इतिहास पढ़ना क्यों ज़रूरी है ,अफसोस कि इसे शालेय स्तर पर नहीं बताया जाता । दो महत्वपूर्ण पुस्तके है - ई.एच.कार की इतिहास क्या है और डॉ.लालबहदुर वर्मा की पुस्तक इतिहास क्यों पढ़ें ।
    अपने परिवार का इतिहास जानना बेहद ज़रूरी है । हमें अपनी जड़ों के बारे मे मालूम होना चाहिये । मुझे अपने परिवार की विगत नौ पीढीयों के नाम याद हैं और मैने इस पर एक पुस्तक भी लिखी है ।

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  3. baat aapne ek dam sach likhi hai.dr sahab maine isi baat ko lekar meerut me ladai ched di hai. humara samachaar patr RASTRA-SAMIDHA jo ki 15 novambar se niklega uska uddeshy bharat ke gaurav ka udghosh hai. aap apna add mujhe bheje.jisse ki mai aapko samachar patr bhej sakoon,aur aapke lekhon ki sahyta prapt kar sakoon.

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