
अपने देश के ही एक प्रदेश का रेल्वे स्टेशन है। इस रेल्वे स्टेशन पर एक भिखारी पिछले कई वर्षों से भीख माँग कर अपना और अपने परिवार का गुजारा कर रहा है। उसका परिवार भी है इस बात की जानकारी तो उससे बात करने के दौरान पता चली। अभी तक जिसने भी देखा और जो भी देखता है वह जानता है कि वह भिखारी अकेला ही है।
उस भिखारी के भीख माँगने का अंदाज कोई निराला नहीं है, किसी तरह की कोई अतिविशिष्ट शैली भी नहीं है, शारीरिक विकलांगता भी नहीं है। यदि उस भिखारी के पूरे व्यक्तित्व में विशेष है तो वह है उसका परिवार। आपको बतायें कि उसके परिवार में दो पुत्र और एक पुत्री है। दोनों पुत्र इंजीनियर हैं और बैंगलौर तथा मुम्बई में अपनी-अपनी पत्नियों और बच्चों के साथ रह रहे हैं। पुत्री मेडीकल की पढ़ाई कर रहीं है वो भी परास्नातक की, एम0एस0 की, अभी अविवाहित है।
और भी आश्चर्य वाली बात ये कि जिस शहर में वो भिखारी है उस शहर में उसकी तीन कोठियाँ हैं प्रत्येक की लागत कम से कम पच्चीस-तीस लाख के आसपास होगी।
ऐसा नहीं है कि उसके बच्चों को उसके पेशे के बारे में पता नहीं है, पता है और दोनों पुत्र उसे साथ भी कई बार ले गये पर अपने पेशे के प्रति वफादार भिखारी सप्ताह भर टिकने के बाद घर बापस आ जाता है।
इस पूरे कारोबार का फंडा समझाते हुए उस भिखारी ने बताया कि दिन भर में स्टेशन से कम से कम सौ-सवा सौ ट्रेनें आती-जाती हैं। यदि एक दिन में औसत सौ ट्रेनों में से ही भीख मिले और वो भी प्रति ट्रेन मात्र दस रुपये तो एक दिन में गिरी हालत में एक हजार रुपये पैदा हो जाते हैं। स्टेशन वालों को, सुरक्षा की जिम्मेदारी लेने वालों को भी खिला-पिला देने के बाद दिन का लगभग आठ सौ-नौ सौ रुपये बच जाता है। इस तरह से महीने भर की आमदनी???? गजब लगभग चौबीस-पच्चीस हजार रुपये!!!!!
अब बताइये इतनी आमदनी प्रतिमाह वाले व्यक्ति के बच्चे इंजीनियर और डाक्टर नहीं बनेंगे तो क्या अपने पिता की तरह भीख माँगेगे? मंहगाई भरे मंदी के कथित दौर में इस रोजगार की तरफ भी ध्यान दिया जाये।
मान लिया..
जवाब देंहटाएंहमारे यहाँ कहते हैं कि सब छूट सकता है मगर भिखमंगई की आदत...न बाबा न!! ये नहीं छूटती.
बड़ा नायाब तरीका तलाश कर लाए हैं आप। बहुत लोगों को ही नहीं देशों को भी मंदी ने इसी हालत में पहुँचा दिया है।
जवाब देंहटाएं:)
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