सुबह-सुबह उठकर दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होने के बाद चाय के घूँट के साथ आदतन जैसे ही समाचार पत्र हाथ में उठाया तो एकाएक हँसी छूट गई। समाचार कोई हास्य से सम्बन्धित नहीं था किन्तु हँसाने के लिए पर्याप्त था। समाचार था ‘‘मुंबई हमला-26/11 के मास्टरमाइंड हाफिज सईद के खिलाफ दो मामले खारिज, पाक की पैंतरेबाजी बेनकाब’’
आपको लगेगा कि सुबह-सुबह शायद हमारा पेट साफ नहीं हो पाया होगा और बदहजमी के कारण ही हमें ऐसे समाचार पर हँसी आ गई होगी। जी हाँ, सही सोचा आपने, बदहजमी तो अब होने लगी है ऐसे ही समाचारों से। देखिये न कितनी मेहनत करके हमारे देश के सत्ताधारी महामनों ने पाकिस्तान को सबूत दिये और पाकिस्तान ने कुछ भी नहीं किया।
हाय! अब क्या किया जाये, सारी मेहनत मिला दी मिट्टी में। रोना तो ऐसे रोया जा रहा है कि जैसे पाकिस्तान कोई कार्यवाही करता तो हम तुरन्त संधि के बल पर आरोपी को भारत बुलाकर सजा सुना ही डालते।
सबूतों का रोना क्यों रोया जा रहा है? एक साहब पकड़े गये कसाब, मेहमाननवाजी करवाये जा रहे हैं। हो सकता है कि मानवाधिकार जैसे संगठनों के भक्तों को बुरा लगे किन्तु होना यह चाहिये था कि ताज हमले के समय जैसे बाकी आतंकी गोलियों का शिकार होकर ढेर हो गये, एक इस कसाब का भी वही हाल कर देना चाहिये था। पकड़ कर ले आये थे सबूत इकट्ठा करने के लिए। करो और करो।
अरे! अभी तक कौन सा पहाड़ खोद डाला सबूत इकट्ठा करने के नाम पर? कोई एक-दो बार का हमला तो है नहीं। अब तो उनका भी खाना हजम नहीं होता होगा बिना हमला करे और हमारा तो खाना हजम होता ही नहीं है उनसे बिना जूते खाये; बिना उनसे दोस्ती का राग आलापे।
हमने सबूत तब भी इकट्ठा किये थे जब संसद पर हमला हुआ था। हमने तब भी सबूत दिये जबकि मुम्बई में धमाके हुए। हमने अब भी सबूत दिये जबकि कसाब को पकड़े रखा है। इसके पहले भी बात-बात पर सबूत ही तो दिये हैं। यदि देखा जाये तो हम लोग एक संग्रहालय बना सकते हैं आने वाली पीढ़ी को यह दिखाने के लिए कि देखो हमने कितने सबूत एकत्र किये, कितनी बार हमले सहे फिर भी दोस्ती का राग आलापना नहीं छोड़ा।
बहरहाल ये विषय ऐसा है कि जिस पर जितना भी लिखवा लो कम है। बात समाचार से शुरू हुई थी और उसी समाचार-पत्र के एक दूसरे समाचार से समाप्त करेंगे। अपनी हँसी को दबाते हुए मुख्य पृष्ठ के समाचार पढ़े और समाचार-पत्र का पृष्ठ पलटा तो फिर हँसी छूटी। अबकी समाचार-पत्र बन्द करके सबसे पहले पता लगाया कि कहीं आज 13 अक्टूबर को हास्य दिवस तो नहीं है। समाचार था ‘भारत पाकिस्तान से दोस्ती चाहता है’ और यह बयान था हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी का। कहिये है न हास्य और साथ में विद्रूपता भी?
14 अक्टूबर 2009
हाय! सबूत दिए पर काम न आए
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भारत - पाक बयानी दंगल पर अच्छी टिप्पणी.हम अफजल को अब तक फाँसी नहीं दे पाए. पाकिस्तान को कठघरे में खडा कैसे कर सकते हैं?
जवाब देंहटाएंसही कह रहे हैं कि ये विषय ऐसा है कि जिस पर जितना भी लिखवा लो कम है. लेकिन न लिखें वो भी तो हो नहीं पाता.
जवाब देंहटाएंbahut karara vyangya bhi hai isamen.
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