02 अगस्त 2009

अब तो दाल-रोटी खाने की औकात भी नहीं

अकसर बातचीत में यह सुनने में आता था कि चिन्ता की क्या बात है। इतना तो कर ही लेते हैं कि दो वक्त दाल-रोटी तो खा ही सकते हैं।
यह भी कह दिया जाता था कि गरीब का क्या है सूखी रोटी और प्याज-नमक के सहारे जिन्दगी काट लेता है।
अब क्या ऐसा सम्भव दिखता है?
कारण 96 रु0 किलो अरहर की दाल और 26 रु0 किलो प्याज। (यह आँकड़ा घटता-बढ़ता रहता है, घट कम ही रहा है।)
आज कोई विस्तार नहीं, कोई चर्चा नहीं। एक प्रकार का मौन..........।

7 टिप्‍पणियां:

  1. सुधरने के कोई हालात भी नजर नहीं आते!!

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  2. संकेत में ही आपने बहुत कुछ कह दिया डा० साहब।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  3. महंगाई ने तो सबका बुरा हाल कर रखा है चाहे कोई गरीब हो अमीर !

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  4. ।दाल-रोटी खाओ,प्रभू के गुण गाओ और चल रही दाल-रोटी,इन मुहावरो की तो महंगाई ने वाट लगा दी है।दाल-आटे का भाव बता दिया आपने।

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  5. अब तो बस प्रार्थना हीं की जा सकती है.

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  6. 'प्रजातंत्र का हॉल अजीब ,किसी जी पाए ग़रीब ।' आम आदमी की दुखती राग को छुआ है आपने।

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