अकसर बातचीत में यह सुनने में आता था कि चिन्ता की क्या बात है। इतना तो कर ही लेते हैं कि दो वक्त दाल-रोटी तो खा ही सकते हैं।
यह भी कह दिया जाता था कि गरीब का क्या है सूखी रोटी और प्याज-नमक के सहारे जिन्दगी काट लेता है।
अब क्या ऐसा सम्भव दिखता है?
कारण 96 रु0 किलो अरहर की दाल और 26 रु0 किलो प्याज। (यह आँकड़ा घटता-बढ़ता रहता है, घट कम ही रहा है।)
आज कोई विस्तार नहीं, कोई चर्चा नहीं। एक प्रकार का मौन..........।
यह भी कह दिया जाता था कि गरीब का क्या है सूखी रोटी और प्याज-नमक के सहारे जिन्दगी काट लेता है।
अब क्या ऐसा सम्भव दिखता है?
कारण 96 रु0 किलो अरहर की दाल और 26 रु0 किलो प्याज। (यह आँकड़ा घटता-बढ़ता रहता है, घट कम ही रहा है।)
आज कोई विस्तार नहीं, कोई चर्चा नहीं। एक प्रकार का मौन..........।
सुधरने के कोई हालात भी नजर नहीं आते!!
जवाब देंहटाएंसंकेत में ही आपने बहुत कुछ कह दिया डा० साहब।
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
महंगाई ने तो सबका बुरा हाल कर रखा है चाहे कोई गरीब हो अमीर !
जवाब देंहटाएं।दाल-रोटी खाओ,प्रभू के गुण गाओ और चल रही दाल-रोटी,इन मुहावरो की तो महंगाई ने वाट लगा दी है।दाल-आटे का भाव बता दिया आपने।
जवाब देंहटाएंhaay re mahangaai !
जवाब देंहटाएंsab marte hain
tujhe maut na aayi !
अब तो बस प्रार्थना हीं की जा सकती है.
जवाब देंहटाएं'प्रजातंत्र का हॉल अजीब ,किसी जी पाए ग़रीब ।' आम आदमी की दुखती राग को छुआ है आपने।
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