‘‘हाँ, मैं दुआ करता हूँ कि मेरी माँ मर जाये।’’ आपको सुन कर कुछ अजीब सा नहीं लगा? सम्भवतः लगा होगा। लगना भी चाहिए क्योंकि आज के जमाने में शायद ही कोई पुत्र या पुत्री ऐसे होगे जो अपनी माता के मरने की दुआ करते होंगे।
इसके बाद भी कुछ ऐसा सुनने को मिला। सुन कर हमें भी बड़ा ही अचम्भा हुआ। उस व्यक्ति से पूछा कि ऐसा क्यों? जवाब मिला तो और भी चैंकाने वाला। उसने बताया कि वह एक प्राइवेट कम्पनी में काम करता है, शादीशुदा है। घर में पिता न होने के कारण घर की जिम्मेवारियों का बोझ उसी के सिर पर है।
काम के बाद जब घर लौटता है तो लगभग रोज का नियम है कि उसकी माँ और पत्नी की खटपट का तनाव घर पर दिखाई पड़ता है। पत्नी को समझाते-समझाते थक चुका है पर वह मानती नहीं। माँ को जिस प्रकार से समझा सकता था समझा चुका, उन पर अब बुढ़ापे का साया है, किसी बात को मानती नहीं। खुद समझ नहीं आता कि क्या किया जाये?
उसके परिवार के अन्य सदस्यों के बारे में पता किया तो मालूम हुआ कि वह, उसकी पत्नी, माँ और उसका एक छोटा सा बेटा है। छोटे से परिवार में वह नहीं चाहता कि उसकी पत्नी और माँ की खटपट का असर उसके बच्चे पर पड़े। माँ को छोड़ कर अलग नहीं रह सकता। पत्नी को अब और समझाया नहीं जा सकता। रोज-रोज की खटपट से वह तनाव में रहता है और इसका असर उसके काम पर भी पड़ रहा है।
क्या करे, कुछ कह भी नहीं सकता, कुछ कर भी नहीं सकता। माँ का अनादर होते भी नहीं देख सकता, माँ को दुखी भी नहीं देख सकता। इसलिए दुआ करता हूँ कि माँ को भगवान उठा ले।
पूरा दिन सोचते रहे कि क्या सही है और क्या गलत? सोच को अपने से दूर करने के लिए आप लोगों पर यह पोस्ट थोप दी। सह लीजिए इसे भी अन्य पोस्ट की तरह।
23 जून 2009
हाँ, मैं दुआ करता हूँ कि मेरी माँ मर जाये
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kuchh bhi kahne ko nahin bacha
जवाब देंहटाएंvedna ka paravaar dikha diya aapne...
maarmik
atyant maarmik chitran
क्या कह सकतें है , जिस पर बीत रही है वही इसका सही मायने में दर्द समझ सकता है | ऐसी दुखद परिस्थितियां मैंने भी कई लोगों के साथ देखि है !
जवाब देंहटाएंसचमुच जिसपर जो बीतती है .. वही समझ सकता है .. दूसरे क्या जवाब दे सकते हैं ?
जवाब देंहटाएंये क्या डाक्टर साब मरीजो से ईलाज पूछा जा रहा है?
जवाब देंहटाएंक्या कहें.........................।
जवाब देंहटाएंडॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर जी।
जवाब देंहटाएंआपकी पत्नी भी किसी की माँ हैं और
आप भी किसी के पिता हैं।
समझदार को..........।
अन्त में मृत्यु ही सारी बीमारियों का समाधान होती है लेकिन जननी की मृत्यु समाधान नहीं है। क्या हम पत्नी की मृत्यु की कल्पना कर सकते हैं? जब पुरुष कमजोर होता है वहीं ये समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंये एक क्लासिक या यूँ कहें कि बहुत आम समस्या है. इसका सिर्फ किसी खास परिवार से वास्ता हो, ऐसा नहीं है.
जवाब देंहटाएंइसके बहुत से समाधानों में से एक बड़ा ही कारगर समाधान होगा रिश्तों की खास समझ का विकास. रिश्तों के प्रति दृष्टिकोण में आमूल-चूल पर्तिवर्तन. और न केवल ये परिवर्तन बल्कि इसका सतत अभ्यास भी.
बहुत से ऐसे समाधान प्रस्तोताओं में से एक अपनी दिल्ली में भी उपलब्ध हैं. अगर रिश्तों में आग की लपट से झुलस ज्यादा हो तो जल्दी ही विसित करें और जा कर इसके कोर्सेस अटेंड करें -
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कुमारेन्द्र जी..जब शीर्षक पढ़ा तभी समझ गया था की ऐसा ही कुछ होगा..क्या कहा जाए इसके सिवा की ..आज और अब कुछ भी असंभव जैसा नहीं लगता..मैं इस बात में नहीं पढ़ना चाहता की कौन गलत है कौन सही..और रही बात किसी रास्ते की तो ये तो हमारी उन महिला ब्लोग्गेर्स से पूछनी चाहिए..वे ही बताएं की अब किस महिला को दोषी कहा जाए..माँ को या पत्नी को ...या की फिर से उस पुरुष को जिसकी मनोदशा बिलकुल पागल जैसी होगी...
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