बचपन में अपनी शिक्षा के दौरान एक कविता पढ़ी थी ‘अरुण ये मधुमय देश हमारा, जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।’ आज इस कविता की प्रथम दो पंक्तियों में कुछ शब्द बदले-बदले से लगे। वर्तमान परिदृश्य में ये पंक्तियाँ कुछ इस तरह से दिखीं ‘अरुण ये आरक्षणमय देश हमारा, जहाँ पहुँच कुछ खास को ही मिलता एक सहारा।’
इन देशभक्ति के भावों से ओत-प्रोत पंक्तियों में शब्दों का फेरबदल देश के नीति नियंताओं के कारण से करना पड़ रहा है। आये दिन समाचार मिलता है कि अब यहाँ भी आरक्षण लागू किया जायेगा। देश में शायद ही कोई क्षेत्र बाकी होगा जहाँ आरक्षण लागू न किया गया हो?
महिलाओं के लिए आरक्षण, विधायिका में आरक्षण, नौकरियों में आरक्षण, शिक्षा में आरक्षण, सरकारी क्षेत्र में आरक्षण, निजी क्षेत्र में आरक्षण जिधर निगाह डालो बस आरक्षण। ऐसा सोचा औश्र लगा कि अब देश क्या आरक्षण की बैशाखी पर ही चलेगा? अच्छे अंक पाने वाला सवर्ण बच्चा प्रवेश को तरसता है और कम से कमतर अंक आने के बाद भी आरक्षण का लाभार्थी डाक्टर या इंजीनियर या और भी कुछ बन कर निकलता है।
अच्छा है, देश के पिछड़े वर्ग को विकास की मुख्यधारा में आने का अवसर मिल रहा है। अवसर समान रूप से मिलें तो बेहतर पर ऐसा नहीं है। क्रीमीलेयर वाले क्रीम का मजा ले रहे हैं शेष तो वहीं के वहीं हैं। सोचा कि पता करें कि आरक्षण कहाँ नहीं है? हर जगह तो आरक्षण है....तभी ध्यान आया नहीं!!! हर जगह आरक्षण अभी नहीं है।
अब? यदि हर जगह आरक्षण नहीं है तो विकास कैसे होगा? पिछड़े तबके को विकास की मुख्यधारा में आने का अवसर कैसे मिलेगा? पता तो कर लीजिए कि कौन से क्षेत्र हैं जिनमें आरक्षण लागू नहीं है। एक क्षेत्र तो है जन्म का क्षेत्र और दूसरा है श्मशान। अभी हमारे देश में मरने और पैदा होने पर आरक्षण लागू नहीं है।
अब होना ये चाहिए कि किसी भी शहर अथवा जिले में (जैसा सरकार को सुविधाजनक और सहज लगे) यह व्यवस्था लागू हो कि पूरे दिन पैदा और मरने का रिकार्ड रखा जाये। दिन की समाप्ति पर आरक्षण के अनुसार पैदा और मृत्यु का हिसाब लगाया जाये। वर्गानुसार पैदा करने और मृत्यु की संख्या का निर्धारण किया जाना चाहिए।
यदि सभी वर्गों का समान प्रतिनिधित्व न हो तो किसी भी तरह से उन वर्गों के लोगों में से जन्म, मृत्यु की संख्या की भरपाई की जानी चाहिए। आखिर देश के विकास का सवाल है। वर्गों के विकास की मुख्यधारा में लाने का सवाल है। कोशिश हमें ही करनी होगी........चलिए प्रयास करते हैं, आन्दोलन करते हैं।
26 जून 2009
अरुण ये आरक्षणमय देश हमारा
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दर-असल आरक्षण अपने मूल उद्देश्य से ही भटक गया. अब हर कोई पिछड़ा और अनुसूचित होने की जुगाड़ में है. अनुसूचितों में भी सवर्ण हो गये हैं. एक अच्छी व्यवस्था को दोषयुक्त कर दिया और जो पात्र थे उनका हक उन्होंने मार लिया जो पहले ही अनुसूचितों में सवर्ण थे.
जवाब देंहटाएंअच्छा व्यंग्य है।यह आरक्षण का भूत सुरसा की तरह बढता ही जा रहा है।:)
जवाब देंहटाएंsateek aur saarthak aalekh !
जवाब देंहटाएंbahut achha !
करारा वार लिए सही कटाक्ष है.
जवाब देंहटाएंजय शंकर प्रसाद जी होते तो आपको गले लगाते. :)
कुल मिलाकर सबको रोज़गार और समानता मिलनी चाहिए बहाना चाहे कुछ भी हो
जवाब देंहटाएं---
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