28 मार्च 2009

धरती के सहयोग के लिए

‘अब पछताये होत का जब चिड़िया चुग गई खेत’ यह पंक्ति हर एक व्यक्ति ने सुन रखी होगी। इसी के साथ-साथ शायद ही ऐसा कोई होगा जो इसका अर्थ न समझता हो पर सब बेकार। आज इस पंक्ति का संदर्भ इस रूप में है कि हम आज रात्रि में अपनी धरती माता को बचाने के लिए कुछ छोटा सा दिखावा वाला कदम उठायेंगे। चलिए सकल विश्व की आवाज है तो आवाज से आवाज मिलानी ही होगी नहीं तो हमें भी पिछड़ा और हर काम में टाँग अड़ाने वाला कह दिया जायेगा।
वैसे टाँग अड़ाने का जन्म सिद्ध अधिकार हमने महाशक्तियों को दे दिया है। ग्रीन हाउस इफेक्ट हो या फिर ओजोन परत क्षरण का मामला सभी में वे सारे देश आगे हैं जिन्होंने विकास की अंधी दौड़ में न तो प्रकृति को कुछ समझा और न नही पर्यावरण की रक्षा की। अब जबकि संकट समूचे विश्व पर आन पड़ा है तो वे अपनी गलतियों का ठीकरा हम विकासशील देशों के ऊपर फोड़ना चाहते हैं।
बहरहाल आज का दिन इस बात का नहीं है कि हम इस बात का विश्लेषण करें कि कौन सही है कौन गलत। इस बात की अभी जरूरत भी नहीं है कि हम देखें कि क्यों और किसकी गलती का खामियाजा सारा संसार उठाने को है। आज नहीं पर कल अवश्य ही इस बात की जरूरत होगी कि हम बैठ कर इस बात को तय करें कि यह सब किसकी गलती से अधिक है। विकसित देश भी यदि जवाबदेह हैं तो हम विकासशील देशों की भी गलती कम नहीं है।
चलिए आज की रात्रि के कुछ पल धरती माता को।

एक अंदर की बात.....हम भारतवासी जाने-अनजाने शक्ति की बचत करते रहते हैं। उत्तर प्रदेश के अधिकांश शहरों में बिजली की समस्या इस तरह से है कि न चाहते हुए भी आदमी द्वारा बिजली की बचत हो जाती है। एक नजर हमारे शहर की विद्युत व्यवस्था पर भी डाल लीजिए- प्रातः 8 बजे से 12 बजे तक बिजली नहीं रहनी है फिर आयेगी और 3 बजे चली जायेगी। इसके बाद आयेगी रात्रि में 8 बजे, इसके बाद रहती तो रात भर है पर जाना बराबर लगा रहता है। कभी एक घंटे को तो कभी दो घंटे को, ये घोषित कार्यक्रम में नहीं है, अतः इसे जाना नहीं माना जाता।
फिर भी इतने से ही जिम्मेवारियों से मुक्त नहीं हुआ जा सकता।
अब चुनावी चकल्लस-


किसको अपना यार कहें और किसे सुनायें गम,
अपने ही अब पल्ला झटके, और निकालें दम।
सोचा था सब अपने हैं, मौज करेंगे मिलकर,
छोड़ गये सब बीच धार में, तन्हा डूबे हम।।

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