15 मार्च 2009

मैं प्रधानमंत्री की दौड़ में नहीं हूँ.....

कौन होगा देश का प्रधानमंत्री? अभी चुनावों के लिए बिगुल बज ही पाया है और सत्तालोलुपों के द्वारा अपनी-अपनी भागीदारी किसी न किसी रूप में सुनिश्चित करने करवाने के प्रयास शुरू हो गये हैं। यह शायद किसी भी देश की बिडम्बना होगी कि वहाँ का प्रधान जनता की मर्जी से नहीं वरन् चुने गये सांसदों की मर्जी से तय होता है। इससे भी विद्रूपता की स्थिति यह होती है कि देश का प्रधानमंत्री उसी सदन का सदस्य नहीं होता है।
देश का संविधान जब लिखा गया (लिखा कहें या कहें कि तमाम सारे संविधानों के सार को एकत्र किया गया) तब देश के संविधान-निर्माताओं को यह भान तनिक भी नहीं रहा होगा कि आने वाले समय में इस प्रकार की स्थितियाँ भी पैदा हो जायेंगी कि देश का संचालन किसी नियुक्त व्यक्ति के द्वारा किया जायेगा। नियुक्त व्यक्ति किस प्रकार से स्वतन्त्र निर्णय ले सकता है यह सभी जानते हैं।
अब जबकि देश में चुनावी रणभेरी बज चुकी है तब कोई भी प्रधानमंत्री की दौड़ से स्वयं को बाहर समझना नहीं चाहता। जिसका नाम लिया जा रहा है वह तो प्रसन्न है और जिसका नाम नहीं लिया जा रहा है वह अपने नाम को स्वयं ही आगे ला रहा है। बस इतना ही तो कहना है कि मैं प्रधानमंत्री की दौड़ में शामिल नहीं हूँ। (वैसे मैं भी प्रधानमंत्री की दौड़ में शामिल नहीं हूँ, लोकतांत्रिक देश में इतना सोचने का अधिकार तो है ही?)
कई सारे हैं जो शायद इस बार अपनी सीट भी न बचा पायें किन्तु प्रधानमंत्री की दौड़ में शामिल हैं। कई ऐसे हैं जिन्होंने देश को एक प्रकार के जातिगत विभेदक में स्थापित कर दिया है वे भी कुछ प्रतिशत वोटों के सहारे प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठना चाहते हैं। कुछ ऐसे हैं जो धर्म को राजनीति के साथ देख कर ही अपनी कुर्सी को पक्का समझ रहे हैं। कुछ तो ऐसे हैं जो बिना पेंदी के लोटे जैसा स्वभाव रखने के बाद भी प्रधानमंत्री बनने का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं। और भी बहुत हैं जो अपने-अपने स्वभाव के कारण चर्चित हैं, विवादित हैं किन्तु प्रधानमंत्री बनने का मोह नहीं त्याग पा रहे हैं। अब ऐसे देश में जहाँ ‘नेता’ शब्द सम्मान के स्थान पर गाली सा लगता हो, जहाँ कोई भी समाजसेवी नहीं प्रधानमंत्री बनना चाहता हो, जहाँ आम जनता के धन को चुनावी खर्चे के रूप में लुटाया जाता हो वहाँ किस प्रकार के लोकतन्त्र की कल्पना की जा सकती है? वहाँ सुदृढ़ लोकतन्त्र की कैसे स्थापना की जा सकती है? वहाँ सुखद लोकतन्त्र को कैसे देखा जा सकता है?

1 टिप्पणी:

  1. निश्चिंत रहिये, मैं स्वयं भी प्रधानमंत्री की दौड़ में शामिल नहीं हूँ. :)

    --बढ़िया लिखा है. वैसे भी दौड़ कर होगा क्या? मैडम जिसे चाहें, बना देंगी-तब हम भी मना न कर पायेंगे, सॉरी!!

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