इस समय प्राथमिक स्तर के बच्चों के लिए सरकार की मिड डे मील योजना चल रही है। इस योजना के चलने से लेकर अभी तक ये अपनी सफलता के लिए कम और विवादों के लिए अधिक चर्चा में रही है. इसके पीछे कारण समाज में फैला भ्रष्टाचार तो है ही साथ ही समाज में अपनी जड़ें गहराई तक जमा चुकी जात-पात की बुराई भी है. इस योजना के द्वारा बच्चों को भोजन देने का प्रयास किया गया साथ में हमारे नेताओं ने इसे समाज में समता लाने का साधन भी बना लिया।
ये तय किया गया कि बच्चों के लिए जो महिला खाना बनाएगी वो दलित वर्ग की होगी. बस यही से विवाद शुरू हो गया. कुछ ने इसी को राजनीति के लिए अपना लिया और कुछ ने इसे अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया. बहरहाल कुछ भी हो .............. आज इसी मुद्दे का एक समाचार पढ़ रहे थे. लिखा था कि कुछ बच्चों ने खाना खाने से मना कर दिया. उनका कहना था कि वे किसी दलित के हाथ का बना खाना नहीं खायेंगे. हमारे नित्य के उठने बैठने वालों के मध्य ये ही चर्चा थी कि क्या कोई बच्चा दलित, पिछडा, शूद्र शब्द समझता है? क्या वो समझता है कि अगडा-पिछड़ा क्या है?
सवाल वाकई गंभीर थे पर अनुत्तरित नहीं हैं. आज भी गाँवों में जात-पात का भेद सबसे ज्यादा है, रही सही कसार इस राजनीति ने पूरी कर दी है. जबसे अगडे-पिछडे का खेल खेला जाने लगा है तब से समाज में समता कम और कटुता अधिक आई है. क्या हम बच्चों को यही सिखा रहे हैं? हमारे राजनेता वाकई समाज में समता लाना चाहते हैं या फ़िर नाटक ही करते रहना चाहते हैं? हम वाकई समाज में समता लाना चाहते हैं या फ़िर नेताओं के हाथ कि कठपुतली बने रहना चाहते हैं? सोचिये और कम से कम अपने लिए न सही अपने बच्चों के लिए ही सही समाज से जाट-पात का भेद मिटाने का प्रयास करें. कहिये क्या विचार है आपका?
(अभी सेमिनार की जल्दी है, इसलिए इतना ही शेष बाद में..........सेमिनार 19-20 दिसम्बर को है.)
SAMAJ VAISA HO JO HAME SATTA DILA SAKE BAS. NARAYAN NARAYAN
जवाब देंहटाएं