आज कई दिनों बाद ब्लॉग पर आना हुआ, कुछ घरेलू व्यस्तता रही, कुछ दूसरे जरूरी काम. एक-दो दिन ब्लॉग की सैर की थी और कुछ पर जाकर टिप्पणी भी की पर अपने ब्लॉग पर कुछ भी लिखना नहीं हुआ. इधर देश में चुनावों की, साध्वी की, क्रिकेट की, कुछ घोटालों की चर्चा आम है ठीक यही स्थिति ब्लॉग पर भी है. इन सब मुद्दों के बीच ब्लॉग भी गर्म रहा. सबसे ज्यादा मुद्दा साध्वी का छाया रहा, कुछ लोगों की निगाह में ये हिन्दुओं को बदनाम करने की साजिश है तो कुछ की निगाह में ये जायज है. एक ब्लॉग पर तो बड़ी गरमागरम बहस चल रही थी. टिप्पणी भी बड़ी उत्तेजक थीं।
बहरहाल ये कहना कि ये हिन्दुओं को बदनाम करने की साजिश है या ये कहना कि जो किया जा रहा है वो सही है एकदम से उसी तरह निर्णय देना होगा जैसे कि आरुशी हत्याकांड में दिया जा रहा था। यहाँ एक बात तो साफ़ है कि ये पूरा घटनाक्रम एकदम ये साबित करने में लगा है कि साध्वी आतंकवाद का नया नाम है और हिन्दुओं ने भी आतंकवाद का सहारा ले लिया है. अब किसी को आतंकवाद के साथ मुस्लिम या इस्लामिक शब्द लगाने की जरूरत नहीं है. यहाँ कुछ कहने के पहले, अपने निर्णय देने के पहले कुछ बातों को भी ध्यान में रखना होगा. इस्लामिक आतंकवाद का शिगूफा अमेरिका द्वारा छोड़ा गया था. यदि ब्लॉग पाठकों को याद हो तो वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आक्रमण के पहले जब भी भारत आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान के कारनामे दिखता था तो अमेरिका और उसके पिछलग्गू देश इसे भारत की झूटी दलील कह कर ठुकरा देते थे. अपने ऊपर हुए आक्रमण के बाद अमेरिका ने खुले शब्दों में इस्लामिक आतंकवाद की मुखालफत की। तब किसी नेता या धर्मनिरपेक्ष की जुबान नहीं खुली.
देखा जाए तो देश में किसी भी तरह से मुस्लिम तुष्टिकरण का जो खेल खेला जा रहा है वो देश को विकास के नहीं विनाश के रास्ते पर ले जा रहा है।
- जब भी किसी नेता, धर्मनिरपेक्ष के पुजारी, किसी साहित्यकार, प्रबुद्धजन के मुंह से दंगों की भयावहता की चर्चा होती है तो सिर्फ़ और सिर्फ़ गुजरात दंगों की बात होती है. यहाँ क्या इन लोगों को 1984 के सिख दंगों की याद नहीं आती?
- जब भी आतंकवादियों को छोड़ने की बात आती है तो विमान अपहरण के बाद छोड गए आतंकवादी कि याद आती है तब ये लोग सईद काण्ड को भूल जाते हैं. ऐसा क्यों?
- बयानवाजी की चर्चा होने पर मोदी के बयान तो याद रहते हैं पर कोंग्रेस के नेताओं की जुबान को याद क्यों नहीं किया जाता?
- मारे गए लोगों की याद में ईसाई समुदाय याद आता है पर दो शब्द गोधरा काण्ड में मारे गए हिन्दुओं के लिए नही निकलते हैं, क्यों?
- तोड़-फोड़ करने में काला दिन याद आता है बाबरी मस्जिद के गिरने से पर तमाम हिन्दू आराध्यों के, पूज्य स्थलों पर अतिक्रमण क्यों नहीं दीखता है?
- हज के लिए जाने के लिए ढेरों-ढेर सुविधाएँ मिल जातीं हैं पर अमरनाथ यात्रा के लिए किराए की जमीन के लिए भी लाठियां खानीं पड़तीं हैं, क्यों?
- हिन्दू के नाम पर बिना सबूत के पकड़े गए कुछ लोगों को मकोका लगा कर जमानत विहीन कर दिया जता है वहीं तुष्टिकरण के नाम पर कुछ आंतकवादी चुनाव लड़ने तक की तैयारी करने लगते हैं, क्यों?
- बिना सबूत के साध्वी हिन्दू होने के कारण जेल में है और दूसरी तरफ़ अफज़ल पूरी तरह सजा पाने के बाद भी जेल में सुकून से रह रहा है, क्या ये मुस्लिम तुष्टिकरण नहीं?
ऐसे एक-दो नहीं अनेक उदाहरण हैं जो दर्शाते हैं कि किसी न किसी रूप में हिन्दुओं का शोषण और मुस्लिमों के साथ तुष्टिकरण की नीति अपनाई जाती रही है. परिवार-नियोजन को लेकर भी स्वास्थ्य विभाग की निगाह भी मुस्लिमों के ऊपर बेहद इनायत रूप में होतीं हैं. यहाँ सवाल ये नहीं कि क्या किया जाए क्या नहीं, सवाल ये है कि कब तक मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति अपने जाती रहेगी? देश एक है तब क़ानून एक क्यों नहीं? यदि साध्वी दोषी है तो बीच चौराहे पर खड़े करके गोली मार देनी चाहिए पर यदि वो निर्दोष है तो इस जिल्लत की कीमत कौन चुकायेगा?
जो लोग बात करते है कि मुस्लिमों को बदनाम किया जाता है तो ऐसे लोगों के साथ हम भी हैं पर क्या ये सत्य नहीं है कि इस समय हमारा देश ही नहीं समूचा विश्व ही इस्लामिक आतंकवाद का शिकार नहीं है? एक आतंकवादी को बचाने के लिए किस-किस तरह से दांव-पेंच चलाये जाते है ये तो नेता ही अच्छी तरह जानते होंगे पर जो दीखता है वो ये कि अभी तक इतने कम सबूतों के बाद भी किसी मुस्लिम आतंकवादी के ऊपर इतना सख्त क़ानून नहीं लगा जितना साध्वी और उसके साथियों के ऊपर लगाया गया है. अभी तक तमाम कथित धर्मनिरपेक्ष लोगों के लिए, कथित साहित्यकारों के लिए, कथित प्रबुद्ध जनों के लिए, कथित समाज सेवकों के लिए आतंकवाद के पहले "मुस्लिम" शब्द बड़ा ही कष्टकारी होता था आज यही लोग पूरी ताकत से हिन्दू आतंकवाद चिल्लाते दिख रहे हैं.
फिलहाल तो ऐटीएस को सबूत तो मिल ही नहीं रहे हैं पर कुछ ब्लॉग पाठकों की पहुँच एटीएस तक जरूर है तभी एक ब्लॉग पर उसकी लिंक को एटीएस तक पहुंचाने की धमकी दी जा रही थी. इस मुद्दे पर बहुत कुछ है लिखने को पर अभी इतना ही क्यों कि ये मुद्दा यदि हिन्दुओं को सोचने को विवश कर रहा है (यदि कोई वाकई हिन्दू होने का दावा बिना किसी भय के करता है तो) और दूसरी तरफ़ कुछ फिरकापरस्त लोगों को प्रसन्न होने का अवसर भी दे रहा है. अब उनको कहने का मौका मिला है कि हिन्दू भी आतंकवादी है................पर अभी सबूत का इंतज़ार है. (सरकार चाहेगी तो मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए मकोका की तरह सबूत भी बना लेगी)
सटीक और धारदार पोस्ट.
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